रूस-यूक्रेन युद्ध : भारत से गुजरेगा शांति का रास्‍ता? आखिर क्‍यों हैं हम पर ऐतबार

रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) को रोकने के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है. यही कारण है कि रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने खुद साफ शब्दों में कह दिया है कि शांति समझौते के लिए उन्हें भारत की मध्यस्थता मंजूर हे.

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नई दिल्‍ली:

रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बीच शांति स्थापना के लिए भारत को उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा रहा है. इस युद्ध के दौरान भारत हमेशा शांति के पक्ष में रहा है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन हों या यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बिना किसी लाग लपेट दोनों को शांति का संदेश दिया है. ख़ास बात ये है कि पुतिन और जेलेंस्की दोनों को भारत पर भरोसा है और अब पुतिन ने खुद साफ शब्दों में कह दिया है कि शांति समझौते के लिए उन्हें भारत की मध्यस्थता मंज़ूर है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि भारत पर भरोसे की वजह आखिर क्या है. भारत की पीस डिप्लोमेसी कैसे रास्ता दिखा सकती है. शांति के इस कूटनीतिक अध्याय को ख़ास रिपोर्ट में समझिए. 

यूक्रेन और रूस के बीच 30 महीनों से लगातार युद्ध चल रहा है. युद्ध के कारण भीषण तबाही मची है. अब तक 80 हजार से ज्यादा सैनिकों की मौत हो चुकी है, लेकिन क्‍या यह युद्ध रुक सकेगा? क्या भारत इस युद्ध को रोक सकता है?  क्‍या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्यस्थता से बात बनेगी और क्या पुतिन ने पीएम मोदी के नाम पर मुहर लगा दी है? इन सारे सवालों का जवाब जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि रूस के राष्ट्रपति व्‍लादिमिर पुतिन ने बयान देकर कहा है कि यूक्रेन से रूस की शांति के लिए समझौते में भारत की मध्यस्थता उन्हें मंजूर है. व्लादिवोस्तोक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक अधिवेशन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन शांति के लिए इच्छुक दिखे. 

यूक्रेन के साथ बातचीत के सवाल पर पुतिन ने कहा कि हमने ऐसा करने से कभी इनकार नहीं किया, लेकिन कुछ फिजूल की मांगों के आधार पर नहीं, बल्कि उन दस्तावेजों के आधार पर जिन पर सहमति बनी थी और वास्तव में इस्तांबुल में 2022 में हस्ताक्षर किए गए थे. 

समझौते की तारीफ भी, अनदेखी भी 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन जिस इस्तांबुल समझौते की बात कर रहे हैं, वो दरअसल मार्च 2022 में हुआ था. यानी युद्ध शुरू 
होने के चंद दिनों बाद. हालांकि एक तरफ जहां रूस और यूक्रेन ने उस समझौते की तारीफ की तो दूसरी तरफ उसकी अनदेखी भी की गई. दरअसल यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने पुतिन के नेतृत्व वाले रूस के साथ बातचीत पर रोक लगा दी. इसीलिए इस्तांबुल को आधार बनाकर पुतिन ये बताना चाहते हैं कि शांति के रास्ते का पत्थर रूस नहीं बल्कि यूक्रेन है. 

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रूसी राष्‍ट्रपति ने कहा, "अंतिम यूक्रेनी तक लड़ते रहें, क्योंकि वो अभी भी लड़ रहे हैं और कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि जो लोग यूक्रेन पर शासन करते हैं वे किसी प्रकार के एलियंस या विदेशियों की तरह हैं. अगर सख्ती से कहें तो वे सोचते ही नहीं. मैं गंभीर हूं. आप समझते हैं, ऐसे नुकसान बहुत बड़े हैं. वे आगे क्या करेंगे, मुझे भी समझ नहीं आ रहा. अब उन्हें बच्चों को भर्ती करने की जरूरत है, जैसे जर्मनी में फासीवादियों ने किया, हिटलर यूथ का निर्माण किया. लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा.”

आखिर भारत पर क्‍यों है विश्‍वास?

ढाई साल तक चलने वाले थकाऊ युद्ध के बाद अब शांति की बात होने लगी है. इसमें भारत दुनिया का इकलौता देश है, जिसने पूरी शिद्दत से शांति की पहल की है. इस कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के इकलौते ताकतवर नेता हैं, जिन्होंने रूस और यूक्रेन दोनों देशों की यात्रा की और दोनों देशों से शांति की अपील की. 

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पुतिन ने मध्यस्थता के लिए भारत के अलावा चीन और ब्राजील का भी नाम लिया था, लेकिन लोगों का विश्वास भारत पर ही आकर क्यों ठहर जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत इकलौता देश है, जो इस युद्ध में रूस और यूक्रेन दोनों देशों के साथ खड़ा है. पीएम मोदी की पहले रूस और फिर यूक्रेन यात्रा से ये संदेश गया कि भारत वाकई शांति चाहता है. इसकी एक वजह ये भी है कि भारत के किसी भी प्रस्ताव को अमेरिका भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है. रूस को भारत पर इसलिए भी भरोसा है कि जहां अमेरिका जैसे देश ने रूस पर कई पाबंदियां लगाई, वही भारत ने अपने रिश्ते को कमजोर नहीं होने दिया. 

