मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "याचिकाओं पर होगी सुनवाई"

मैरिटल रेप मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला सामने आया था. इसी के चलते दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था.

विज्ञापन
Read Time: 25 mins
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो तय करेगा कि मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं?
नई दिल्‍ली:

मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा दिलाया है कि वो इससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कोई तारीख नहीं दी है. दरअसल, याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी. इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें तय करना है कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं? हम इसके लिए सुनवाई करने पर विचार करेंगे. 

सुप्रीम कोर्ट ने 16 जनवरी 2023 को बड़ा कदम उठाया था. कोर्ट ने कहा कि वो तय करेगा कि मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा था. कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष तीन मार्च तक लिखित दलीलें दाखिल करें. मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इसका बड़ा असर होगा. हमने कुछ महीने पहले सभी हितधारकों से विचार मांगे थे. हम इस मामले में जवाब दाखिल करना चाहते हैं.  

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने सुनवाई की. दरअसल, पिछले साल 16 सितंबर को मैरिटल रेप अपराध है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार हो गया था. केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. इससे पहले 11 मई 2022 को इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. 

Advertisement

मैरिटल रेप मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला सामने आया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं दिखी. इसी के चलते दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था. सुनवाई के दौरान जहां पीठ की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस  राजीव शकधर ने मैरिटल रेप अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया. वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.

Advertisement

दरअसल, याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375( रेप) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी. इस धारा के अनुसार, विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा, जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो. गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी. अदालत ने केंद्र को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है.

Advertisement

केंद्र  ने कहा कि जब तक इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए. पीठ के पूछने पर कहा कि अभी तक किसी राज्य सरकार से संचार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. एसजी मेहता ने भी तर्क दिया था कि आमतौर पर जब एक विधायी अधिनियम को चुनौती दी जाती है, तो हमने एक स्टैंड लिया. ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जब इस तरह के व्यापक परिणाम मिलते हैं, इसलिए हमारा स्टैंड है कि हम परामर्श के बाद ही अपना पक्ष रख पाएंगे. 

Advertisement

अदालत भारतीय रेप कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है. हाईकोर्ट ने सात फरवरी को केंद्र को मैरिटल रेप अपराधिकरण की मांग वाली याचिकाओं पर अपना पक्ष रखने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था. केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर अदालत से याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया था, जिसमें कहा गया था कि मैरिटल रेप का अपराधिकरण देश में बहुत दूर तक सामाजिक-कानूनी प्रभाव डालता है और राज्य सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ एक सार्थक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता है.

ये भी पढ़ें :- 
एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों ने कैसे बनाया 'INDIA'? यहां जानिए पूरी कहानी
महिला पायलट और उसके पति की भीड़ ने की पिटाई, नाबालिग बच्ची से मारपीट का है आरोप

Featured Video Of The Day
Diabetes: क्या सही जीवनशैली है डायबिटीज का इलाज? | Hum Log | NDTV India