शिवसेना बनाम शिवसेना: सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की

उद्धव कैंप ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की अगुवाई में नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है. पिछली सुनवाई में सिब्बल ने मांग की थी मामले को सात जजों या बड़ी पीठ में भेजा जाना चाहिए.

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आज इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संवैधानिक पीठ पर सुनवाई होनी है. 
नई दिल्ली:

शिवसेना बनाम शिवसेना मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. पांच जजों के संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. शिंदे गुट के लिए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने उद्धव गुट की मांग पर प्रारंभिक आपत्ति जताई है और कहा कि मामले को लेकर जब वो नए स्पीकर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आए थे, तो खुद उन्होंने नबाम रेबिया के फैसले पर भरोसा किया था. अब वो इस पर सवाल उठाते हुए बड़ी बेंच को भेजने की मांग कर रहे हैं. कह रहे हैं कि इस पर पुनर्विचार हो. CJI ने कहा कि पहले ठाकरे गुट को बहस करने दीजिए, आप बाद में जवाब दे सकते हैं.

ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि हम नबाम रेबिया की इसलिए जांच की मांग कर रहे हैं. क्योंकि यह अयोग्य विधायकों के लिए एक उपकरण बन गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्पीकर अयोग्यता नोटिस पर कार्रवाई ना कर पाए. फिर राजनीति हावी हो जाती है. फिर सरकार गिरा दी जाती है और नया स्पीकर आ जाता है, फिर जो होता है वह आप  जानते ही हैं

दरअसल उद्धव ठाकरे ग्रुप की ओर से मांग की गई है कि अरुणाचल प्रदेश मामले में नबम रेबिया केस के फैसले को सात जजों के पीठ में भेजा जाए. वहीं एकनाथ शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. जिसमें उद्धव गुट के मामले को 7 जजों या 9 जजों की पीठ में भेजने का विरोध किया है. हलफनामे में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश का नबाम रेबिया फैसला विधायकों की अयोग्यता तय करने के विधानसभा स्पीकर के अधिकार को नहीं छीनता है. शिंदे कैंप के इस जवाब का मतलब ये है कि शिंदे कैंप नबाम रेबिया फैसले पुनर्विचार नहीं चाहता है.

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पीठ में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस  पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.

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23 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने  शिवसेना बनाम शिवसेना केस संविधान पीठ को भेज दिया था. संविधान पीठ को स्पीकर और राज्यपाल की शक्तियों को तय करना है.  

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नबाम रेबिया जजमेंट कहता है कि अगर किसी विधानसभा अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव लंबित है तो वो 10वीं अनुसूची के तहत विधायकों को अयोग्य करार नहीं दे सकता है.

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