अंदर फंसे लोग हैं चुप... सिल्कयारा सुरंग के हीरोज ने तेंलगाना की सुरंग की लड़ाई को बताया मुश्किल

तेलंगाना की एसएलबीसी सुरंग में फंसे 8 श्रमिकों को निकालने की लगातार कोशिश की जा रही है. इसके लिए सिल्कयारा के हीरोज को भी बुलाया गया है लेकिन उनका कहना है कि यहां अंदर से उन्हें कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही और इसलिए उनके लिए यह एक अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति है.

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तेलंगाना के श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग के ढह जानें से 8 लोग उसमें फंसे हुए हैं. बता दें कि यह घटना 22 फरवरी को हुई थी और पिछले पांच दिनों से उन्हें बचाने के लिए बचाव कार्य जारी है. सुरंग में फंसे आठों श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचावकर्मी संघर्ष कर रहे हैं और उनमें से तीन लोग ऐसे हैं जो पहले भी इसी तरह की परिस्थितियों में फंसे लोगों को बाहर निकालने का काम कर चुके हैं. हालांकि, वो एक अलग परिस्थिती थी जो उत्तराखंड के पहाड़ों में हुई थी. 

दरअसल, एक साल से भी पहले उत्तरकाशी के सिल्कयारा में इसी तरह की घटना हुई थी जब एक सुरंग ढह गई थी और इसमें कई लोग फंस गए थे. इन लोगों को बाहर निकालने में 17 दिनों का समय लगा था. उस वक्त उत्तरकाशी में लोगों को मौत के मुंह से बाहर लाने वाले ये तीन बचावकर्मी आज तेलंगाना में जुटे हुए हैं और इससे भी अधिक मुश्किल परिस्थितियों में उम्मीद के बल पर 8 श्रमिकों को बचाने में जुटे हुए हैं. 

सिल्कयारा में हम आवाज सुन सकते थे... लेकिन यहां सब शांत है 

सिल्कयारा सुरंग प्रोजेक्ट के सीनियर सुपरवाइजर शशी भूषण चौहान ने एक अंग्रेजी वेबसाइट को बताया कि वो एसएलबीसी की साइट पर मौजूद हैं और जिंदगी ने उन्हें एक बार फिर ऐसी जगह ला कर खड़ा कर दिया है. इस बार उनके लिए अलग चुनौती है क्योंकि यह सुरंग केवल 33 फीट चौड़ी है और बार-बार इसमें पानी और कीचड़ जमा हो रहा है. वहीं सुरंग में फंसे लोगों से किसी भी तरह का संपर्क नहीं साधा जा रहा है. 

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उन्होंने बताया कि सुरंग के अंदर से उन्हें किसी तरह की आवाज नहीं आ रही है और पानी और कीचड़ बचाव अभियान को मुश्किल बना रहा है. सुरंग के अंदर फंसे लोग एकदम चुप हैं और ऐसी परिस्थितियों में ये चुप्पी डराने वाली होती है. लेकिन चौहान और उनकी टीम नवयुग समूह के एक मैकेनिक और औद्योगिक फैब्रिकेटर हैं जो उम्मीद पर कायम हैं और फंसे हुए श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए डटे हुए हैं. 

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उन्होंने कहा, हम वैसे ही टीमवर्क कर रहे हैं जैसे हमने सिल्कयारा में किया था. हम सभी एक ही मकसद से आगे बढ़ रहे हैं.  लेकिन यहां एक बहुत बड़ा अंतर है. सिल्कयारा में हम उन्हें सुन सकते थे. हमें पता था कि वो अंदर फंसे हुए हैं और उनके जहन में एक उम्मीद है. यहां किसी तरह की आवाज नहीं है. न कोई आवाज, न शोर, न ही किसी तरह का सिग्नल. इस वजह से चीजें और मुश्किल हो जाती हैं. हमें उनकी कंडीशन का कोई अंदाजा नहीं है और इस वजह से हर बीतता हुआ पल परिस्थितियों को और मुश्किल बना रहा है. 

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वहीं एक अन्य बचाव कार्यकर्ता ने बताया कि यह मिशन क्यों इतना चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा, "जिस मशीन का हमने सिल्कयारा में इस्तेमाल किया था, उसका यहां इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. यहां बहुत ज्यादा पानी और कीचड़ है. जमीन बहुत अनप्रिडिक्टिबल है. हम पानी हटाते हैं और तुरंत ही और पानी आ जाता है. हम कीचड़ साफ करते हैं और फिर दोबारा कीचड़ हो जाता है और हर एक कदम जो हम आगे बढ़ा रहे हैं वो हमें वापस पुरानी जगह पर ही ले जाता है." 

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