37 साल पुराने रेप केस में SC का बड़ा फैसला, 53 साल का दोषी नाबालिग करार, JJB के पास भेजा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग होने का दावा किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है. पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि दोषी को सुप्रीम कोर्ट में नाबालिग होने का दावा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. 

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अजमेर रेप केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.
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  • राजस्थान के अजमेर में 37 साल पुराने रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को नाबालिग घोषित किया.
  • अपराध के समय आरोपी की उम्र 16 वर्ष 2 महीने 3 दिन थी, इसलिए किशोर न्याय अधिनियम लागू होगा.
  • सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश होने का आदेश दिया है.
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नई दिल्ली:

राजस्थान के अजमेर में 37 साल पहले 11 साल की बच्ची से रेप के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला दिया है. अदालत ने माना कि वारदात के वक्त दोषी नाबालिग (Ajmer Rape Case) था. वहीं सजा के लिए मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड भेज दिया. बता दें कि दोषी अब 53 साल का हो चुका है. उसे अब JJB के सामने पेश होना होगा. JJB दोषी को अधिकतम तीन साल के लिए स्पेशल होम भेज सकता है. CJI बी आर गवई और जस्टिस ए जी मसीह की बेंच ने यह फैसला दिया है.

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रेप केस में 53 साल का दोषी नाबालिग करार

 राजस्थान के अजमेर जिले में 11 साल की बच्ची के साथ रेप के 37 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार तो रखी लेकिन उसे नाबालिग घोषित कर दिया. बेंच ने 53 साल के हो चुके दोषी को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश होने का निर्देश दिया है.  

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने क्या कहा? 

  •  किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 में निहित प्रावधान लागू होंगे
  • परिणामस्वरूप, निचली अदालत द्वारा दी गई और हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखी गई सजा को रद्द करना होगा क्योंकि यह कायम नहीं रह सकती.
  • 2000 अधिनियम की धारा 15 और 16 के आलोक में उचित आदेश पारित करने के लिए मामला बोर्ड को भेजा जाता है. 
  •  अपीलकर्ता को 15 सितंबर को बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है.

बता दें कि साल 1993 में किशनगढ़ के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को धारा 376 के तहत बलात्कार का दोषी ठहराया था और 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. वह पहले ही डेढ़ साल की सजा काट चुका है. दोषी निचली अदालत के आदेश को राजस्थान हाईकोर्ट ने जुलाई 2024 में बरकरार रखा था. इससे पहले दोषी ने नाबालिग होने का मुद्दा नहीं उठाया था. लेकिन उसने ज़िक्र पहली बार सुप्रीम कोर्ट में किया,  जब उसने दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील दायर की. 

अपराध के समय दोषी की उम्र 16 साल थी

 उसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर के किशनगढ़ में अधिकार क्षेत्र वाले जिला और सत्र न्यायाधीश को उसके इस दावे की जांच करने का निर्देश दिया था. जज ने जांच और दस्तावेज़ी साक्ष्यों पर गौर किया और कहा कि अपराध के समय वह नाबालिग था. अपराध के समय  यानी 17 नवंबर, 1988 को उसकी उम्र 16 वर्ष 2 महीने और 3 दिन थी. उसकी जन्मतिथि 14 सितंबर, 1972 बताई गई.

नाबालिग होने का दावा किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है

CJI  बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने ये रिपोर्ट मंजूर करते हुए पांच साल की सजा रद्द कर दी. अदालत ने कहा कि नाबालिग होने का दावा किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है. पीठ ने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि दोषी को सुप्रीम कोर्ट में नाबालिग होने का दावा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. 

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