सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में परिसीमन और विधानसभा सीटों में बदलाव के खिलाफ दाखिल याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सभी पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. सुप्रीम कोर्ट इस फैसले में तय करेगा कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन और विधानसभा सीटों के बदलाव की प्रकिया सही है या नहीं?
जम्मू कश्मीर परिसीमन और विधानसभा सीटें बढ़ाने के खिलाफ याचिका का केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने विरोध किया. सरकार ने कहा कि परिसीमन खत्म हो चुका है और गजट में नोटिफाई भी हो चुका है. दो साल बाद इस तरह याचिका दाखिल नहीं की जा सकती है. ऐसे में अब अदालत कोई आदेश जारी ना करे और याचिका को खारिज करे.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, याचिकाकर्ता ने कानून के प्रावधानों को चुनौती नहीं दी है. याचिकाकर्ता ने संवैधानिक चुनौती भी नहीं दी है. पहले भी संवैधानिक रूप से तय विधानसभा सीटों की संख्या को पुनर्गठन अधिनियमों के तहत पुनर्गठित किया गया था. 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया.
जम्मू कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था. याचिका में सवाल उठाया गया था कि केवल जम्मू-कश्मीर में ही क्यों लागू किया गया और उत्तर पूर्वी राज्यों को क्यों छोड़ दिया गया है. इसका जवाब यह है कि 2019 में नॉर्थईस्ट इलाके में भी परिसीमन शुरू किया गया था लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों में आंतरिक अशांति की वजह से परिसीमन नहीं हो सका. 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. इसके बाद बार-बार जहां आपत्ति मांगी गई, लेकिन ये याचिका 2022 में दाखिल की गई, जब परिसीमन खत्म हो चुका है और गजट में नोटिफाई भी हो चुका है.
चुनाव आयोग के वकील ने कहा, कानून के अनुसार केंद्र सरकार के पास परिसीमन आयोग के गठन की शक्ति है. जहां तक सीटों की संख्या में वृद्धि का संबंध है, आपत्ति उठाने के लिए लोगों को पर्याप्त अवसर दिया गया था. धारा 10 (2) के अनुसार परिसीमन आदेश अब कानून बन चुका है.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, लोकसभा में जब पूछा गया कि आंध्रप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत सीटें कब बढ़ाई जाएंगी को केन्द्र सरकार के मंत्री ने जवाब दिया था कि 2026 तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह इस मामले में कुछ और दस्तावेज दाखिल करना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दी थी. 30 अगस्त 2022 को जम्मू-कश्मीर के चुनाव क्षेत्रों के लिए प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में जारी की गई अधिसूचना को अब चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ता से कहा था कि आप दो साल से अब तक कहां सो रहे थे? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर केंद्र, जम्मू कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से छह हफ्ते में जवाब तलब किया था.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले में नोटिस जारी करने के बाद जवाब देते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने कहा है कि विधानसभा चुनाव के लिए विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के लिए परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती है.
परिसीमन आयोग की 25 अप्रैल को सौंपी गई फाइनल रिपोर्ट के मुताबिक परिसीमन के जरिए जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए 83 सीटों की जगह 90 हो जाएंगी. इन पर विधानसभा और पांच नई प्रस्तावित लोकसभा सीटों पर चुनाव होगा.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र शासित प्रदेश में परिसीमन करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि यह परिसीमन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट 2019 की धारा 63 और संविधान के अनुच्छेद 81, 82,170, 330, 332 के खिलाफ है. इसके अलावा याचिका में जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग के गठन को भी असंवैधानिक बताया गया है. याचिका में सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत देश में अगला परिसीमन 2026 में होना ही है ऐसे में अलग से जम्मू कश्मीर में परिसीमन क्यों किया जा रहा है?
यह याचिका जम्मू-कश्मीर के निवासी हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ मोहम्मद अयूब मट्टू द्वारा दायर की गई है.