सुप्रीम कोर्ट ने 'अदालतों' को अपने फैसले आसान भाषा में देने की सलाह दी

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अदालतों को अपने फैसले केस से संबंधित लोगों के अनुकूल भाषा में तैयार करने की सलाह देते हुए कहा है कि न्यायिक लेखन ( Judicial Writings) का उद्देश्य जटिल भाषा (Complex Language) की आड़ में पाठकों को भ्रमित करना या उलझाना नहीं है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक लेखन का उद्देश्य जटिल भाषा की आड़ में पाठकों को उलझाना नहीं है.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अदालतों को अपने फैसले केस से संबंधित लोगों के अनुकूल भाषा में तैयार करने की सलाह देते हुए कहा है कि न्यायिक लेखन ( Judicial Writings) का उद्देश्य जटिल भाषा (Complex Language) की आड़ में पाठकों को भ्रमित करना या उलझाना नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा है, ‘‘कई फैसलों में कानून और तथ्यों के जटिल प्रश्नों का निर्धारण किया जाता है. संक्षिप्तता अत्यधिक बोझ से दबी न्यायपालिका का अनिच्छित परिणाम है. यह सॉफ्टवेयर डेवलपर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली ‘कट-कॉपी-पोस्ट' सुविधा की भी शिकार है.''

शीर्ष अदालत ने कहा है कि नागरिक, शोधकर्ता और पत्रकार कानून के दायरे में शासन के लिए प्रतिबद्ध सार्वजनिक संस्थानों के तौर पर अदालतों के कामकाज का लगातार आंकलन करते हैं तथा इस प्रकार ‘फैसले लिखना' कानून के शासन को बढ़ावा देने और कानून के दायरे में ‘खराब' नियमों पर अंकुश लगाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण साधन होता है.

शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने पिछले हफ्ते जटिल मामलों सहित विभिन्न मुकदमों में निर्णय लिखते समय संवैधानिक अदालतों द्वारा अपनाए जाने वाले सिद्धांतों को निर्धारित किया. गत 16 अगस्त को सुनाया गया यह फैसला न्यायालय की वेबसाइट पर बुधवार को अपलोड किया गया. पीठ ने एक कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई से संबंधित मामले में भारतीय स्टेट बैंक और अन्य द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया.

शीर्ष अदालत ने पिछले साल हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी और कहा था कि केंद्र सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण (सीजीआईटी) के फैसले के अनुसार बैंक और अन्य के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. न्यायालय ने कहा, ‘‘हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ का निर्णय समझ से बाहर है. इस अदालत को अपील की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में ‘समझ से परे' भाषा को समझने में खुद जूझना पड़ा है. एक वादी के लिए तो निर्णय की भाषा और कठिन हो जाएगी. कानून की दृष्टि से अप्रशिक्षित वादी का सामना ऐसी भाषा से होता है जिसे समकालीन अभिव्यक्ति में सुना, लिखा या बोला नहीं जाता है.''

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के निर्णय भी भविष्य की पीठों का मार्गदर्शन करने के लिए एक मिसाल के तौर पर इस्तेमाल होते हैं और अदालती निर्णय उन लोगों को जरूर समझ में आना चाहिए, जिनका जीवन उससे प्रभावित होते हैं. न्यायालय ने कहा, ‘‘न्यायिक लेखन का उद्देश्य जटिल भाषा की आड़ में पाठक को भ्रमित करना या उलझाना नहीं है. न्यायाधीश को कानून के मुद्दों और निर्णय से संबंधित तथ्यों को वैसी भाषा में लिखा जाना चाहिए, जो आसानी से समझ आ सके. निर्णय मुख्य रूप से उन लोगों के लिए होते हैं जिनके मामले न्यायाधीशों द्वारा तय किए जाते हैं. यदि लिखे गये शब्दों का अर्थ भाषा की आड़ में खो जाता है तो निर्णयदाता के प्रति पाठक के भरोसे का क्षरण होता है.''

शीर्ष अदालत ने मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए वापस उच्च न्यायालय में भेज दिया, साथ ही यह भी कहा कि इससे पहले भी न्यायालय ने इसी तरह के निर्णयों की वजह से कुछ मामले हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय को वापस किये थे, ताकि आदेश नए सिरे से उस भाषा में पारित किये जा सकें, जो समझने लायक हो.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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