अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन की सुनवाई पूरी हो गई. पांच जजों के संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कपिल सिब्बल से पूछा कि अनुच्छेद 370 खुद ही अपने आप में अस्थायी और ट्रांजिशनल है. क्या संविधान सभा के अभाव में संसद 370 को निरस्त नहीं कर सकती? एकमात्र संविधान सभा जिसका गठन संविधान निर्माण के उद्देश्य से किया गया था.
एक बार JK संविधान बन हो गया उसका अस्तित्व पूरा हुआ.संविधान सभा संसद या सुप्रीम कोर्ट की तरह कोई स्थायी निकाय नहीं है. यह एक ऐसा निकाय है जिसका एक विशिष्ट उद्देश्य होता है. जब यह पूरा हो जाता है तो यह भंग हो जाती है.एक बार जब संविधान सभा ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया तो 370 निरस्त करने से पहले. संविधान सभा की अनुशंसा के प्रावधान का कोई औचित्य नहीं रह जाता.
मौखिक टिप्पणी में 5 न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व कर रहे CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने नेशनल कॉन्फ्रेंस सांसद अकबर लोन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से निम्नलिखित स्पष्टीकरण देने को कहा: -
- अनुच्छेद 370 ट्रांजिशनल, अस्थायी प्रावधान है.
- हमें बताएं कि राज्य की संविधान सभा भंग होने के बाद भी यह प्रावधान कैसे बना रह सकता है?
- सात साल के अंत के साथ, राज्य की संविधान सभा की संस्था ही समाप्त हो गई है?
- फिर कोई संविधान सभा बची ही नहीं तो प्रावधान का क्या होगा?
- संविधान सभा के समाप्त होने के बाद क्या होगा ?
- मूल प्रावधान कहता है कि राष्ट्रपति अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद का संचालन बंद हो जाएगा.
- अब एकमात्र बचाव यह है कि राष्ट्रपति को ऐसा करने से पहले राज्य की संविधान सभा की सिफारिश लेनी होगी, लेकिन उस समय क्या होगा जब राज्य की संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है.
- संविधान सभा संसद या SC जैसी संस्था स्थायी नहीं है
- एक बार जब संविधान सभा ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया, तो प्रावधान का कोई उपयोग नहीं होता
- जम्मू और कश्मीर संविधान सभा एक स्थायी निकाय नहीं थी
- जब जम्मू-कश्मीर संविधान बनाया गया तो इसका अस्तित्व समाप्त हो गया
- निरस्त करने से पहले संविधान सभा की सिफ़ारिश को अनिवार्य बनाने वाले प्रावधान का कोई उपयोग नहीं है
वहीं कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 370 के अनुसार, संसद केवल राज्य सरकार के परामर्श से जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बना सकती है.370 को निरस्त करने की शक्ति हमेशा जम्मू-कश्मीर विधायिका के पास है. जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण सदैव निर्विवाद रहेगा. हम यहां उस प्रक्रिया को वैध बनाने के लिए नहीं हैं जो संविधान की स्पष्ट शर्तों के साथ असंगत है.
भारत का संविधान समय-समय पर जारी विभिन्न आदेशों के माध्यम से हमेशा जम्मू-कश्मीर पर लागू होता था.धारा 370 को निरस्त करना केवल एक ' संवैधानिक अधिनियम' के माध्यम से ही हो सकता है; ऐसा राजनीतिक फैसला लेना संसद के अधिकार में नहीं.इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि जम्मू-कश्मीर के लोग भारत का अभिन्न अंग हैं.लेकिन अनुच्छेद 370 में ही एक अनोखा रिश्ता झलकता है.
संसद ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को दबाया -क्या यह राजनीतिक शक्ति का प्रयोग नहीं है? संविधान सभा का कामकाज एक राजनीतिक अभ्यास है न कि कानूनी अभ्यास; - संविधान अपने आप में एक राजनीतिक दस्तावेज है. भारतीय संसद स्वयं को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती. अनुच्छेद 356 ऐसी शक्तियों के प्रयोग की गारंटी नहीं देता. जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बनाने की पार की शक्ति संविधान में निर्दिष्ट मामलों तक ही सीमित थी.
जम्मू-कश्मीर के शासक द्वारा परिग्रहण के किसी भी संशोधित दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे. शक्ति राज्य के पास है और इसी तरह अनुच्छेद 370 अस्तित्व में आया.जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल और संसद ने अद्वितीय संवैधानिक ढांचे को अचानक अमान्य कर दिया. अनुच्छेद 370 को केवल राज्य संविधान सभा की सिफारिश से ही हटाया जा सकता था. CJI ने पूछा कि संविधान सभा की समाप्ति के बाद क्या होगा, जिसे केवल 1950 से 1957 तक कार्यात्मक रहने की कल्पना की गई थी.
ये भी पढ़ें- :