मराठा रिजर्वेशन को लेकर कब से चल रहा आंदोलन? जानिए- इस राजनीतिक-कानूनी लड़ाई की टाइम लाइन

मराठा आरक्षण विरोध प्रदर्शन : महाराष्ट्र में मराठा राज्य की आबादी का लगभग 33 फीसदी हिस्सा हैं, यह समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है.

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मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं है, सबसे पहले 1981 में यह मांग उठी थी.
मुंबई:

Maratha Reservation: मराठा आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र (Maharashtra) में ताजा आंदोलन ने एक बार फिर आरक्षण की जटिल राजनीति सुर्खियों में है. मराठा आरक्षण समर्थक प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को सुबह बीड जिले में महाराष्ट्र के विधायक प्रकाश सोलंके के घर में तोड़फोड़ की और आग लगा दी.

गुस्से से भरी भीड़ ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के एक दफ्तर को भी निशाना बनाया. इस पर हिंसा के बीच प्रशासन को नए सिरे से बीड और मराठवाड़ा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में सुरक्षा कड़ी करनी पड़ी.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन की ताजा लहर पर चर्चा के लिए बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठा आरक्षण के पक्ष में है. शिंदे ने कहा कि राज्य में अन्य समुदायों के मौजूदा कोटा में छेड़छाड़ किए बिना मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाना चाहिए.

बैठक में एनसीपी के दिग्गज नेता शरद पवार और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण सहित अन्य लोगों ने भाग लिया और राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया.

हालांकि मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं है. इसके लिए जोरआजमाइश चार दशकों से चल रही है. 

मराठा आरक्षण की मांग कब शुरू हुई?

महाराष्ट्र में मराठा राज्य की आबादी का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा हैं. यह समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है. सन 1981 में राज्य में मथाडी मजदूर संघ के नेता अन्नासाहेब पाटिल के नेतृत्व में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर पहला विरोध प्रदर्शन किया गया था.

यह समुदाय मराठों के लिए कुनबी जाति के प्रमाण पत्र की मांग कर रहा है जिससे वे ओबीसी श्रेणी में शामिल होकर आरक्षण पा सकेंगे. कृषि से जुड़े कुनबी जाति के लोगों को महाराष्ट्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में रखा गया है.

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साल 2014 में कांग्रेस राज्य में सत्ता में थी. कांग्रेस सरकार तब मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का अध्यादेश लाई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में एक विशेष प्रावधान- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम के तहत मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी.

साल 2019 का हाई कोर्ट का फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने जून 2019 में  मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी कर दिया.

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दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने के लिए मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया.

साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण बरकरार रखा. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की रिव्यू पिटीशन खारिज कर दी थी.

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अब केंद्र से संसद में मामला सुलझाने की मांग

हालिया भड़की हिंसा के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मांग की है कि केंद्र संसद का विशेष सत्र बुलाकर मराठा आरक्षण के मुद्दे को हल करे.

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