8 साल पहले रहस्यमयी तरीके से गायब हुआ था IAF का एयरक्राफ्ट, इन वैज्ञानिकों और मशीनों ने सुलझाई गुत्थी

इंडियन एयरफोर्स के रजिस्ट्रेशन नंबर K-2743 वाले An-32 एयरक्राफ्ट ने 22 जुलाई 2016 को सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर चेन्नई के तंबरन एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी. एयरक्राफ्ट चेन्नई तट से 280 किमी दूर रडार से बाहर हो गया. इस हादसे के करीब 8 साल बाद एयरक्राफ्ट का मलबा उसी क्षेत्र में तट से 310 किमी दूर पाया गया है.

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नई दिल्ली:

बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) के ऊपर से 8 साल पहले अचानक लापता हुए इंडियन एयरफोर्स ( Indian Air Force Aircraft) के AN-32 एयरक्राफ्ट का रहस्य आखिरकार का सुलझ गया है. 12 जनवरी को खबर आई कि एयरक्राफ्ट का मलबा चेन्नई तट से 310 किलोमीटर दूर बरामद हुआ. इस एयरक्राफ्ट में करीब 29 लोग सवार थे. एक ऑपरेशन मिशन के दौरान अचानक ये लापता हो गया था. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने अगर मदद न की होती, तो शायद ये रहस्य सुलझाया नहीं जा सकता था.

NDTV ने इस मिशन के पीछे के वैज्ञानिकों से बात की. इस दौरान हमने पाया कि ये महज इत्तेफाक था कि एक हाईटेक सबमरीन को मलबे वाली जगह पर ले जाया गया और एयरक्राफ्ट का पता चल गया.

इंडियन एयरफोर्स के रजिस्ट्रेशन नंबर K-2743 वाले An-32 एयरक्राफ्ट ने 22 जुलाई 2016 को सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर चेन्नई के तंबरन एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी. इसे करीब 11 बजकर 45 मिनट पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में लैंड करना था. उड़ान भरने के 16 मिनट बाद पायलट ने आखिरी कॉल की और कहा कि सब कुछ नॉर्मल है.

इसके तुरंत बाद एयरक्राफ्ट चेन्नई तट से 280 किमी दूर सुबह 9 बजकर 12 मिनट के आसपास रडार से बाहर हो गया. इस हादसे के करीब 8 साल बाद एयरक्राफ्ट का मलबा उसी क्षेत्र में तट से 310 किमी दूर पाया गया है.

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एयरक्राफ्ट का पता लगाने के लिए इंडियन एयरफोर्स और नेवी ने बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाया था. नेवी के डोर्नियर एयरक्राफ्ट और 11 जहाज - सह्याद्री, राजपूत, रणविजय, कामोर्टा, किर्च, कार्मुक, कोरा, कुथार, शक्ति, ज्योति, घड़ियाल और सुकन्या को भी इस काम में लगाया गया था. लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी. न तो एयरक्राफ्ट का पता चला और न ही कोई मलबा ऊपर आया.

चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के डायरेक्टर डॉ. जीए रामदास ने NDTV से कहा, "जनवरी की शुरुआत में हम एक वैज्ञानिक खोज पर थे. इसी दौरान हमने समुद्र तल पर अप्राकृतिक चीजें देखीं. बारीकी से जांच करने पर पता चला कि ये एक हवाई जहाज के मलबे जैसा दिखता है".

डॉ. जीए रामदास ने कहा, "इसके बाद इंडियन एयरफोर्स ने कंफर्म किया कि मलबा 2016 में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयरक्राफ्ट का था." रामदास कहते हैं, "NIOT दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में मारे गए बहादुर वायुसैनिकों के परिवारों को कुछ मदद देने में सक्षम था."

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2022 में भारत ने नॉर्वे से ओशन मिनरल एक्सप्लोरर (OMe-6000) सबमर्सिबल का अधिग्रहण किया था, जो समुद्र की सतह से 6,000 मीटर की गहराई तक गोता लगा सकता है. यह 6.6 मीटर लंबी, नारंगी, गहरे समुद्र में अनमैन्ड ऑटोनॉमस सबमरीन थी,  जिसने इंडियन एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट के मलबे की खोज की थी.

