सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस आरएफ नरीमन ने की देशद्रोह कानून को रद्द करने की वकालत

जस्टिस नरीमन ने कह- सरकारें आएंगी और जाएंगी, अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे और धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्सों को खत्म करे, फिर यहां के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस लेंगे

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जस्टिस आरएफ नरीमन (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने देशद्रोह कानून को रद्द करने की वकालत की है. जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह कानून को रद्द करना चाहिए. गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर UAPA कानून के भी कुछ हिस्सों को रद्द करने की मांग उन्होंने की है. विश्वनाथ पसायत स्मृति समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में जस्टिस आरएफ नरीमन ने अपने भाषण में कहा कि ''मैं सुप्रीम कोर्ट  से आग्रह करूंगा कि वह उसके सामने लंबित देशद्रोह कानून के मामलों को वापस केंद्र के पास न भेजे. सरकारें आएंगी और जाएंगी, अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे और धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ  हिस्सों को खत्म करे, फिर यहां के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस लेंगे.'' 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि वैश्विक कानून सूचकांक में भारत की रैंक 142 है क्योंकि कठोर और औपनिवेशिक कानून अभी भी मौजूद हैं. फिलीपींस के दो पत्रकारों को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. वहां भारत की रैंक 142 थी..क्यों? यह भारत के औपनिवेशिक कानूनों के बैंक के कारण है. 

विश्वनाथ पसायत मेमोरियल पैनल चर्चा में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने यूके और भारत में देशद्रोह कानून के इतिहास के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह के प्रावधानों को खत्म करना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारे चीन और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुए थे. उसके बाद ये औपनिवेशिक कानून, गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम आदि बनाए गए.

उन्होंने कहा कि "इमिनेंट लॉलेस एक्शन" वर्तमान में इस्तेमाल किया जाने वाला एक मानक है जिसे यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट द्वारा ब्रैंडेनबर्ग बनाम ओहियो (1969) में स्थापित किया गया था. क़ानून की किताब में असंतोष जारी है और UAPA अंग्रेजों का कानून है क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं है और इसमें न्यूनतम 5 साल की कैद है. यह कानून अभी जांच के दायरे में नहीं है. इसे भी देशद्रोह कानून के साथ देखा जाना चाहिए. 

जस्टिस नरीमन ने कहा कि यदि आप शरारत के नियम को लागू करना चाहते हैं, तो औपनिवेशिक कानून अपनी महिमा में सामने आता है और भारतीय नागरिकों को इसमें जकड़ लेता है. यदि प्रावधान का शाब्दिक पठन हिंसा नहीं है और आप इसे देशद्रोह के दायर में नहीं रख सकते, इस पृष्ठभूमि में इस विशाल लोकतंत्र में धारा 124ए कैसे बची हुई है?

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