- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्ष पूरे होने पर तीन दिवसीय कार्यक्रम नई दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुआ.
- मोहन भागवत ने कहा कि देश में परिवर्तन केवल नेताओं पर निर्भर नहीं करता बल्कि समाज की सामूहिक भागीदारी जरूरी है.
- उन्होंने समाज के अवगुणों को दूर करने और गुणों को विकसित करने को राष्ट्र की प्रगति के लिए जरूरी बताया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का '100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज' विषय पर तीन दिवसीय कार्यक्रम मंगलवार से नई दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुआ. इसके पहले दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के भविष्य के लिए अपना दृष्टिकोण और उसे आकार देने में स्वयंसेवकों की भूमिका पर प्रकाश डाला. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश में परिवर्तन किसी नेता के भरोसे बैठने से नहीं आता है, इसके लिए सबको मिलकर लगना पड़ता है.
समाज के गुण और अवगुण
मोहन भागवत ने कहा कि हमारे उपाय अधूरे रहेंगे अगर हमारे समाज के जो कुछ दुर्गुण हैं, उन्हें दूर न किया जाए तो क्योंकि एक बात स्वतः सिद्ध है कि देश को बड़ा बनाना है या स्वतंत्रता करना है तो नेताओं या संगठनों के भरोसे नहीं रहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि नेता और संगठन सहायक भर होते हैं. लेकिन सबको लगना पड़ता है. पूरे समाज के प्रयास से ही कोई परिवर्तन आता है. उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र को एक बार फिर महान बनाने का एकमात्र तरीका हमारे समाज का गुणात्मक विकास और हमारे राष्ट्र की प्रगति में पूरे समाज की भागीदारी है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अगर हम अपने देश को बड़ा बनाना चाह रहे हैं तो यह देश को किसी नेता के भरोसे छोड़कर नहीं होगा, सब सहायक होंगे, नेता, नीति, पार्टी, अवतार, विचार, संगठन और सत्ता सबको मिलना होगा. उन्होंने कहा कि इन सभी की भूमिका सहायक की है. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इसका कारण जो बनता है, वह समाज परिवर्तन या समाज की गुणात्तमक उन्नति, बिना इसके हुए हमारे काम पूरे नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि जो मुद्दे लिए हैं, वो पूरे हो जाएंगे, लेकिन वो फिर से खड़े नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. इसके लिए उन्होंने भारत पर हुए आक्रमणों और उनसे लड़ाई का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होता कि कुछ ऐसे अवगुण हैं, जिन्हें निकालना चाहिए और कुछ गुण हैं, जिन्हें विकसित करना चाहिए.
समाज की उन्नति के लिए कैसा नायक चाहिए
मोहन भागवत ने रविंद्र नाथ ठाकुर के 'स्वदेशी समाज' शीर्षक वाले निबंध का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि इसमें लिखा है कि समाज में जागृति राजनीति से नहीं आएगी, उन्होंने कहा है कि हमारे समाज में स्थानीय नेतृत्व खड़ा करना पड़ेगा, उन्होंने इसके लिए नायक शब्द का इस्तेमाल किया है. इसे समझाते हुए उन्होंने कहा कि जो स्वयं शुद्ध चरित्र हो, जिसका समाज से निरंतर संपर्क है, समाज जिस पर विश्वास करता है और जो अपने देश के लिए जीवन-मरण का वरण करता है, ऐसा नायक चाहिए.
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