किसी भी शख्स पर IT एक्ट की धारा 66 A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और गृह सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए कि सभी लंबित मामलों से धारा 66A का संदर्भ हटा दिया जाए.

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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) 2000 की धारा 66 A केस में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को बड़ा फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66A के तहत किसी पर भी मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में श्रेया सिंघल मामले में इस धारा को असंवैधानिक करार दिया था. अदालत ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और गृह सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए कि सभी लंबित मामलों से धारा 66A का संदर्भ हटा दिया जाए. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रकाशित आईटी अधिनियम के बेयरएक्ट्स को पाठकों को पर्याप्त रूप से सूचित करना चाहिए कि धारा 66 A को अमान्य कर दिया गया है.

आईटी एक्ट की धारा 66-ए के अंतर्गत यह प्रावधान था कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाली सामग्री डालने पर व्यक्ति को गिरफ्तारी किया जा सकता है, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19.1.ए के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताकर निरस्त कर दिया था.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) यू यू ललित (UU Lalit) की बेंच ने कहा-  'जानकारी बताती है कि 66A को रद्द किए जाने के बावजूद नागरिक अभी भी मुकदमों का सामना कर रहे हैं. ऐसी कार्यवाही सीधे श्रेया सिंघल फैसले का उल्लंघन है. यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि 66A का संविधान का उल्लंघन पाया गया है. ऐसे में किसी भी नागरिक पर धारा 66A के उल्लंघन के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.' 

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सीजेआई ने कहा, 'उन सभी मामलों में जहां नागरिक 66A के उल्लंघन के लिए अभियोजन का सामना कर रहे हैं. सभी अपराधों से संदर्भ और 66A पर निर्भरता हटा दी जाएगी. हम सभी पुलिस महानिदेशकों, गृह सचिव और केंद्र शासित प्रदेशों के सक्षम अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि वे पुलिस बल को 66A के उल्लंघन के संबंध में कोई शिकायत दर्ज न करने का निर्देश दें. जिस भी पब्लिकेशन में 66A को कोट किया गया है, वहां लिखा जाए कि इस धारा को अदालत ने संवैधानिक करार दिया है.' 

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पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A के तहत FIR दर्ज करने पर चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये चिंता का विषय है कि आदेशों के बावजूद इस धारा में केस दर्ज किए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि वो राज्यों के चीफ सेकेटरी से संपर्क करे. सुनिश्चित करे कि 66A के तहत कोई जांच या ट्रायल ना चले.' 

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याचिकाकर्ता की ओर से संजय पारिख ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि बिहार ने तो अपने यहां दर्ज मुकदमों की सही जानकारी ही नहीं दी है, लेकिन 66A के तहत मुकदमे दर्ज होने की बात स्वीकारी है. छत्तीसगढ़ में 71 मामले दर्ज किए जिनमें से 48 पेंडिंग हैं. इनमें से कुछ केस ही निपटाए जा सके हैं. जम्मू-कश्मीर में श्रेया सिंघल मामले में फैसला आने के बाद 16 मामले में एफआईआर दर्ज की गई. निपटारा एक का भी नहीं हुआ है. झारखंड में 40 केस दर्ज किए गए, जिनमें सारे पेंडिंग हैं. मध्य प्रदेश में श्रेया सिंघल मामले के बाद दर्ज 145 मामलों में से 113 पेंडिंग हैं. वहीं यूपी, मेघालय, सिक्किम, ओडिशा व दिल्ली आदि की ओर से बताया गया कि उनके राज्य में अब कोई केस नहीं है. 

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सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा, 'ये एक गंभीर चिंता का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद कुछ राज्यों में इस धारा में FIR दर्ज हो रही हैं या मुकदमा लंबित है. ऐसे में केंद्र सरकार राज्यों के चीफ सेकेट्री से संपर्क करें और इस मामले में जानकारी लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन कराएं.'

1 अगस्त 2021 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-66 ए प्रावधान को रद्द करने के बाद इसके तहत दर्ज मामलों को बंद करना राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्राथमिक कर्तव्य है. राज्य सरकारों के तहत कानून का पालन करने वाली एजेंसियों को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि आईटी एक्ट की धारा-66ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न हो. 

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था भारत के संविधान के अनुसार राज्य के विषय हैं, और अपराधों का पता लगाकर इसकी रोकथाम, जांच व अभियोजन और पुलिसकर्मियों की क्षमता निर्माण मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है. केंद्र सरकार ने यह हलफनामा गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीयूसीएल की उस याचिका पर दिया है, जिसमें यह कहा गया है कि धारा-66ए को रद्द किए जाने के बावजूद इसके तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं. निरस्त किए जाने के वक्त इस कानून के तहत 11 राज्यों में 229 मामले पेंडिंग थे. 

इसके बाद भी इन राज्यों में इस प्रावधान के तहत 1307 नए मुकदमे दर्ज किए गए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र से जवाब मांगा था. फिर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ( PUCL ) द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया था. 
इसमें श्रेया सिंघल मामले के फैसले के तहत धारा 66 ए के प्रावधान के तहत FIR के खिलाफ विभिन्न दिशा-निर्देश और गाइडलाइन मांगी गई हैं. 

सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय पारिख से राज्यों को भी पक्ष बनाने के लिए कहा ताकि अदालत एक व्यापक उचित आदेश दे सके क्योंकि अंततः पुलिस राज्य का विषय है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश संजय पारिख ने कहा कि जहां एक स्थिति पुलिस के बारे में है, वहीं दूसरी न्यायपालिका की है.

सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2021 को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने की प्रथा पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए नोटिस जारी किया था. इसे शीर्ष अदालत ने 2015 के फैसले में श्रेया सिंघल मामले में खारिज कर दिया था. 

कोर्ट के आदेश के जवाब में, केंद्र ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि पुलिस और सार्वजनिक आदेश राज्य के विषय हैं, श्रेया सिंघल के फैसले को लागू करने के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी, जिसने आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को हटा दिया था, राज्य के पास है. इसके अलावा, कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​भी फैसले को लागू करने के लिए समान जिम्मेदारी साझा करती हैं 

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