PM मोदी ने पंडित मदन मोहन मालवीय की रचनाओं के 11 खंडों की पहली श्रृंखला का किया विमोचन

पीएम मोदी ने कहा कि पंडित मालवीय जिस भूमिका में रहे, उन्होंने 'राष्ट्र प्रथम' के संकल्प को सर्वोपरि रखा और इसके लिए बड़ी से बड़ी ताकत से टकराए तथा मुश्किल से मुश्किल माहौल में भी देश के लिए संभावनाओं के नए बीज बोए. उन्होंने कहा कि यह उनकी ही सरकार का सौभाग्य है कि उन्हें 'भारत रत्न' दिया गया.

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पीएम मोदी ने कहा कि उनकी सरकार के कार्यों में भी कहीं न कहीं पंडित मालवीय के विचारों की महक महसूस होगी.
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय की संकलित रचनाओं के 11 खंडों की प्रथम श्रृंखला का विमोचन किया और कहा कि उनके जैसे व्यक्तित्व सदियों में एक बार जन्म लेते हैं तथा आने वाली कई सदियां उनसे प्रभावित होती हैं. महामना मालवीय की 162वीं जयंती के अवसर पर यहां स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत की कितनी ही पीढ़ियों पर महामना का ऋण है. वो शिक्षा और योग्यता में उस समय के बड़े से बड़े विद्वानों की बराबरी करते थे. वो आधुनिक सोच और सनातन संस्कारों का संगम थे."

"बड़ी से बड़ी ताकत से टकराए" 
पीएम मोदी ने कहा कि पंडित मालवीय जिस भूमिका में रहे, उन्होंने 'राष्ट्र प्रथम' के संकल्प को सर्वोपरि रखा और इसके लिए बड़ी से बड़ी ताकत से टकराए तथा मुश्किल से मुश्किल माहौल में भी देश के लिए संभावनाओं के नए बीज बोए. उन्होंने कहा कि यह उनकी ही सरकार का सौभाग्य है कि उन्हें 'भारत रत्न' दिया गया.

प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके लिए पंडित मालवीय एक और वजह से बहुत खास हैं क्योंकि उनकी ही तरह उन्हें भी काशी की सेवा का मौका मिला. उन्होंने कहा, "मेरा ये भी सौभाग्य है कि 2014 में चुनाव लड़ने के लिए जब मैंने नामांकन भरा, तो प्रस्तावकों में मालवीय जी के परिवार के सदस्य भी थे."

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आजादी के 'अमृतकाल' में गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने और अपनी विरासत पर गर्व करने के सरकार के अभियान का उल्लेख करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि उनकी सरकार के कार्यों में भी कहीं न कहीं पंडित मालवीय के विचारों की महक महसूस होगी.

द्विभाषी रचनाएं 11 खंडों में लगभग 4,000 पृष्ठों में हैं
ये द्विभाषी रचनाएं (अंग्रेजी और हिंदी) 11 खंडों में लगभग 4,000 पृष्ठों में हैं, जो देश के हर कोने से एकत्र किए गए पंडित मदन मोहन मालवीय के लेखों और भाषणों का संग्रह है. इन खंडों में उनके अप्रकाशित पत्र, लेख और ज्ञापन सहित भाषण, वर्ष 1907 में उनके द्वारा शुरू किए गए हिंदी साप्ताहिक 'अभ्युदय' की संपादकीय सामग्री, समय-समय पर उनके द्वारा लिखे गए लेख, पैम्फलेट एवं पुस्तिकाएं शामिल हैं.

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इसमें वर्ष 1903 और वर्ष 1910 के बीच आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों की विधान परिषद में दिए गए उनके सभी भाषण, रॉयल कमीशन के समक्ष दिए गए वक्तव्य, वर्ष 1910 और वर्ष 1920 के बीच इंपीरियल विधान परिषद में विभिन्‍न विधेयकों को प्रस्तुत करने के दौरान दिए गए भाषण, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले और उसके बाद लिखे गए पत्र, लेख एवं भाषण तथा वर्ष 1923 से लेकर वर्ष 1925 के बीच उनके द्वारा लिखी गई एक डायरी शामिल है.

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पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा लिखित और बोले गए विभिन्‍न दस्तावेजों पर शोध एवं उनके संकलन का कार्य महामना मालवीय मिशन द्वारा किया गया, जो महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के आदर्शों और मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित एक संस्था है. प्रख्यात पत्रकार राम बहादुर राय के नेतृत्व में इस मिशन की एक समर्पित टीम ने इन सभी रचनाओं की भाषा और पाठ में बदलाव किए बिना ही पंडित मदन मोहन मालवीय के मूल साहित्य पर कार्य किया है. इन पुस्तकों का प्रकाशन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीनस्‍थ प्रकाशन प्रभाग द्वारा किया गया है.

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आधुनिक भारत के निर्माताओं में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय का अग्रणी स्थान है. पंडित मदन मोहन मालवीय को एक उत्कृष्ट विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए अथक मेहनत की थी.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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