हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के 2018 में दिए गए एक फैसले का अनुपालन किया गया तो गुरुग्राम और फरीदाबाद में कई इमारतों को ध्वस्त करना होगा. उन्होंने कांत एन्क्लेव मामले में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के अमल पर सवाल उठाया, जिसमें कोर्ट ने राज्य में 'वन भूमि' पर निर्मित सभी संरचनाओं को गिराने का आदेश दिया था. खट्टर सरकार ने इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक हलफनामा सौंपा है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा था कि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) में सभी अधिसूचित भूमि को 'वन भूमि' माना जाना था. अदालत ने 23 जुलाई को राज्य सरकार को अरावली वन भूमि पर सभी अनधिकृत संरचनाओं को गिराने का निर्देश दिया था. राज्य सरकार ने निर्देश का पालन किया और खोरी गांव में एक झुग्गी बस्ती को ध्वस्त कर दिया और फार्महाउस, बैंक्वेट हॉल आदि सहित वाणिज्यिक संरचनाओं के कई मालिकों को कारण बताओ नोटिस भेजा.
इसके बाद कई लोगों ने दावा किया कि उनकी संपत्ति परिभाषित 'वन भूमि' से बाहर है.'' हालांकि, वन विभाग ने यह कहते हुए सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया कि इन जमीनों को PLPA, 1900 के तहत अधिसूचित किया गया था और इन्हें 'वन भूमि' माना गया है.
गुरुग्राम के सोहना के एक गांव में शनिवार को एक सभा में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा कि वन अधिनियम और पीएलपीए के तहत अधिसूचित भूमि अलग-अलग हैं. उन्होंने कहा कि हरियाणा का 40 प्रतिशत क्षेत्र पीएलपीए के अंतर्गत आता है.
मुख्यमंत्री ने कहा, "वन अधिनियम के तहत अधिसूचित क्षेत्र और पीएलपीए (पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम) के तहत अधिसूचित भूमि अलग-अलग हैं. कुछ गलतियों के कारण दोनों भूमि को एक माना गया. हरियाणा का 40 प्रतिशत क्षेत्र पीएलपीए के अंतर्गत आता है."
खट्टर ने यह भी कहा, "पीएलपीए मिट्टी के क्षरण को संरक्षित करने और बहाल करने के उद्देश्य से था, और केवल एक सीमित अवधि के लिए लागू था. अगर अधिकारियों ने कोर्ट द्वारा परिभाषित वन भूमि से सभी संरचनाओं को हटाना शुरू किया तो गुरुग्राम और फरीदाबाद में कई इमारतों को ध्वस्त करना होगा."
राज्य सरकार ने गुरुवार को शीर्ष अदालत में एक हलफनामा पेश किया है, जिसमें कहा गया है कि पीएलपीए के तहत सभी भूमि को "वन भूमि" के रूप में नहीं माना जा सकता है. खट्टर सरकार ने 2018 में अदालत में जो कहा था, उस पर यू-टर्न ले लिया है. खट्टर ने आगे दावा किया कि सुनवाई के दौरान पहले गलत हलफनामे पेश किए गए थे.
उन्होंने कहा, "पहले गलत हलफनामे पेश किए गए थे. 85 पृष्ठों के हमारे हलफनामे में हमने सुप्रीम कोर्ट से इसे दोनों अधिनियम (वन भूमि अधिनियम और पीएलपीए) से अलग करने और इस पर निर्णय लेने का अनुरोध किया है."