मध्यप्रदेश: कागजों पर हो रही जैविक खेती, किसानों को ट्रेनिंग के नाम पर 110 करोड़ की बंदरबांट

मध्य प्रदेश में सबसे पहले नर्मदा नदी के किनारे रसायन मुक्त खेती करने का फैसला किया गया. ये सारे जिले नर्मदा किनारे ही हैं, जहां कई किसानों के मुताबिक कागजों पर ही जैविक खेती हो रही है.

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किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग के नाम पर सरकारी फाइलों में करोड़ों रुपये खर्च हो गए.
भोपाल:

देश में जैविक खेती पर बड़ा जोर है, लेकिन इस मामले में सबसे अग्रणी राज्य मध्यप्रदेश में कई हितग्राहियों को कागजों में ट्रेनिंग मिल गई, उनके नाम पर जैविक फसलों का उत्पादन और एक्सपोर्ट भी हो गया. कई जिलों में आदिवासी इलाकों में भी किसानों के नाम पर लूट हुई. जैविक खेती के लिए उन्हें ऐसे बीज दिये गए जो भारत में जैविक खेती के लिए केन्द्र सरकार की परम्परागत कृषि विकास योजना की गाइड लाइन में शामिल नहीं हैं.

आरोप ये भी हैं कि आदिवासी किसानों को जैविक खेती के नाम पर ट्रेनिंग देने के लिए मिले 110 करोड़ रु. की भी बंदरबांट हो गई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर मंच से जैविक खेती को प्रोत्साहन देने की बात कह रहे हैं. लेकिन जैविक खेती में देश में पहले पायदान पर खड़े मध्यप्रदेश में सब कुछ ठीक नहीं है.

पश्चिमी निमाड़ के बलसगांव में शाहिद और सादिक का नाम सरकारी फाइलों में जैविक खेती करने वालों के नाम पर दर्ज है. इन जैसे किसानों की ट्रेनिंग पर भी सरकारी फाइलों में करोड़ों खर्च हुए हैं, मध्यप्रदेश में 4 निजी एजेंसियों को इसका काम दिया गया था. लेकिन शाहिद से जब हमने पूछा कि क्या वो जैविक खेती करते हैं या उन्हें कोई ट्रेनिंग मिली है तो उन्होंने कहा हमने कभी ट्रेनिंग नहीं ली, ना जैविक खेती करते हैं. हम तो खेतों में दवा, खाद सब डालते हैं. सादिक ने भी कहा मैंने ट्रेनिंग नहीं ली, जैविक खेती भी नहीं करते, हमने देखा ही नहीं जैविक खेती कैसे होती है.

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ये बात सिर्फ एक गांव की नहीं है, आरोप है कि कई आदिवासी बहुल गांवों में फर्जी किसान समूह बनाये गये हैं. सर्टिफिकेशन लिया जा रहा है और उत्पादों को एक्सपोर्ट किया जा रहा है. मध्यप्रदेश के खरगोन, धार, झाबुआ, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, देवास, जैसे जिलों से कपास, सोयाबीन जैसे कई उत्पादों को जैविक के नाम पर सप्लाई किया जा रहा है.

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जैविक खेती की लिस्ट में भगवानपुरा का भी नाम है. वहां के भूतपूर्व जनपद गंगाराम सोलंकी ने कहा कि हमारे क्षेत्र में कपास, मक्का होता है. यहां हम खाद, दवाई सब डालते हैं. मैं पूरे भगवानपुरा में घूमता हूं मैं जानता हूं यहां जैविक खेती नहीं होती है. इन संस्थाओं और कंपनियों के रसूख का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत और मध्यप्रदेश सरकार के खत के बावजूद अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है. खरगोन में कृषि उपसंचालक एमएल चौहान ने कहा कि हम उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं. हमने पूछा था कि आपने कितना क्रय विक्रय किया है इसकी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है. आगे हम शासन को लिखेंगे, फिर कार्रवाई की जाएगी.

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खैर केन्द्र से कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एपीडा) ग्लोबल ऑर्गेनिक टेक्सटाइल स्टैंडर्ड से ही तो प्रमाणीकरण होता है, सरकार का जवाब वही रटा रटाया. मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि ये मेरे संज्ञान में है, मैंने जांच के आदेश दिये हैं, जो दोषी होगा सख्त कार्रवाई करेंगे, जब मैंने फर्जी ट्रेनिंग के बारे में सवाल पूछा तो पटेल ने कहा कि मैं खुद देखूंगा उसकी भी जांच करा रहा हूं.

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2020-21 में भारत से 8 लाख 88 हजार 179 मीट्रिक टन जैविक खाद्य सामग्री का निर्यात हुआ, यानी 7,078 करोड़ रुपए का निर्यात उसमें मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी 5 लाख मीट्रिक टन थी, यानी 2,683 करोड़ रुपए का कारोबार.

प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मास्टर प्लान तैयार किया है. जिसको मध्यप्रदेश में लागू कर दिया गया है. पहले चरण में किसानों से अपील की गई है कि वो 1-2 एकड़ में गौवंश आधारित खेती के साथ प्राकृतिक और जैविक खेती पर जोर दें. सरकार किसान को गाय पालने पर ₹900 प्रति माह अनुदान दे रही है. सबसे पहले नर्मदा नदी के किनारे रसायन मुक्त खेती करने का फैसला किया है. ये सारे जिले नर्मदा किनारे ही हैं जहां कई किसानों के मुताबिक कागजों पर ही जैविक खेती हो रही है.

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