दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार और AAP सरकार के बीच तनातनी जारी है. सोमवार को केंद्र सरकार लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल (Delhi Services Bill) पेश करने वाली थी, लेकिन हंगामे के चलते लोकसभा को स्थगित करना पड़ा. अब यह बिल मंगलवार को पेश किया जाएगा. इस बिल को लेकर दिल्ली सरकार पहले से ही केंद्र सरकार पर हमलावर नजर आ रही है. गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल पेश करेंगे. ये बिल सांसदों को पहले ही सर्कुलेट हो चुका है. माना जा रहा है कि मंगलवार को भी इस बिल के पेश होने से पहले हंगामा हो सकता है.
संसद में पहले से ही मणिपुर हिंसा को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध जारी है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली सेवा बिल संसद में विपक्षी गठबंधन INDIA की एकता का पहला इम्तिहान होगा. वहीं, मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान कब हो, यह मंगलवार को ही तय किया जाएगा. इससे पहले दिल्ली सेवा बिल के जरिए सरकार अपना शक्ति प्रदर्शन करेगी.
अध्यादेश से अलग है दिल्ली सेवा बिल
दिल्ली सेवा बिल इस बारे में 19 मई को जारी किए अध्यादेश की हुबहू कॉपी नहीं है. इसमें तीन प्रमुख संशोधन किए गए हैं.
बिल से सेक्शन 3 A को हटा दिया गया है. इसमें दिल्ली विधानसभा को सेवाओं संबंधित कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया गया था. इसकी जगह बिल में आर्टिकल 239 AA पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी (NCCSA) बनाने का अधिकार देता है. पहले अथॉरिटी को अपनी गतिविधियों की एनुअल रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा और संसद दोनों को देनी की बात थी. अब इस प्रावधान को भी हटा दिया गया है.
दिल्ली के ट्रांसफर-पोस्टिंग केस में सुप्रीम कोर्ट का क्या था फैसला
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को कहा कि दिल्ली (NCR) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुडे़ सभी अधिकारी चुनी हुई सरकार के पास होगा. लेकिन, पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड से जुड़े हुए अधिकार केंद्र सरकार के पास रहेंगे. अदालत ने अपने फैसले में कहा, "अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा और उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी."
केंद्र सरकार ने जारी किया था अध्यादेश
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश लाई. इस अध्यादेश के जरिए दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है. मतलब, दिल्ली सरकार अगर किसी अधिकारी का ट्रांसफर करना चाहती है तो उसे उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी. अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अध्यादेश से जुड़े बिल को संसद में पास कराना है क्योंकि तभी यह कानून का रूप ले पाएगा.
दिल्ली सेवा बिल पास हो जाने से क्या-क्या होंगे बदलाव:-
-दिल्ली सेवा बिल को लेकर AAP सरकार इसलिए चिंता में है कि इस बिल के पास हो जाने से दिल्ली के सीएम और राज्य सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी.
-बिल के पास होने के बाद दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उनपर दिल्ली सरकार का कंट्रोल खत्म हो . ये शक्तियां एलजी के जरिए केंद्र के पास चली जाएंगी.
-दिल्ली सेवा बिल में नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाने का प्रावधान है. दिल्ली के मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे. अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्य सचिव एक्स ऑफिशियो सदस्य, प्रिसिंपल होम सेक्रेटरी मेंबर सेक्रेटरी होंगे.
-अथॉरिटी की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं. -अगर अथॉरिटी और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा.
राज्यसभा में होगी सरकार की परीक्षा
लोकसभा में इस बिल को पास कराने में मोदी सरकार को कोई परेशानी दिखाई नहीं दे रही है. क्योंकि सरकार के पास बहुमत है. लेकिन सरकार की भी परीक्षा राज्यसभा में होगी. सीएम केजरीवाल भी राज्यसभा में अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. लिहाजा आम आदमी पार्टी के नेता विपक्षी सांसदों की मदद से राज्यसभा में इसे रोकने की कोशिश में हैं.
राज्यसभा का नंबर गेम
कुल संख्या: 245
खाली सीटें: 07
मौजूदा संख्या बल: 238
बहुमत का आंकड़ा: 120
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