चयन प्रक्रिया अवैध होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने केरल में 6 सालों से काम कर रहे कुछ जजों को पदों पर बने रहने की अनुमति दी है. सार्वजनिक हित का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों को हटाने से परहेज किया.
सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक हित का हवाला देते हुए केरल में कुछ न्यायिक अधिकारियों को उनके पदों पर बने रहने की अनुमति दी है, इसके बावजूद कि उनके चयन में केरल हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया अवैध और मनमानी थी. यह देखते हुए कि उनके चयन के छह साल बीत चुके हैं, अदालत ने कहा कि उन अधिकारियों को पद से हटाना सार्वजनिक हित के विपरीत होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, लगभग छह साल पहले चुने गए उम्मीदवारों को पद से नहीं हटाया जा सकता. वे सभी योग्य हैं और राज्य की जिला न्यायपालिका की सेवा कर रहे हैं. इस स्तर पर उन्हें पद से हटाना सार्वजनिक हित के विपरीत होगा.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने 12 जुलाई को खुली अदालत में फैसला सुनाया था लेकिन फैसले की प्रति गुरुवार को अपलोड की गई. पीठ के समक्ष मुद्दा केरल हाईकोर्ट द्वारा मार्च 2017 में जिला न्यायाधीशों के चयन में मौखिक परीक्षा के आधार पर कट-ऑफ अंक तय करने के फैसले से संबंधित था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौखिक परीक्षा के बाद हाईकोर्ट द्वारा कट-ऑफ तय की गई थी, जो स्पष्ट रूप से मनमानी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल राज्य उच्च न्यायिक सेवा विशेष नियम के प्रावधानों में यह है कि नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा के जोड़ को ध्यान में रखा जाएगा.
हालांकि न्यायालय ने इस तथ्य के मद्देनजर उम्मीदवारों के चयन को अमान्य करने से परहेज किया कि उनकी नियुक्ति को छह साल बीत चुके हैं और इस दौरान नियुक्त उम्मीदवारों ने न्यायिक कार्य किए हैं.