समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट इसमें यह तय करेगा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाले पांच जजों की संविधान पीठ ने 10 दिन तक इस मामले की सुनवाई की है.
पीठ में चीफ जस्टिस के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. केंद्र सरकार शुरू से आखिर तक इस मांग का विरोध करती रही है. सरकार ने कहा कि ये न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है, बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 160 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी.
सुनवाई के दौरान पीठ ने एक बार यहां तक कहा कि बिना कानूनी मान्यता के सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? यानी बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा बच्चा गोद लेने आदि के लिए सरकार संसद में क्या कर सकती है? सरकार ने भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की समिति बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने को तैयार है.
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं, यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा. लेकिन इससे पहले कई स्तर पर इसका विरोध हो रहा है. केंद्र सरकार और सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया है.
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
केंद्र की तरफ से तुषार मेहता ने कहा कि सरकार कानूनी मान्यता दिए बिना कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है जिनका वे सामना कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि प्रत्येक सामाजिक या व्यक्तिगत संबंध के रूप में मान्यता देने के लिए राज्य पर कोई सकारात्मक दायित्व नहीं है.बड़ी संख्या में रिश्ते हैं, सभी को मान्यता नहीं दी जा सकती है. राज्य को संबंधों को पहचानने में धीमा होना चाहिए. यह तभी पहचान सकता है जब वैध राज्य हित में उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता हो.194 देशों में से कुछ ही देशों ने ऐसी शादियों को मान्यता दी है.