बीते 10 साल में गेहूं की सरकारी खरीद (Government Procurement of Wheat) में इस साल रिकॉर्ड कमी दर्ज की गई है. 31 मई तक सरकारी खरीद बढ़ाने के बावजूद सरकार महज 187 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है, जबकि खरीद का लक्ष्य 400 लाख टन से ज्यादा था, यानि 50 फीसदी से ज्यादा की कमी देखी जा रही है. गेहूं की कम सरकारी खरीद का असर क्या गरीबों के राशन और आटे के भाव पर पड़ेगा.
गरीब परिवारों को अब गेहूं की जगह चावल दिया जा रहा है. हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में चावल लोग कम खाते हैं, लेकिन अब इसी से काम चलाना पड़ेगा. देशभर के 81 करोड़ गरीबों में बंटने वाले गेहूं को कम किया जा रहा है. केंद्र सरकार ने 11 राज्यों के गेहूं आवंटन में कमी करके करीब 116 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा लिया है, ताकि बाजार में आटे का भाव स्थिर रखा जा सके.
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खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय के सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय का कहना है कि सिस्टम के लिए गेहूं का पर्याप्त स्टॉक है, लेकिन जिन राज्यों में गेहूं की खपत जीरो थी, वहां हमने कटती नहीं की है, लेकिन जहां गेहूं और चावल का अनुपात 60:40 का था, वहां हमने 40:60 कर दिया है.
लेकिन क्या इस कदम से गेंहू का संकट टल जाएगा. इसकी जब हमने पड़ताल की तो पाया कि, 10 साल में सबसे कम गेंहू की सरकारी खरीद हुई है. 2016-17 में 229 लाख टन, 2020-21 में 389 लाख टन, 2021-22 में 433 लाख टन और 2022-23 यानि इस साल सबसे कम महज 187 लाख टन गेंहू की सरकारी खरीद हुई है.
PDS सिस्टम के जानकार अंजलि भारद्वाज का कहना है कि इसका असर मई में देखने को मिला, आटे के दाम में 15 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब बफर स्टॉक को बनाए रखने के साथ गेंहू की अव्यवस्थित ट्रेडिंग रोकने की भी है.
वहीं कृषि मामलों के जानकार हरवीर सिंह ने कहा कि भारत सरकार के पास पिछले साल का 119 लाख टन स्टॉक है, इस साल 185 लाख टन का स्टॉक है, जबकि PDS सिस्टम के लिए इससे ज्यादा का गेंहू चाहिए.
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उधर भारत में सबसे ज्यादा गेंहू पैदा करने वाले राज्य मसलन उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में भी गेंहू खरीद रिकार्ड कम हुई है. अकेले यूपी में 31 मई को सरकारी खरीद बंद होने के बाद महज 2.98 लाख टन गेंहू की खरीद हुई है, जबकि पिछले साल 56.21 लाख टन गेंहू खरीदा गया था.
बदलते मौसम और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गरीबों के रोटी की समस्या को हल करने के लिए सरकार को बहुत ध्यान देने की जरुरत है, क्योंकि निजी व्यापारी किसान से गेंहू खरीदकर बड़ा मुनाफा कमाने की ताक में है.
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