निजी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनकी सामग्री की जब्ती, जांच और संरक्षण को लेकर याचिका पर सुनावाई करते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के हलफनामे पर असंतोष जताया. साथ ही केंद्र को नए सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा. कोर्ट ने कहा कि इनमें व्यक्तिगत सामग्री होती है और हमें इसे संरक्षित करना है. लोग इस पर जीते हैं. हम जवाबी हलफनामे से संतुष्ट नहीं हैं. हम अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के संदर्भ में एक नया और उचित जवाब चाहते हैं. 26 सितंबर को अगली सुनवाई होगी.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने ये आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दायर जवाबी हलफनामा अधूरा और असंतोषजनक है. सुप्रीम कोर्ट निजी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व उनकी सामग्री की जब्ती, जांच और संरक्षण के संबंध में देश में जांच एजेंसियों को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है. ये याचिका शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के एक समूह ने दाखिल की है.
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की, कि कई बार ऐसे उपकरणों में व्यक्तिगत सामग्री या काम होता है जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता होती है क्योंकि शिक्षा में लोगों की आजीविका इस पर निर्भर करती है. अदालत ने कहा कि यह कहना कि याचिका सुनवाई नहीं है, पर्याप्त नहीं है. केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे ASG एसवी राजू ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार इस पर अपना विवेक लगाएगी.
मामले में जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और शोधकर्ता, राम रामास्वामी; सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, सुजाता पटेल; अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक अध्ययन के प्रोफेसर, माधव प्रसाद; जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आधुनिक भारतीय इतिहास के प्रोफेसर मुकुल केसवन और सैद्धांतिक पारिस्थितिक अर्थशास्त्री दीपक मलघन याचिकाकर्ता हैं.
याचिकार्ता का कहना है कि जांच एजेंसियों द्वारा उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए कुछ गाइडलाइन बनाई जाए, इनमें नागरिक के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन से जुड़ा डेटा होता है. याचिका में कहा गया है कि हाल के दिनों में जिन लोगों के पास से विभिन्न मामलों में उपकरण जब्त किए गए हैं उनमें से कई अकादमिक क्षेत्र से हैं या प्रतिष्ठित लेखक हैं.
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