सदन में 'वोट के बदले नोट' मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ का गठन

ये मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. ये मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार नरसिंह राव केस से जुड़े हैं, जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे.

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सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

सदन में वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ का गठन किया गया है. चार अक्टूबर को इस मामले पर सुनवाई होगी. सीजेआई (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगी.

इससे पहले 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर फिर से विचार करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था. पांच जजों की संविधान पीठ ने 1998 के पी वी नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया.

मामले को सात जजों की संविधान पीठ को भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. 

कोर्ट ये तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं, तो क्या तब भी उस पर मुकदमा नहीं चलेगा?  1998 का नरसिम्हा राव फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है. इसी फैसले पर दोबारा विचार होगा.

CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच ने कहा कि पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों के रिश्वत मामले में फैसले की नए सिरे से जांच करेगी. इसमें 1993 में राव सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों ने कथित तौर पर किसी को हराने के लिए रिश्वत ली थी.

विधायिका के सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र
CJI ने कहा था विधायिका के सदस्यों को परिणामों के डर के बिना सदन के पटल पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. जबकि अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता देता है. 105(2) और 194(2) का उद्देश्य प्रथम दृष्टया आपराधिक कानून के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने से प्रतिरक्षा प्रदान करना नहीं लगता है. जो संसद के सदस्य के रूप में अधिकारों और कर्तव्यों के प्रयोग से स्वतंत्र रूप से उत्पन्न हो सकता है.

ऐसे मामले में, छूट केवल तभी उपलब्ध होगी, जब दिया गया भाषण या दिया गया वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवाही के लिए कार्रवाई के कारण का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है.

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ये मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. ये मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार नरसिंह राव केस से जुड़े हैं, जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे. ये मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 से जुड़ा है, जहां जनप्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता, उन्हें छूट दी गई है.

इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भाभी हैं और उस समय हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी भी. सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी.

सीता सोरेन को जन सेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रचकर जन सेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था. झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस को रद्द कर दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था, जिसके बारे में रिश्वत की बात कही जा रही है.

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