शराब की बोतलों पर सिगरेट की तरह 'वैधानिक चेतावनी' छापने को लेकर दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. CJI यूयू ललित की बेंच के सामने वकील अश्विनी उपाध्याय ने शराब पीने और दवाओं के उत्पादन में उपयोग, वितरण और खपत को निर्धारित करने की मांग रखी थी. इसपर सीजेआई ने कहा की यह नीतिगत मामला है.
सुनवाई के दौरान वकील उपाध्याय ने कहा कि इस मामले में थोड़ी से हस्तक्षेप से युवाओं को फायदा होगा. मैं केवल ऐसे ड्रिंक्स पर चेतावनी का लेबल चाहता हूं, क्योंकि यह हानिकारक है. पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. इसपर सीजेआई ने कहा कि यह सब विचार हैं. कुछ लोग कहते हैं कि कम मात्रा में ली गई शराब स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, लेकिन सिगरेट के साथ ऐसा नहीं है. कोई नहीं कहता कि कम मात्रा में ली गई सिगरेट स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है. किसी भी तरह से ली गई सिगरेट सेहत के लिए अच्छी नहीं होती है. ये सभी नीतिगत फैसले है.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल याचिका में कहा, "औषधीय प्रयोजनों के अलावा नशीले पेय और दवाओं की खपत को प्रतिबंधित करने के लिए एक प्रभावी नीति तैयार करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किए जाएं. क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. शराब की बोतलें/कंटेनर और नशीले पेय पर एक प्रभावी स्वास्थ्य चेतावनी हो जो दोनों तरफ कम से कम 50% हो. इससे संबंधित स्वास्थ्य संबंधी खतरे हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में हो. मादक पेय पदार्थों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया जाए और एक अभियान शुरू किया जाए. इनके सेवन से होने वाले स्वास्थ्य खतरों के बारे में लोगों को शिक्षित किया जाए.
वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, "नशीले पेय पर इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता हो. प्राथमिक कक्षाओं में स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार की गारंटी की भावना से पाठ्यक्रम में नशीले पेय के स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर एक अध्याय सम्मिलित करें.
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