नार्को टेस्ट और पोलीग्राफी टेस्ट में क्या होता है अंतर...?

नार्को टेस्ट में नार्कोटिक्स, यानी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि आम बोलचाल की भाषा में आरोपी का स्नायुतंत्र शिथिल हो जाए, और वह चाहकर भी झूठ न बोल पाए. दूसरी ओर, पोलीग्राफी टेस्ट में आरोपी को कोई दवा नहीं दी जाती है, बल्कि उसके रक्तचाप, नब्ज़ और सांस की गति आदि को सवाल-जवाब के दौरान मापकर अंदाज़ा लगाया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है या नहीं.

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श्रद्धा वालकर हत्याकांड में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के नार्को टेस्ट और पोलीग्राफी टेस्ट की अनुमति दिल्ली पुलिस को मिल चुकी है...

नई दिल्ली:

पिछले दो हफ्ते से सुर्खियों में बने हुए श्रद्धा वालकर हत्याकांड का सच जानने के लिए पुलिस को आरोपी लिव-इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला के नार्को टेस्ट और पोलीग्राफी टेस्ट (लाई डिटेक्टर टेस्ट) की अनुमति मिल चुकी है, और अब पहले उसका पोलीग्राफी टेस्ट होगा, और फिर ज़रूरत पड़ने पर नार्को टेस्ट किया जाएगा. इस वक्त अधिकतर पाठकों के मन में जो सवाल है, वह यही है कि क्या ये दोनों टेस्ट अलग-अलग हैं, और अगर हां, तो इनमें क्या अंतर है.

नार्को टेस्ट दरअसल, नार्कोटिक्स एनैलिसिस टेस्ट कहलाता है, और जैसा नाम से ही ज़ाहिर है, इसमें नार्कोटिक्स, यानी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि आम बोलचाल की भाषा में आरोपी का स्नायुतंत्र शिथिल हो जाए, और वह चाहकर भी झूठ न बोल पाए. दूसरी ओर, पोलीग्राफी टेस्ट में आरोपी को कोई दवा नहीं दी जाती है, बल्कि उसके रक्तचाप, नब्ज़ और सांस की गति आदि को सवाल-जवाब के दौरान मापकर अंदाज़ा लगाया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है या नहीं.

नार्को टेस्ट एक मनोविज्ञानी और केस के जांच अधिकारी या फॉरेन्सिक विशेषज्ञ की मौजूदगी में किया जाता है. इसमें आरोपी को आमतौर पर 'ट्रूथ सीरम' कहे जाने वाले सोडियम पेन्टोथाल का इन्जेक्शन दिया जाता है, जिससे उसका स्नायुतंत्र शिथिल हो जाता है, और वह बनावटी बातें या झूठ बोलने की स्थिति में नहीं रहता है. दूसरी और, पोलीग्राफी टेस्ट एक मशीन के ज़रिये किया जाता है, जिसमें सवाल-जवाब के दौरान आरोपी के शारीरिक चिह्नों - रक्तचाप, नब्ज़ की गति, और पसीना आने की गति - को रिकॉर्ड किया जाता है. फिर उस मशीन के ज़रिये एकत्र किए गए आंकड़ों से पता लगाया जाता है कि आरोपी ने कहां झूठ बोला और कहां नहीं.

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, किसी भी तरह का लाई डिटेक्टर टेस्ट आरोपी की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है. ये टेस्ट तभी किए जा सकते हैं, जब आरोपी पूरी तरह स्वस्थ, यानी मेडिकली फिट हो. नार्को टेस्ट के दौरान दी जाने वाली दवा की मात्रा भी उसकी उम्र, लिंग तथा अन्य मेडिकल अवस्थाओं को ध्यान में रखकर तय की जाती है.

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