कंपनी के भ्रामक विज्ञापनों (Misleading Advertisement) के लिए पतंजलि (Patanjali) के संस्थापक रामदेव (Ramdev) और बालकृष्ण के माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज कहा कि हम इस मामले में उदार नहीं होना चाहते. अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मामले में केंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं है. न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि माफी कागज पर है. हम इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, हम इसे वचन का जानबूझकर उल्लंघन मानते हैं.
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, "जब तक मामला अदालत में नहीं आया, अवमाननाकर्ताओं ने हमें हलफनामा भेजना उचित नहीं समझा. उन्होंने इसे पहले मीडिया को भेजा, कल शाम 7.30 बजे तक यह हमारे लिए अपलोड नहीं किया गया था, वे स्पष्ट रूप से प्रचार में विश्वास करते हैं. पतंजलि संस्थापकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह रजिस्ट्री की ओर से नहीं बोल सकते और माफी मांगी जा चुकी है.
जब राज्य प्राधिकारी ने आपसे हटने के लिए कहा तो आपके जवाबों पर गौर करें, आपने कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा कि हमारे खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा. इसके बाद अदालत ने उत्तराखंड सरकार की ओर रुख किया और सवाल किया कि लाइसेंसिंग निरीक्षकों ने कार्रवाई क्यों नहीं की और तीन अधिकारियों को एक साथ निलंबित कर दिया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि 2021 में, मंत्रालय ने एक भ्रामक विज्ञापन के खिलाफ उत्तराखंड लाइसेंसिंग प्राधिकरण को लिखा था.
जवाब में कंपनी ने लाइसेंसिंग अथॉरिटी को जवाब दिया. हालांकि, अथॉरिटी ने कंपनी को चेतावनी देकर छोड़ दिया. 1954 का अधिनियम चेतावनी का प्रावधान नहीं करता है और अपराध को कम करने का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसा 6 बार हुआ है, लाइसेंसिंग निरीक्षक चुप रहे. अधिकारी की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं है. बाद में नियुक्त व्यक्ति ने वैसा ही कार्य किया. उन सभी तीन अधिकारियों को अभी निलंबित किया जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि लाइसेंसिंग प्राधिकारी "अवमानना करने वालों के साथ मिलीभगत" में शामिल थे. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मजाक उड़ाया जा रहा है कि आप एक डाकघर की तरह काम कर रहे हैं, क्या आपने कानूनी सलाह ली? यह शर्मनाक है.
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