धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार होगा तय : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इसी मामले पर सुनवाई करते हुये 18 जुलाई को कहा था कि आप ऐसे ठोस उदाहरण रखिए, जहां किसी राज्य विशेष में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं (Hindus) को अल्पसंख्यक का वाजिब दर्जा मांगने पर न मिला हो.

विज्ञापन
Read Time: 24 mins
सुप्रीम कोर्ट में कथावचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका पर सुनवाई हो रही थी.
नई दिल्ली:

देश की शीर्ष आदालत ने एक बार फिर दोहराया कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक (Minority) का दर्जा राज्यवार तय किया जाएगा. यह 1957 से देश का कानून है. शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिका पर सुनवाई ना करने का मन बनाया, लेकिन बाद में कहा कि वो मामले की सुनवाई करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कथावचक देवकी नंदन ठाकुर (Devkinandan thakur) की याचिका को भी मुख्य याचिका के साथ जोड़ा. इस पर कोर्ट में सितंबर के पहले हफ्ते में सुनवाई होगी.  

18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि आप ऐसे ठोस उदाहरण रखिए, जहां किसी राज्य विशेष में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का वाजिब दर्जा मांगने पर न मिला हो. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने कहा था कि ये मामला पहले भी कोर्ट से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भेजा चुका है. कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट पेश करने को कहा था. सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि अगर कोई ठोस मामला है कि मिजोरम या कश्मीर में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार किया गया है, तभी हम इस पर गौर कर सकते हैं. 

याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि 1993 की एक अधिसूचना कहती है कि मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक हैं. कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को राज्य द्वारा अधिसूचित किया जाएगा. हम हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से वंचित करने की बात कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि हिंदू अल्पसंख्यक नहीं हो सकते.

Advertisement

जस्टिस यूयू ललित ने कहा अगर कोई ठोस मामला है कि मिजोरम या कश्मीर में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार किया जाता है, तभी हम इस पर गौर कर सकते हैं. हमें एक ठोस स्थिति प्राप्त करनी है. जब तक अधिकारों को क्रिस्टलीकृत नहीं किया जाता है, तब तक हम इस पर विचार नहीं कर सकते. 

Advertisement

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिख और जैन को अल्पसंख्यक घोषित करती है. याचिकाकर्ता ने अल्पसंख्यकों की जिलेवार पहचान की भी मांग की है.  एक आध्यात्मिक नेता और भागवत कथा के वक्ता देवकीनंदन ठाकुर द्वारा ये जनहित याचिका दायर की गई है.

Advertisement


ये भी पढ़ें:

VIDEO: बाटला हाउस से संदिग्‍ध ISIS आतंकी गिरफ्तार, छात्र के परिवार ने NIA के आरोपों को किया खारिज

Advertisement
Featured Video Of The Day
Pahalgam Terror Attack | 5 लाख से ऊपर लड़कियां... भारत में आतंकवाद का नया चेहरा- Nishikant Dubey