"शादी के आधार पर नौकरी से नहीं निकाल सकते" : महिला सैन्य नर्सिंग अधिकारी ने SC में जीती 26 साल पुरानी जंग

Supreme Court on Women's Rights: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह का नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक बड़ा मामला है. 

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महिलाओं के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का ऐतिहासिक फैसला आया है.  कोर्ट ने कहा कि शादी के आधार पर महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. महिला कर्मियों को शादी के अधिकार से वंचित करने का आधार बनाने वाले नियम असंवैधानिक है. ये पितृसत्तात्मक नियम है, जो मानव गरिमा को कमजोर करता है. निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को कमजोर करता है . कोर्ट ने केंद्र को शादी के आधार पर सेवा से बर्खास्त की गई  सैन्य नर्सिंग अधिकारी को 60 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया. याचिकाकर्ता सेलिना जॉन के लिए ये 26 साल पुरानी कानूनी लड़ाई का अंत है.

शादी के आधार पर सेना ने सेवाओं से रिलीज कर दिया...

इस मामले में याचिकाकर्ता को सैन्य नर्सिंग सेवाओं के लिए चुना गया था और वह दिल्ली के आर्मी अस्पताल में प्रशिक्षु के रूप में शामिल हुई थी. उन्हें NMS में लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन दिया गया था. उसने एक सेना अधिकारी मेजर विनोद राघवन के साथ विवाह कर लिया, हालांकि, लेफ्टिनेंट  के पद पर सेवा करते समय उन्हें सेना से रिलीज कर दिया गया. संबंधित आदेश ने बिना कोई कारण बताओ नोटिस या सुनवाई का या  मामले का बचाव करने का अवसर दिए बिना उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं.  इसके अलावा, आदेश से यह भी पता चला कि उन्हें शादी के आधार पर रिहा किया गया था.

लैंगिक भेदभाव और असमानता का बड़ा मामला- SC

मामला सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल, लखनऊ में गया, जिसने आदेश को रद्द कर दिया था और सभी परिणामी लाभ और बकाया वेतन भी प्रदान कर दिया था. ट्रिब्यूनल ने उसकी सेवा बहाली की भी इजाजत दे दी. केंद्र ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. शुरुआत में अदालत ने कहा कि ये नियम केवल महिलाओं पर लागू होते हैं और इन्हें 'स्पष्ट रूप से मनमाना' माना जाता है. यह नियम केवल महिला नर्सिंग अधिकारियों पर लागू था. इस तरह का नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक बड़ा मामला है. 

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