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क्या मलबे का मिलना वैज्ञानिक चमत्कार?
गहरे समुद्र में मिशन का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक डॉ. एस रमेश और उनकी टीम को सबमरीन का कॉलीब्रेशन ट्रायल (calibration trials) करते समय एयरक्राफ्ट का मलबा मिला. मिशन का मकसद बंगाल की खाड़ी में पाए जाने वाले ऊर्जा के समृद्ध स्रोत गैस हाइड्रेट्स को बेहतर ढंग से समझना था.

डॉ. एस रमेश ने कहा, "एयरक्राफ्ट के ब्लैक बॉक्स का पता नहीं चला है. अगर टारगेटेड और इंटेंसिव सर्च ऑपरेशन चलाया जाए, तो ब्लैक बॉक्स मिल सकता है. हालांकि, ये काम बहुत मुश्किल है."

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इससे पहले साल 2014 में मलेशिया एयरलाइंस का एयरक्राफ्ट 370 (MH370) भी हिंद महासागर के ऊपर रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था. इसमें 239 लोग सवार थे. कई देशों के बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन के बाद भी अब तक इस एयरक्राफ्ट का पता नहीं चल पाया है. ऐसे में भारत में AN-32 एयरक्राफ्ट का मलबा खोजे जाने के कुछ मायनों में वैज्ञानिक चमत्कार माना जा रहा है.

रक्षा मंत्रालय ने 12 जनवरी को जारी एक बयान में कहा था, "भारतीय वायुसेना का AN-32 विमान (रजिस्ट्रेशन नंबर K-2743) 22 जुलाई 2016 को एक ऑपरेशनल मिशन के दौरान बंगाल की खाड़ी के ऊपर लापता हो गया था. इस एयरक्राफ्ट में 29 कर्मी सवार थे. राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान की ओर से तैनात एक ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल (AUV) की ओर से कुछ तस्वीरें ली गईं, जिसकी जांच में इस रहस्य पर से पर्दा हटा है."

रक्षा मंत्रालय ने कहा, "तस्वीरों की जांच करने पर उन्हें AN-32 एयरक्राफ्ट के अनुरूप पाया गया. बयान में यह भी बताया गया कि अतीत में अन्य किसी एयरक्राफ्ट के लापता होने की कोई जानकारी नहीं है. इसलिए यह मलबा AN-32 से संबंधित होने की ओर इशारा करता है."

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संसाधनों का दोहन
OMe-6000 एक मल्टी रोल व्हीकल है, जो कॉमर्शियल, साइंटिफिक और डिफेंस एप्लिकेशन के लिए हाई रिज़ॉल्यूशन डेटा कैप्चर कर सकता है. इसकी मैन्युफैक्चरिंग नॉर्वे की शिप मेकर कंपनी 'कोंग्सबर्ग' ने की है. कोंग्सबर्ग के मुताबिक, यह मार्केट में मौजूद सबसे फ्लेक्सिबल AUV (ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल) है. ये सिंथेटिक एपर्चर सोनार, मल्टी-बीम इको साउंडर्स, कैमरा, लेजर, साइंटिफिक सेंसर और सब बॉटम प्रोफाइलर्स की एक डिटेल सीरीज को ले जाने में सक्षम है.

OMe-6000 भारत की गहरे समुद्र की खोज क्षमताओं के लिए एक बहुत ही उपयोगी हथियार है. गहरे समुद्र में मिशन का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक डॉ. एस रमेश कहते हैं, "2.1 टन की मशीन भारत के रिसर्च वेसेल (अनुसंधान पोत) सागर निधि से ऑपरेट होती है. ये पहले ही लगभग 15 गोता लगा चुकी है. उन्होंने कहा, "OMe-6000 मिनरल रिच पॉली-मेटालिक नोड्यूल्स का पता लगाने और गहरे हिंद महासागर की बायोडायवर्सिटी का डॉक्युमेंटेशन करने में भी मदद करेगा."

NIOT के डायरेक्टर रामदास ने कहा कि भारत में 7500 किलोमीटर की विशाल तटरेखा है. समुद्री संसाधनों का निरंतर दोहन देश के विकास का रास्ता है. उन्होंने कहा, 'गहरे समुद्र में चलने वाली सबमरीन इसे हासिल करने में काफी फायदेमंद होगी."

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