मध्यप्रदेश के इंदौर में सब्जी बेचकर जीवन-यापन करने वाले एक परिवार की 29 वर्षीय बेटी व्यवहार न्यायाधीश (सिविल जज) वर्ग-दो पद के लिए चयनित हुई है. संघर्ष की आंच में तपी इस महिला का कहना है कि न्यायाधीश भर्ती परीक्षा में तीन बार नाकाम होने के बाद भी उसकी निगाहें लक्ष्य पर टिकी रहीं. अंकिता नागर (29) ने बृहस्पतिवार को ‘‘पीटीआई-भाषा'' को बताया,‘‘मैंने अपने चौथे प्रयास में व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-दो भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल की है. अपनी खुशी को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.''
उन्होंने बताया कि उनके पिता अशोक नागर शहर के मूसाखेड़ी इलाके में सब्जी बेचते हैं और न्यायाधीश भर्ती परीक्षा की तैयारी के दौरान समय मिलने पर वह इस काम में उनका हाथ बंटाती रही हैं. एलएलएम की स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल करने वाली नागर ने बताया कि वह बचपन से कानून की पढ़ाई करना चाहती थीं और उन्होंने एलएलबी के अध्ययन के दौरान तय कर लिया था कि उन्हें न्यायाधीश बनना है.
आत्मविश्वास से परिपूर्ण 29 वर्षीय महिला ने कहा, ‘‘न्यायाधीश भर्ती परीक्षा में तीन बार असफल होने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयारी में जुटी रही. इस संघर्ष के दौरान मेरे लिए रास्ते खुलते गए और मैं इन पर चलती गई.'' नागर ने कहा कि व्यवहार न्यायाधीश के रूप में काम शुरू करने के बाद उनका ध्यान इस बात पर केंद्रित रहेगा कि उनकी अदालत में आने वाले हर व्यक्ति को इंसाफ मिले. न्यायाधीश भर्ती परीक्षा में अपनी संतान की सफलता से गदगद सब्जी विक्रेता अशोक नागर ने कहा कि उनकी बेटी एक मिसाल है क्योंकि उसने जीवन में कड़े संघर्ष के बावजूद हिम्मत नहीं हारी.
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