- सुप्रीम कोर्ट 22 अगस्त 2025 को दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़ने के आदेश पर अपना फैसला सुनाएगा.
- 11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों को डॉग शेल्टर्स में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था.
- SG जनरल तुषार मेहता ने आवारा कुत्तों से बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता बताया और समस्या के समाधान की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट 22 अगस्त 2025 को उस याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा, जिसमें 11 अगस्त 2025 के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है. इस आदेश में दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से 'डॉग शेल्टर्स' में भेजने का निर्देश दिया गया था. विशेष पीठ, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन. वी. अंजारिया शामिल हैं, ने 14 अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.
11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ (जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन) ने दिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे तत्काल प्रभाव से सभी क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को पकड़कर उन्हें डॉग शेल्टर्स में स्थानांतरित करें. कोर्ट ने अधिकारियों को आठ सप्ताह के भीतर शेल्टर होम्स के निर्माण की प्रगति पर रिपोर्ट सौंपने का भी आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
- दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद के नगर निगम अधिकारी जल्द से जल्द सभी इलाकों से कुत्तों को हटाना शुरू करें.
- दिल्ली सरकार और नगर निकाय तत्काल कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाए और आठ सप्ताह के भीतर ऐसे बुनियादी ढांचे के निर्माण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे.
- आवारा कुत्तों के नसबंदी और टीकाकरण के लिए आश्रय गृहों में पर्याप्त कर्मचारी होने चाहिए.
- आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में बंद रखा जाए तथा उन्हें सड़कों, कॉलोनियों या सार्वजनिक स्थानों पर न छोड़ा जाए.
- कुत्तों के आश्रय स्थलों की सीसीटीवी से निगरानी की जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई कुत्ता बाहर न छोड़ा जाए या न ले जाया जाए.
- यह ‘प्रगतिशील कार्य' है और दिल्ली के अधिकारी अगले छह से आठ सप्ताह में लगभग 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय गृह बनवाएं. इस प्रक्रिया में कोई समझौता नहीं होना चाहिए.
- यदि कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों को आश्रय स्थल पर ले जाने में बाधा डालता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सकती है.
- शिशुओं और छोटे बच्चों को किसी भी कीमत पर कुत्ते के काटने का शिकार नहीं बनने देना चाहिए, जिससे रेबीज हो सकता है.
- अधिकारी पकड़े गए और आश्रय गृहों में रखे गए आवारा पशुओं का रिकॉर्ड रखेंगे. अधिकारी एक सप्ताह के भीतर कुत्ते के काटने की शिकायतें दर्ज करने के लिए हेल्पलाइन स्थापित करें.
- अधिकारी कुत्ते के काटने के पीड़ितों को तत्काल सहायता के लिए चिकित्सा सुविधाओं की जानकारी दें. अधिकारी उन स्थानों के बारे में विस्तृत जानकारी दें जहां रेबीज के टीके उपलब्ध हैं, साथ ही टीकों के स्टॉक की भी जानकारी दें.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थिति ‘बेहद गंभीर' है, कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज के खतरे को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है.
पिछली सुनवाई में क्या हुआ?
सरकार का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के कारण बच्चों की जान जा रही है. उन्होंने जोर दिया कि इस समस्या का समाधान जरूरी है, न कि इस पर बहस. मेहता ने कहा कि देश में हर साल कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज होते हैं, और कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा प्राथमिकता है.
आवारा कुत्तों के पक्ष में दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने डॉग लवर्स और एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) की ओर से दलीलें पेश कीं.
कपिल सिब्बल: उन्होंने 11 अगस्त के आदेश पर रोक लगाने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि शेल्टर होम्स में कुत्तों को रखने से वे चिड़चिड़े और हिंसक हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि शेल्टर होम्स में बुनियादी ढांचे की कमी है, और कुत्तों को वहां रखने पर वे आपस में लड़ सकते हैं. सिब्बल ने यह भी कहा कि नसबंदी, टीकाकरण और अन्य उपायों के बाद कुत्तों को वापस छोड़ना होगा, जिससे उनकी आक्रामकता बढ़ सकती है.
अभिषेक मनु सिंघवी: उन्होंने कहा कि सरकार एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियमों का पालन नहीं कर रही है, और इसके लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है.
सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि कुत्तों को एक साथ शेल्टर में रखने से उनके बीच हिंसा और अराजकता बढ़ सकती है, और यह एक महामारी जैसी स्थिति पैदा कर सकता है. उन्होंने कुत्तों को पकड़ने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की, यह पूछते हुए कि पकड़े गए कुत्तों को कहां ले जाया जाएगा और उनका क्या होगा.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस समस्या का मूल कारण स्थानीय प्राधिकरणों की निष्क्रियता है. कोर्ट ने टिप्पणी की, “संसद ने कानून तो बना दिया, लेकिन इसे जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया गया. अगर स्थानीय निकायों ने समय पर प्रभावी कदम उठाए होते, तो आज यह स्थिति नहीं होती.” कोर्ट ने संकेत दिया कि अब इस मामले में संतुलित और ठोस दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे, ताकि कानून का पालन हो और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, “इस समस्या की सबसे बड़ी वजह जिम्मेदार विभागों की लापरवाही है. स्थानीय प्राधिकरणों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी.”