क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसलों पर तय होगी समयसीमा? जानें SC में क्‍या दी गई दलीलें

8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया, जिसमें अदालत ने कहा कि राज्‍यपाल सदन द्वारा पारित विधेयक को रोक कर नहीं रख सकते हैं. राज्‍यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है. तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए 10 बिलों को आरक्षित रखना अवैध देते हुए रद्द किया.

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अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखने का निर्णय लेते हैं, तो...
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  • सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ राष्ट्रपति, राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय की समयसीमा पर सुनवाई कर रही.
  • केंद्र सरकार ने समयसीमा निर्धारित करने का विरोध करते हुए संविधान में शक्तियों के बंटवारे का हवाला दिया है.
  • तमिलनाडु के मामले में राज्यपाल को विधेयकों पर तीन महीने के भीतर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था.
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नई दिल्‍ली:

राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्यों द्वारा भेजे विधेयकों पर फैसला लेने की समयसीमा के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ में सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है कि राष्ट्रपति का संदर्भ सुनवाई योग्य है या नहीं? इसे लेकर केरल और तमिलनाडु सरकार की आपत्ति पर सुनवाई हो रही है. दरअसल, राष्ट्रपति ने प्रेसिडेंशियल रेफरेन्स भेजकर 14 सवालों पर राष्ट्रपति से राय मांगी थी. इन सवालों पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया था. बीते शनिवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समयसीमा तय करने का विरोध किया है. सरकार का कहना है कि संविधान में व्यवस्था के हर अंग के लिए 'शक्तियों के बंटवारे' का उल्लेख है. संविधान के मुताबिक, कोई सुप्रीम नहीं है, न्यायपालिका व्यवस्था के किसी दूसरे अंग के अधिकार क्षेत्र पर अपना दावा नहीं कर सकती है. 

सुनवाई के दौरान CJI बीआर गवई का केरल सरकार से सवाल 

  • राष्ट्रपति द्वारा इस अदालत से सलाह लेने में क्या ग़लत है? 
  • क्या आप इसका विरोध करते समय गंभीर हैं?

वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आरोप लगाया कि इस मामले पर दिए गए फैसले में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई अपील नहीं की गई. कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की गई. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से दो अलग-अलग पक्षों के बीच हुए फैसले की विषय-वस्तु और कंटेंट को बदलने के लिए कहा जा रहा है. दरअसल यह एक अपील है, चाहे इसे किसी तरह से छिपाया जाए.

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम तमिलनाडु के मामले मे दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई नहीं कर रहे है. ये बेंच प्रेसिडेंसियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है.

SG तुषार मेहता ने कहा कि यह एक उपयुक्त मसला है. यहां राष्ट्रपति इस बात पर स्पष्टता चाहती हैं कि संवैधानिक समस्या होने पर क्या किया जाना चाहिए. राष्ट्रपति या राज्यपाल को क्या करना चाहिए.


क्‍या समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है?

राष्ट्रपति के इस संदर्भ पर कि क्या विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है? इस पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायालय इस मामले में  अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी की सहायता लेगा. मुख्य न्यायाधीश के अलावा, सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं. पीठ ने यह भी कहा कि वह इस बात की जांच करेगा कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायिक रूप से लागू करने योग्य समय-सीमाओं के अधीन किया जा सकता है. 

इससे पहले 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राज्य के राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय निर्धारित समय-सीमा के मुद्दे पर 14 प्रश्नों पर संदर्भ की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संविधान पीठ ने 22 जुलाई को एक संक्षिप्त सुनवाई के दौरान केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था और 29 जुलाई तक उनसे विस्तृत जवाब मांगा था.

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तीन महीने के भीतर कार्रवाई करनी चाहिए...
 

इससे पहले 8 अप्रैल को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल के विरुद्ध तमिलनाडु राज्य के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राज्यपाल को किसी विधेयक पर अपनी सहमति रोकने या उसे सुरक्षित रखने के लिए तीन महीने के भीतर कार्रवाई करनी चाहिए, और किसी विधेयक को पुनः अधिनियमित करने के लिए एक महीने के भीतर कार्रवाई करनी चाहिए. अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों  प्रयोग करते हुए कहा गया कि राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक निष्क्रियता को 'अवैध' घोषित किया था और निर्देश दिया था कि तमिलनाडु के दस लंबित विधेयकों को सहमति प्राप्त मान लिया गया माना जाए. इस फैसले के बाद राष्ट्रपति मुर्मू ने 13 मई को 14 महत्वपूर्ण प्रश्नों के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया था.

राष्ट्रपति ने 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी...

1. जब राज्यपाल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके सामने संवैधानिक विकल्प क्या हैं? 
2. क्या राज्यपाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को प्रस्तुत किए जाने पर अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह से बाध्य है? 
3. क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
4. क्या भारत के संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है? 
5. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समयसीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है? 
6. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
7.  संवैधानिक रूप से निर्धारित समय-सीमा और राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेक के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमाएँ लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है? 
8. राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक योजना के प्रकाश में, क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने या अन्यथा सुप्रीम कोर्ट की राय लेने की आवश्यकता है? 
9. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना स्वीकार्य है? 
10. क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
11. क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून है? 
12. भारत के संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, क्या इस माननीय न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और इसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित करे? 
13. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं? 
14. क्या संविधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के माध्यम से छोड़कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र को रोकता है?

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