सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू, सिख, जैन, और बौद्ध धार्मिक संस्थानों की संपत्ति के रख रखाव और प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका पर याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अपनी जनहित याचिका की प्रार्थना तो देख लीजिए. प्रार्थना ऐसी होनी चाहिए जिस पर हम विचार कर सकें. आपकी प्रार्थना तो लोकप्रियता पाने और मीडिया में बने रहने के लिए है.आप पहले अपनी याचिका वापस लीजिए वरना हम उसे खारिज करने जा रहे हैं. याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी वापस ले ली. दूसरी अर्जी दाखिल करने की छूट चाह रहे थे लेकिन CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लेकिन ये याचिका उनको वापस लेनी होगी इसके बाद उपाध्याय ने अर्जी वापस ले ली. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक अन्य केस में इस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने को कहा.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी की शिकायत
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि अश्विनी उपाध्याय अपनी जनहित याचिका की जानकारी सबसे पहले मीडिया को बताते हैं. जबकि कोर्ट पहले इनकी प्रार्थना देख ले. ये जिन मुद्दों पर कोर्ट का आदेश चाहते हैं वो अधिकार तो पहले ही संविधान में लिखा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर देश भर के तमाम धार्मिक स्थलों के मैनेजमेंट के लिए एक समान कानून बनाने की गुहार लगाई गई थी.अर्जी में कहा गया है कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को धार्मिक स्थलों के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जैसा कि मुस्लिम समुदाय को मिला हुआ है.
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक संस्थानों और स्थलों के रखरखाव और मैनजमेंट राज्य सरकार के हाथों में है और इसके लिए जो कानून बनाया गया है उसे खारिज किया जाए क्योंकि ये कानून संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है.सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर दाखिल अर्जी में केंद्र सरकार के होम मिनिस्ट्री, लॉ मिनिस्ट्री और देश भर के तमाम राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया है. अर्जी में कहा गया है कि अभी के कानून के मुताबिक राज्य सरकारें हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक स्थलों को नियंत्रित करता है.
मौजूदा कानून के तहत राज्य सरकार के अधिकार में तमाम मंदिर, गुरुद्वारा आदि का कंट्रोल है लेकिन मुस्लिम, धार्मिक स्थल का कंट्रोल सरकार के हाथों में नहीं है. सरकारी कंट्रोल के कारण मंदिर, गुरुद्वारा आदि की स्थिति कई जगह खराब है. दरअसल हिंदू रिलिजियस चैरिटेबल एनडोमेंट्स एक्ट के तहत राज्य सरकार को इस बात की इजाजत है कि वह मंदिर आदि का वित्तीय और अन्य मैनेजमेंट अपने पास रखे. इसके लिए राज्य सरकार के विभाग और मंदिर आदि का मैनेजमेंट अपने पास रखते हैं.
मुस्लिमों की तरह मिले अधिकार
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 कानून के सामने भेदभाव को रोकता है. लिंग, जाति, धर्म और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं हो सकता.याचिका में गुहार लगाई गई है कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिले जैसा कि मुस्लिम आदि को मिला हुआ है.साथ ही हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के लिए चल व अचल संपत्ति बनाने का भी अधिकार मिले. यह भी गुहार लगाई गई है कि अभी मंदिर आदि को नियंत्रित करने के लिए जो कानून है उसे खारिज किया जाए. साथ ही केंद्र व लॉ कमिशन को निर्देश दिया जाए कि वह कॉमन चार्टर फॉर रिलिजियस एंड चैरिटेबल इंस्टीट्यूट के लिए ड्राफ्ट तैयार करे और एक यूनिफॉर्म कानून बनाए.
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