उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने वर्षों से लंबित मामलों के त्वरित निपटारे के लिए मामलों को सूचीबद्ध करने के वास्ते प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की ओर से पेश प्रणाली को लेकर अपने एक न्यायिक आदेश में नाखुशी जाहिर की है.
किसी न्यायिक आदेश में इस तरह की नाराजगी जाहिर करने का यह अनोखा उदाहरण है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक आपराधिक मामले में जारी आदेश में कहा है, ‘‘मामलों को सूचीबद्ध करने की नयी प्रणाली मौजूदा मामले की तरह के मुकदमों की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रही है, क्योंकि ‘भोजनावकाश के बाद के सत्र' में कई मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं.''
न्यायमूर्ति कौल वरीयता क्रम में उच्चतम न्यायालय के तीसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं. उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश 13 सितम्बर को जारी किया, जिसे आज की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. नयी प्रणाली के तहत शीर्ष अदालत के न्यायाधीश दो अलग-अलग पालियों में कार्य कर रहे हैं. नयी प्रणाली के तहत प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को कुल 30 न्यायाधीश मुकदमों की सुनवाई करते हैं और दो-दो न्यायाधीशों की पीठ का ही गठन किया जाता है. प्रत्येक पीठ औसतन 60 से अधिक मामलों की सुनवाई करती है, जिनमें नयी जनहित याचिकाएं शामिल हैं.
सूत्रों के अनुसार, 27 अगस्त को प्रधान न्यायाधीश के पदभार ग्रहण करने के दिन से अभी तक नयी प्रणाली के तहत शीर्ष अदालत कुल 5000 से अधिक मामलों का निपटारा कर चुकी है. प्रधान न्यायाधीश के शपथ ग्रहण के दिन से लेकर 13 कार्यदिवसों में शीर्ष अदालत ने 3500 मिश्रित मामलों, 250 से अधिक नियमित और 1200 स्थानांतरण याचिकाओं का निपटारा किया है. इस सप्ताह के प्रारम्भ में एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगले सप्ताह से यह निर्णय लिया गया है कि वैसे मामलों की एक ही समेकित सूची होगी, जिनमें नोटिस जारी हो चुके हैं. यह सूची एक पीठ के लिए पूरे हफ्ते जारी रहेगी.
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