कोरोना महामारी के बीच छोटे बच्चों में बोलने की दिक़्क़त बढ़ी, स्पीच थेरेपी वाले बच्चों में 30% इज़ाफ़ा

महामारी के इस दौर में कई छोटे बच्चों का सामाजिक विकास रुका है, स्पष्ट रूप से शब्दों को बोलने में कठिनाई हो रही है और स्पीच थेरेपी की ज़रूरत पड़ रही है.

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प्रतीकात्मक फोटो.

मुंबई:

छोटे बच्चों के सामाजिक विकास, भाषा का ज्ञान, बोलने की क्षमता पर कोविड ने गहरा असर छोड़ा है. मुंबई के अलग-अलग अस्पतालों में ऐसे छोटे बच्चों की संख्या क़रीब 25-30% बढ़ी है जिन्हें बोलने में दिक़्क़त हो रही है और स्पीच थेरेपी की ज़रूरत पड़ रही है. 15 महीने तक का बच्चा अगर बोलना शुरू ना करे, 2 साल की उम्र तक पूरा वाक्य ना बोले तो ये वॉर्निंग साइन है! Wockhardt अस्पताल की Pediatric Physiotherapist डॉ अनुशा कोटियान चार साल के एक बच्चे को बोलना सिखा रही हैं. महामारी के इस दौर में कई छोटे बच्चों का सामाजिक विकास रुका है, स्पष्ट रूप से शब्दों को बोलने में कठिनाई हो रही है और स्पीच थेरेपी की ज़रूरत पड़ रही है. 

स्पीच थेरेपी यानी भाषण चिकित्सा. जब बच्चों का भाषायी ज्ञान सही से विकसित नहीं हो तो ऐसी थेरेपी में सही तरीके से संवाद करना, बच्चों के उच्चारण में सुधार करना, बोलने से जुड़ी मांसपेशियों को मजबूत करना आदि सिखाते हैं. Wockhardt मीरा रोड अस्पताल में बोलने की समस्या वाले ऐसे बच्चे क़रीब 30% थे जो महामारी में बढ़कर 50% हो गए हैं! अनुशा कोटियान कहती हैं, ‘'स्पीच की दिक़्क़त सबसे ज़्यादा नज़र आ रही है. 0-5 साल तक बच्चों का क्रुशियल एज माना जाता है, लर्निंग और ग्रोइंग पीरियड है. स्पीच की दिक़्क़त वाले बच्चे हमारे यहां बढ़कर 45-50% हो गए हैं इस महामारी की वजह से.''

छोटे बच्चों के इलाज के लिए प्रसिद्ध मुंबई के वाडिया अस्पताल में क़रीब 30%. जसलोक अस्पताल में क़रीब ढाई गुना. तो फ़ोर्टिस अस्पताल में भी बच्चों में ये समस्या बढ़ी दिख रही है. वाडिया अस्पताल में मेडिकल डायरेक्‍टर डॉक्‍टर शकुंतला प्रभु कहती हैं, ‘'लॉकडाउन, ट्रैवल रेस्ट्रिक्शन, खेलना कूदना कम या बंद होना, माता-पिता का घर से काम करना, ऑनलाइन स्कूलिंग, फ़ोन या टीवी पर बच्चों का ज़्यादा ध्यान, ये सब इसका कारण बना है कि बच्चों में बोलने की समस्या दिख रही है. कोविड से पहले से तुलना करें तो वाडिया चिल्ड्रन अस्पताल में बोलने की समस्या वाले बच्चों की संख्या में क़रीब 30% इज़ाफ़ा हुआ है.''

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Jaslok & Wockhardt अस्‍पताल में कंसल्‍टेंट पीडियाट्रिशन डॉक्‍टर फजल नबी कहते हैं, ‘'मुंबई में क़रीब ढाई गुना ऐसे स्पीच प्रॉब्लम के मामले बढ़े हैं बच्चों में. पहले हम एक या दो महीने में 1 बच्चा स्पीच प्रॉब्लम का देख रहे थे, अब एक हफ़्ते में एक बच्चा देख रहे हैं.''

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फोर्टिस अस्‍पताल में सीनियर कंसल्‍टेंट-पीडियाट्रिशन डॉक्‍टर जेसल सेठ का कहना है, ‘'अगर 15 महीने में बच्चा बैबल नहीं कर रहा है. दो साल में बच्चा पूरा सेंटेन्स नहीं बोल पा रहा है. या फिर अटक अटक पर सेंटेन्स बोल रहा है तो ये वॉर्निंग साइन है, चिंता का विषय है. और आपको अपने पीडियाट्रिशन को जल्द सम्पर्क करना चाहिए. ना सिर्फ़ नए मामलों में इज़ाफ़ा हुआ है बल्कि जो हमारे स्पीच डिले वाले ऑनगोइंग बच्चे थे कोविड के दौरान उनकी थेरेपी रुकी या अटक गयी. ये भी समस्या बड़ी हुई है.''

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एक्स्पर्ट्स मानते हैं की छोटे बच्चे के क़रीब जाने वाले और उनसे बात करने वाले लोगों के मुंह पर मास्क भी, अभिव्यक्ति को अस्पष्ट करते हैं, जो की भाषण विकास का एक अभिन्न अंग है. समस्या जटिल है!

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