गुजरात दंगों में PM मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट सही या गलत? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

जाकिया जाफरी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जब एसआईटी की बात आती है तो आरोपी के साथ मिलीभगत के स्पष्ट सबूत मिलते हैं. राजनीतिक वर्ग भी सहयोगी बन गया है.

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दंगों के दस साल बाद 2012 में एसआईटी ने जांच रिपोर्ट दाखिल की थी. (फाइल फोटो)

साल 2002 गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच जाकिया जाफरी की याचिका पर  फैसला सुनाएगी. बता दें कि पूरे मामले में नौ दिसंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. दरअसल. 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

एसआईटी और गुजरात सरकार ने विरोध किया

रिपोर्ट में राज्य के उच्च पदाधिकारियों द्वारा गोधरा हत्याकांड के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़काने में किसी भी "बड़ी साजिश" से इनकार किया गया है. साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने SIT की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया की विरोध शिकायत को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज करने के खिलाफ उसकी चुनौती को खारिज कर दिया था. वहीं, उक्त दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका का एसआईटी और गुजरात सरकार ने विरोध किया है. 

दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने जाकिया जाफरी के बड़ी साजिश के आरोपों को नकारा है. एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले में एफआईआर या चार्जशीट दर्ज करने के लिए कोई आधार नहीं मिला. जाकिया की शिकायत पर गहन जांच की गई लेकिन कोई सामग्री नहीं मिली. यहां तक कि स्टिंग की सामग्री को भी अदालत ने ठुकरा दिया है. 

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चार्जशीट दर्ज करने में कोई सार नहीं मिला

पूरे मामले में गुजरात सरकार और एसआईटी ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर 'कढ़ाई को खौलाते रहने' का आरोप लगाया है. उन्होंने तीस्ता पर एनजीओ को मिले रुपयों में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए मामले को उछालते रहने का आरोप लगाया है. एसआईटी की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच को बताया था कि वास्तव में कुछ ने कहा कि यह स्क्रिप्ट का एक हिस्सा था. एसआईटी को एफआईआर या चार्जशीट दर्ज करने में कोई सार नहीं मिला. 

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एसआईटी ने कहा, " उन नौ में से तीन अलग-अलग अदालतों में स्टिंग सामग्री अदालत को दी थी. एक विशेष अदालत ने स्टिंग की सामग्री को भी खारिज कर दिया था. 2002 के गुजरात दंगों में एक बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहन जांच की गई, जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी. राज्य पुलिस आदि पर आरोप तेज़ी से लग रहे थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने SIT  नियुक्त की. हमने अपना काम किया, इससे कोई सहमत हो सकता है, कोई नहीं.  हो सकता है. SIT के एक सदस्य, मल्होत्रा ही बन गए थे, जब कोर्ट ने संज्ञान लिया था.

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टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं

एसआईटी द्वारा कोर्ट में कहा गया कि मामले की सुनवाई चल रही थी. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया. साल 2009 में  गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका में चूंकि एसआईटी पहले से ही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया के मामले की जांच के लिए भी कहा था. हमें शिकायत की जांच के लिए नियुक्त किया गया था, क्योंकि राज्य पुलिस ने पहले ही कई पूरक चार्जशीट के साथ 9 मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी. जब एसआईटी ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने कई चार्जशीट और कई आरोपी जोड़े. फिर तहलका टेप सामने आया. टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन एसआईटी ने पाया कि टेप की सामग्री में स्टिंग ऑपरेशन आदि से लेकर खेतान के सामने दिए गए बयानों से अविश्वास पैदा हुआ है. 

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दरअसल, जाकिया जाफरी ने एसआईटी पर आरोपियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है. पिछली सुनवाई में  सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के लिए मिलीभगत एक कठोर शब्द है. ये वही एसआईटी है, जिसने अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी और आरोपियों को दोषी ठहराया गया था. उन कार्यवाही में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली. 

इधर, जाकिया जाफरी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जब एसआईटी की बात आती है तो आरोपी के साथ मिलीभगत के स्पष्ट सबूत मिलते हैं. राजनीतिक वर्ग भी सहयोगी बन गया है. एसआईटी ने मुख्य दस्तावेजों की जांच नहीं की. 

नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई

गौरतलब है कि पूरा मामला अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसायटी में साल 2002 के 28 फरवरी में हुए दंगों से जुड़े हैं. यहां अपार्टमेंट में हुई आगजनी में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हो गई थी. एसआईटी ने दंगों की जांच की. जांच के बाद तब के गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई. अहमदाबाद सहित गुजरात के कई शहरों कस्बों में दंगे भड़के थे क्योंकि दो दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगाई गई जिससे 59 लोग जिंदा जल गए थे. ये लोग अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे थे. 

दंगों के दस साल बाद 2012 में एसआईटी ने जांच रिपोर्ट दाखिल की थी. रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को क्लीन चिट दी गई थी. याचिका में इसी रिपोर्ट को चुनौती दी गई है और दंगों में बड़ी साजिश की जांच की मांग की गई है. 

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