राजनीति की अंतिम पारी में 10 'रन' बनाकर आउट हुए शरद पवार, कितनी बड़ी चुनौती हैं अजित पवार

महाराष्ट्र के इस चुनाव को शरद पवार का अंतिम चुनाव माना जा रहा है. वो पहले कई बार कह चुके हैं कि 2026 में राज्य सभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. लेकिन क्या अंतिम चुनाव में इतने खराब प्रदर्शन की आशंका शरद पवार को भी थी.

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नई दिल्ली:

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे शनिवार को आए.ये नतीजे बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति के लिए झप्पर-फाड़ सफलता लेकर आए. वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना, कांग्रेस और  शरद पवार एनसीपी के महाविकास अघाड़ी के लिए ये नतीजे किसी बुरे सपने की तरह आए. महाराष्ट्र चुनाव के ये नतीजे अगर किसी को सबसे अधिक निराश करने वाले हैं, तो वो हैं शरद पवार. दरअसल पवार कई बार कह चुके हैं कि 2026 में उनका राज्य सभा सदस्य का कार्यकाल खत्म होने के बाद वो सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगे.राजनीति की अपनी इस अंतिम पारी में इतने निराशाजनक प्रदर्शन की उम्मीद तो शायद शरद पवार को भी नहीं रही होगी.      

शरद पवार को किसने दिया झटका

शरद पवार आज महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष पवार की गहरी पैठ है. हर दल के नेता उनकी बात को सुनते और गुनते हैं. महाराष्ट्र के इन नतीजों ने पवार की पार्टी के भविष्य पर भी सवाल उठा दिए हैं. ऐसा नहीं है कि पवार को लगा यह पहला झटका है. इससे पहले उन्हें एक ऐसा ही झटका उस समय लगा था जब उनके भतीजे अजित पवार ने कुछ विधायकों के साथ मिलकर एनसीपी में बगावत कर शिवसेना और बीजेपी की सरकार को समर्थन दे दिया था.उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. यह पवार को लगा बहुत बड़ा झटका था. अजित पवार ने अपने चाचा से पार्टी और पार्टी का चुनाव निशान भी हथिया लिया था. हालांकि लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. लेकिन पांच महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी की लुटिया डूब गई. 

लोकसभा चुनाव बनाम विधानसभा चुनाव

पवार की एनसीपी ने यह विधानसभा चुनाव 87 सीटों पर लड़ा.उसने 11.28 फीसदी वोट लाते हुए 10 सीटों पर जीत दर्ज की.पवार की पार्टी का स्ट्राइक रेट करीब 12 फीसदी रहा.राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस तरह का प्रदर्शन पवार के जीवन में कभी नहीं देखा गया था. जबकि छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार की एनसीपी का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी थी. पवार की एनसीपी ने जिन 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से आठ सीटों पर उसे जीत मिली थी. उसका स्ट्राइक रेट 80 फीसदी था.

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सुप्रिया सुले को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अजित पवार ने बगावत कर दी थी.

विधानसभा चुनाव में पवार की एनसीपी की सहयोगी कांग्रेस को 12.42 फीसदी वोट और 16 सीटें मिली हैं. वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 20 सीटें और 9.96 फीसदी वोट मिले हैं. तीनों दल मिलाकर कुल 23.70 फीसदी वोट ही हासिल कर पाए. वहीं बीजेपी, अजित पवार की एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की महायुति ने 48.16 फीसद वोट और 230 सीटें जीत ली हैं.शरद पवार और उनकी साथी पार्टियों का यह हाल तब हुआ जब अभी कुछ दिन पहले ही हुए लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी ने शानदार किया था.इस गठबंधन ने राज्य की 48 सीटों में से 30 पर जीत का परचम लहराया था.कांग्रेस ने जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से 13 में जीती, पवार की एनसीपी ने जिन 10 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से आठ जीती और छाकरे की शिवसेना ने जिन 21 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से नौ पर जीत दर्ज की थी. 

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कौन है महाराष्ट्र की जीत का हीरो

शरद पवार से उलट अजित पवार इस चुनाव में हीरो बनकर उभरे हैं. अजित पवार का प्रदर्शन भी लोकसभा चुनाव के बाद बहुत सुधरा है. अजित पवार की एनसीपी लोकसभा चुनाव में केवल एक सीट ही जीत पाई थी. खुद उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार भी चुनाव हार गई थी.बारामति में उन्हें शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने मात दी थी. लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने अजित पवार के कद को काफी बढ़ा दिया है. अजित पवार की एनसीपी ने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा और 41 सीटों पर जीत दर्ज की. शरद पवार ने अजित पवार को उनके ही चुनाव क्षेत्र में घेरने की कोशिश की थी. उन्होंने बारामती में अजित के भतीजे युगेंद्र पवार को ही उनके खिलाफ खड़ा कर दिया था. लेकिन वो अजित पवार को जीतने से नहीं रोक पाए. इस जीत के साथ ही अजित की एनसीपी ने खुद को असली एनसीपी साबित कर दिया है.इस तरह से भतीजे ने अपना अंतिम चुनाव लड़ रहे चाचा को राजनीति के मैदान में पटकनी दे दी. 

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शरद पवार की राजनीति करीब छह दशक की है. वो 1958 में युवा कांग्रेस में शामिल हुए थे. उन्होंने अपना पहला चुनाव बारामती से 1967 में लड़ा था.इस चुनाव में उन्हें जीत मिली थी. उस समय शरद पवार की आयु केवल 38 साल ही थी. इसके एक दशक बाद ही वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए. वो 1978 में महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे.इसके बाद तीन और अवसरों पर सीएम की कुर्सी पर बैठे. मुख्यमंत्री के रूप में शरद पवार से सहकारिता आंदोलन को पूरे महाराष्ट्र में पहुंचाया.केंद्र में कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहते हुए शरद पवार ने राज्य में कृषि आधारित उद्योगों को लगवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.  पुणे में सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को लाने और पश्चिम महाराष्ट्र के आर्थिक विकास का योगदान भी शरद पवार को दिया जा सकता है. 

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शरद पवार का राजनीति जीवन

शरद पवार की पहचान एक अवसरवादी नेता के रूप में की जाती है. वो अवसरों को भुनाना जानते हैं. सोनिया गांधी के विदेश मूल का मुद्दा उठाकर वो कांग्रेस से अलग हो गए थे. कांग्रेस  से अलग होकर पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी. वो विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी अपने लिए रास्ता बना लेते हैं. इसलिए उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. लेकिन छह दशक की राजनीति में उन्हें चुनौती किसी बाहरी ने नहीं बल्कि उनके घर के लोगों ने ही दी है. जिस अजित पवार को उन्होंने राजनीति का ककहरा सिखाया उन्होंने ने ही पिछले साल जुलाई में उनके खिलाफ बगावत कर दी. इसके बाद से शरद पवार की एनसीपी भी उनके हाथ से जाती रही. इस विधानसभा चुनाव ने इस बात पर मुहर भी लगा दी है कि अजित पवार की एनसीपी ही असली एनसीपी है. महाराष्ट्र चुनाव के ये नतीजे शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव के अंत की घोषणा है या अजित पवार के नेतृत्व में एक नए युग का आरंभ,इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा. 

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