बीजेपी की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ( Sadhvi Pragya Singh Thakur ) आज NIA अदालत में पेश हुईं. इस दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कंगना रनौत के 'आजादी' वाले बयान का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि सच्चे अर्थों में देखें तो आजादी के बाद भी इतने वर्षों तक भ्रष्टाचार और कई मुद्दों पर 2014 के बाद ही सही मायने लोगों को आजादी का मायने पता चला. स्वतंत्रता के पश्चात या पाकिस्तान बन जाने के बाद भी हमारा देश कई चीजों से जूझ रहा था और हमारे देश की स्वतंत्रता जिस प्रकार से होनी चाहिए थी, वह नहीं हो पा रही थी, लेकिन 2014 में जबसे मोदी आए तबसे लोगों को वाकई लगा कि भारत स्वतंत्र है तो इसमें अगर कंगना ने सीधे से शब्दों में कह दिया तो लोगों को बुरा लग गया. मुस्लिम पर्सनल बोर्ड (Muslim Personal Law board) की इस मांग पर कि हिंदुस्तान में भी ईश निंदा कानून (Blasphemy Law) बनना चाहिए, इस पर साध्वी ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए.
समान नागरिक संहिता से होगा संवैधानिक अधिकारों का हनन
दरअसल भाषा में छपी खबर के मुताबिक- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने समान नागरिक संहिता को संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ करार देते हुए रविवार को सरकार से कहा कि इस संहिता को किसी भी सूरत में लागू ना करें. इसमें कहा गया कि यहां अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. ऐसे में समान नागरिक संहिता इस देश के लिए कतई उपयुक्त नहीं है. इस दिशा में उठाया जाने वाला कदम हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा.
पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ हो कार्रवाई, कानून बनाया जाए
बोर्ड ने हाल में पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर असंतोष जाहिर करते हुए भविष्य में ऐसे लोगों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए एक कानून बनाने की मांग की है. इस्लाम सभी धर्मों और उनके आराध्यों का आदर करता है, मगर हाल में पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं लेकिन उससे भी ज्यादा अफसोस की बात यह है कि सरकार ने ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
'मुसलमानों ने हिंदुस्तान में धर्म प्रचार के लिए कभी जबरदस्ती का सहारा नहीं लिया'
इस प्रस्ताव में उन्होंने इस्लाम धर्म प्रचारकों को अवैध धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किए जाने और कुछ सांप्रदायिक लोगों द्वारा खुलेआम धर्मांतरण का नारा लगाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर असंतोष भी जारी किया. प्रस्ताव में बोर्ड ने कहा कि संविधान में देश के हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत अपने धर्म का प्रचार करने का भी हक दिया गया है. अगर कोई व्यक्ति दबाव या लालच का सहारा लिए बगैर अपने धर्म का प्रचार करता है तो संविधान में इसकी इजाजत दी गई है. मुसलमानों ने हिंदुस्तान में धर्म प्रचार के लिए कभी जबरदस्ती का सहारा नहीं लिया. यही वजह है कि 1000 वर्षों तक सत्ता में रहने के बावजूद मुसलमान हमेशा अल्पसंख्यक ही रहे. बोर्ड ने प्रस्ताव में कहा "हाल के कुछ दिनों में कुछ लोगों ने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार किया है. उन्होंने पुलिस या अदालत में दावा नहीं किया कि उन्हें जबरन इस्लाम में दाखिल किया गया है लेकिन फिर भी धर्म का प्रचार करने वालों के खिलाफ झूठे मुकदमे दायर किए गए हैं. यह स्पष्ट रूप से संविधान का उल्लंघन है. सरकार से मांग है कि वह किसी भी समूह के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप न करें और सभी वर्गों के साथ निष्पक्षता का व्यवहार करते हुए गलत काम करने वालों के खिलाफ कानूनन कार्रवाई करे."
सोशल मीडिया पर नफरत दुश्मनी का बीज बोया जा रहा है
पिछले कुछ सालों से मुसलमानों के खिलाफ नफरत और दुश्मनी पर आधारित दुष्प्रचार पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि मुसलमानों के इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर सांप्रदायिकता और भड़काऊ सामग्री पेश करके जहर बोया जा रहा है. सरकार से मांग है कि वह सोशल मीडिया पर हो रही इन हरकतों को रोकें और कानूनी कार्रवाई करें.
न्यायपालिका धार्मिक कानूनों और पांडुलिपियों की अपने हिसाब से व्याख्या करने से बचें
बोर्ड ने सरकार तथा न्यायपालिका से आग्रह किया है कि वे धार्मिक कानूनों की अपने हिसाब से व्याख्या करने से परहेज करें. (इनपुट्स भाषा से भी)
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