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विदेशी मामलों की विशेषज्ञ डॉ. तारा कार्ता ने कहा कि भारत और रूस के बेहद खास रिश्‍ते हैं और यह बहुत साल से चल रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि पुतिन को भारत पर यकीन है. 

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भारत पर विश्वास तो यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलिंस्की को भी है लेकिन जेलिंस्की को रूसी राष्ट्रपति पुतिन पर रत्ती भर यकीन नहीं दिखता.

जेलेंस्‍की का कहना है, " चूंकि हम कब्ज़ा कर रहे हैं और अपने क्षेत्रों के बारे में नहीं सोचते हैं, हम अच्छी तरह से समझते हैं कि वास्तव में यही मामला है, क्योंकि हम रूस की वायु रक्षा को जानते हैं. उन्होंने हमारे ऊर्जा क्षेत्र पर हमला किया था तो  हम उनके ऊर्जा क्षेत्र पर हमला कर रहे थे. हमने उनके सैन्य हवाई अड्डों पर हमला किया है."

कूटनीति के पेचीदा रास्‍ते पर कायम रखा संतुलन

कूटनीति के रास्ते बेहद पेचीदा होते हैं. इस रास्ते पर चलते हुए संतुलन कैसे कायम रखा जाए, भारत दुनिया के सामने यह मिसाल पेश कर रहा है. भारत का यह कूटनीतिक संतुलन रूस-यूक्रेन युद्ध में दिखा और इजरायल-हमास जंग में भी, भारत अगर इजरायल पर हमास के हमले की आलोचना करता है तो फिलिस्तीन के लिए मानवीय मदद भी भेजता है.

इजरायल के साथ गहरे रिश्ते कायम रखता है कि तो ईरान का हाथ भी मजबूती से थामे रखता है. संतुलन की ये कूटनीति विश्व पटल पर भारत को एक अलग ही स्थान प्रदान करती है और दुनिया उसे शांति पुंज के रूप में देखती है. 

इजराइल और फिलीस्तीन तनाव के ज्वालामुखी पर दशकों से बैठे हैं, लेकिन बीते साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के खूनी हमले ने युद्ध का जहर बो दिया. 7 अक्टूबर को इजरायल-गाजा सीमा पर हमास के आतंकी हमले में 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे. जवाब में इजरायल ने भी बम बरसाना शुरु किया, जिससे एक झटके में तेरह हजार से ज्यादा लोग जान से हाथ धो बैठे. 

इस पर दुनिया दो खेमों में बंटने लगी, लेकिन भारत का रुख साफ रहा. गलत को गलत कहो, सही का समर्थन करो.  इसलिए भारत पर अगर रूस और यूक्रेन दोनों को भरोसा रहता है तो इजरायल और फिलीस्तीन को भी. 

पूरी दुनिया उठा रही युद्ध का खमियाजा : कार्ता 

विदेशी मामलों की विशेषज्ञ डॉ. तारा कार्ता ने कहा कि युद्ध का खमियाजा पूरी दुनिया उठा रही है. दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है. उन्‍होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था जो कोविड के बाद रास्‍ते पर आ रही थी, वह फिर नेगेटिव में चली गई. उन्‍होंने कहा कि भारत चाहता है कि हम चार ट्रिलियन इकोनॉमी तक पहुंचे, जब तक यह युद्ध खत्‍म नहीं होगा, वह संभव नहीं है. 

भारत को अहमियत देता है इजरायल 

7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास का हमला हुआ था और उसके तीन दिन बाद 10 अक्टूबर को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत की अहमियत इजरायल के लिए कितनी है. भारत ने आतंकी हमले की कड़ी निंदा के साथ ही इजरायल के साथ अपनी एकजुटता दिखाई थी, लेकिन फिलीस्तीन के साथ रिश्तों को भी कायम रखा. भारत ने कभी हमास को आतंकवादी संगठन नहीं कहा.

भारत अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर बमबारी को रोकने का आह्वान करता रहा. भारत ने इजरायल और फिलीस्तीन के बीच मानवीय विराम के लिए पहल की. एक तरफ इजरायल के साथ सहानुभूति का संबंध रखा तो दूसरी तरफ फिलीस्तीनी लोगों की भरपूर मदद भी की. भारत ने मिस्र के माध्यम से गाजा को 16.5 टन दवाइयों और चिकित्सा आपूर्ति सहित 70 टन मानवीय सहायता भी भेजी. 

मानवीय पहलुओं पर काम करता है भारत, हर देश से रिश्‍ता बेहतर

खास बात ये है कि फिलीस्तीन की मदद के लिए ईरान आगे आया. ईरानी राष्ट्रपति की हत्या और फिर ईरान में ही हमास चीफ के कत्ल के बाद इजरायल के खिलाफ युद्ध की बातें ईरान ही करने लगा, लेकिन उस ईरान के साथ किसी एक देश का रिश्ता बेहतर बना हुआ है, तो वो भारत है. ऐसा इसलिए है कि बाकी दुनिया कूटनीति के तिकड़म में फंस जाती है जबकि भारत मानवीय पहलुओं पर काम करता है. 

इजरायल और हमास के बीच शांति के थोड़े बहुत आसार नजर आने लगे हैं. इसको और बेहतर वही देश कर सकते हैं जिन पर इजरायल, फिलीस्तीन और ईरान तीनों को ऐतबार हो. ऐसे में भारत से बेहतर विकल्प और कौन हो सकता है. 

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