पिछले साल 24 फरवरी को ही रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू किया था. इस युद्ध का एक साल पूरा हो गया है और इसके जल्द खत्म होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही. यूक्रेन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक आपातकालीन सत्र बुलाया गया. सत्र में ‘यूक्रेन एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति' विषय वाले प्रस्ताव पर दो दिनों की चर्चा हुई. इसके बाद प्रस्ताव पास हो गया है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि रूस यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध को तुरंत रोके और यूक्रेन की ज़मीन से अपनी सेना को वापस बुलाए ताकि स्थायी शांति सुनिश्चित की जा सके.
यह प्रस्ताव गैर-बाध्यकारी है, यानी कि रूस इसे मानने को बाध्य नहीं है. लेकिन इस प्रस्ताव का पास होना बताता है कि यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ दुनिया के अधिकतर देश किस तरह से यूक्रेन के साथ खड़े हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 सदस्य देशों में से 141 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, सात देशों ने इसके खिलाफ जबकि 32 देश वोटिंग से दूर रहे.
जिन देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया उनमें रूस के साथ-साथ बेलारूस, निकारागुआ, सीरिया, उत्तर कोरिया, इरिट्रिया और माली शामिल हैं. ये सभी रूस के निकट सहयोगी देश हैं. इस प्रस्ताव को यूक्रेन ने अपने सहयोगी देशों के साथ तैयार किया था. हालांकि रूस ने बेलारूस के जरिए इसमें कई संशोधनों को लाने की कोशिश की लेकिन वोटिंग के दौरान वे संशोधन भी गिर गए.
भारत और चीन समेत 32 देशों ने खुद को वोटिंग से दूर रखा. भारत ने वोटिंग में बेशक हिस्सा नहीं लिया लेकिन यूक्रेन युद्ध से उपजे हालात को लेकर अपनी गंभीर चिंता दिखाई. संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने सभा में दिए गए अपने संबोधन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि यह युद्ध का काल नहीं है. कंबोज ने कहा कि शत्रुता और हिंसा किसी के भी हित में नहीं है. डॉयलॉग और डिप्लोमेसी ही शांति सुनिश्चित करने का एकमात्र जरिया है.
भारत ने यूएन चार्टर में अपना भरोसा जताते हुए दोहराया कि वह शांति के साथ है और हर एक देश की संप्रभुता और अखंडता का हिमायती है. हर पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह नागरिक ठिकानों और ढांचों पर हमले न करे.
भारत ने यूक्रेन को दी जा रही मानवीय मदद का और इस युद्ध का ग्लोबल साउथ के देशों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों का भी भी जिक्र किया. भारत ने सवाल पूछा कि क्या हम किसी ऐसे समाधान के करीब हैं जो दोनों पक्षों को स्वीकार हो? क्या दोनों पक्षों को शामिल किए बगैर किसी ठोस समाधान तक पहुंचा जा सकता है?
इस मौके पर भारत ने सन 1945 के दौर के हिसाब से बने संयुक्त राष्ट्र और इसके सुरक्षा परिषद को लेकर भी सवाल उठाया कि क्या यह मौजूदा समय में विश्व शांति और सुरक्षा की चुनौतियों के बीच असरदार रह गए हैं?
संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के मुद्दे पर आए कई प्रस्तावों पर वोटिंग से भारत अपने आपको दूर रखता आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से कई बार बातचीत कर शांति स्थापना की अपील कर चुके हैं.