1999 के चर्चित सेनारी नरसंहार मामले (Senari massacre case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बिहार सरकार (Bihar government) की याचिका मंजूर कर ली है. सभी आरोपियों के खिलाफ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की ओर से यह याचिका दाखिल की गई है. अदालत ने सभी 13 आरोपियों को याचिका की कॉपी देने को कहा है, सभी को नोटिस जारी किया गया. गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था. बिहार सरकार की अर्जी परसुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने सोमवार को सुनवाई की.
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बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट (Patna High Court)के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए 1999 के सेनारी नरसंहार के सभी आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील की है. पटना हाईकोर्ट ने 10 की मौत और 3 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाने का निचली अदालत का आदेश पलट दिया था. बिहार सरकार ने शीर्ष अदालत में अपील करते हुए कहा कि है हाईकोर्ट का आदेश रिकॉर्ड में रखे गए सबूतों के विपरीत है और 13 चश्मदीद गवाहों की गवाही को खारिज कर दिया गया है. बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक की मांग करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा अपील के निपटारे तक सभी 13 को आत्मसमर्पण करना चाहिए. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष के गवाह विश्वसनीय नहीं हैं और आरोपी संदेह का लाभ पाने के योग्य हैं और उनकी रिहाई का आदेश दिया.
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सेनारी हत्याकांड 18 मार्च 1999 की शाम को हुआ था.18 मार्च 1999 को वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. माओवादी संगठन के कथित सदस्यों ने सेनारी गांव में एक मंदिर के पास 34 लोगों को लाइन में खड़ा होने के लिए मजबूर किया, बाद में गला काटकर और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. चिंता देवी, जिनके पति अवध किशोर शर्मा और पुत्र मधुकर उर्फ झब्बू हत्याकांड में शामिल थे, इस मामले में शिकायतकर्ता थीं, 2011 में उनकी मृत्यु हो गई. निचली अदालत द्वारा 15 नवंबर 2016 को नरसंहार कांड के 10 आरोपियों को फांसी और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी लेकिन पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 13 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था. साथ ही निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया था.