33 साल पुराने केस में नवजोत सिद्धू की सजा बढ़ाने की पुनर्विचार याचिका पर SC ने फैसला रखा सुरक्षित

पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं, बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की है.

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नवजोत सिद्धू की सजा बढ़ाने की पी‍ड़‍ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
नई दिल्‍ली:

Road rage case:सुप्रीम कोर्ट ने 33 साल पुराने रोड रेज केस में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Sidhu )की सजा बढ़ाने की पी‍ड़‍ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. SC ने  सभी पक्षों की दलीलें सुनने को बाद फैसला सुरक्षित रखा.  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) यह तय करेगा कि सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं. इससे पहले, पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें उस समय बढ़ गईं थीं जब SC ने साधारण चोट की बजाए गंभीर अपराध की सजा देने की याचिका पर सिद्धू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.  दरअसल, पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं, बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की है. इससे पहले] सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट का मामला बताते हुए सिर्फ ये तय करने का फैसला किया था कि क्या सिद्धू को जेल की सजा सुनाई जाए या नहीं. 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विशेष पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल के सामने पीड़ित परिवार यानी याचिकाकर्ता की ओर से सिद्धार्थ लूथरा ने कई पुराने  मामलों में आए फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सड़क पर हुई हत्या और उसकी वजह पर कोई विवाद नहीं है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी साफ है कि हत्या की हमले की वजह से आई चोट थी हार्ट अटैक नहीं. लिहाजा दोषी को दी गई सजा को और बढ़ाया जाए. दूसरी ओर, नवजोत सिद्धू की ओर से पी. चिदंबरम ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने मामले को अलग दिशा दी है.ये मामला तो आईपीसी की धारा 323 के तहत आता है.घटना 1998 की है. कोर्ट इसमें दोषी को मामूली चोट पहुंचाने के जुर्म में एक साल की सजा सुना चुका है. जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि पिछले फैसले जो उद्धृत किए गए हैं उनके मुताबिक भी ये सिर्फ मामूली चोट का मामला नहीं] बल्कि एक खास श्रेणी में आता है अब आपको उन दलीलों के साथ बचाव करना है.पूरे फैसले के बजाय आपको सजा की इन्हीं दलीलों पर अपना जवाब रखना है. मौजूदा स्थिति में हम सिर्फ इसी पर सुनवाई को फोकस रखना चाहते हैं. हम पेंडोरा बॉक्स नहीं खोलना चाहते . चिदंबरम ने कहा कि इसका मतलब मामले के फैसले को फिर से खोलना होगा 

इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था जिसमें उन्‍होंनेअपने खिलाफ पुनर्विचार याचिका को खारिज करने की मांग की. सिद्धू ने अनुरोध किया है कि उनको जेल की सजा ना दी जाए.फैसले पर पुनर्विचार के लिए कोई वैध आधार नहीं है.कोई हथियार बरामद नहीं हुआ, कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.घटना को 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है.पिछले 3 दशकों में उनका बेदाग राजनीतिक और खेल करियर रहा. सांसद के रूप में बेजोड़ रिकॉर्ड है. उन्होंने लोगों के भले के लिए भी काम किया. जिन लोगों को आर्थिक मदद की जरूरत थी, उनकी मदद के लिए परोपकार के कार्य किए. वो कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं]  उनको आगे  सजा नहीं मिलनी चाहिए. अदालत ने 1000 रुपये जुर्माने की जो सजा दी थी, वही इसके लिए काफी है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है सिद्धू को जेल की सजा दी जाए या नहीं. इससे पहले सिद्धू की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए सिद्धू को राहत दी थी क्योंकि 20 फरवरी को पंजाब में मतदान होना था. गौरतलब है कि 15 मई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 1988 के रोड रेज मामले में मात्र 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ छोड़ दिया था. इसमें पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. पंजाब और हरियाणा एचसी ने सिद्धू को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया था और उन्हें 3 साल की जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन SC ने उन्हें 30 साल से अधिक पुरानी घटना बताते हुए 1000 रुपये के जुर्माने पर छोड़ दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरोपी और पीड़ित के बीच कोई पिछली दुश्मनी नहीं थी. आरोपी द्वारा किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया था. 

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यह है पूरा मामला :दरअसल, 27 दिसम्बर 1988 को सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू की पटियाला में कार पार्किंग को लेकर गुरनाम सिंह नाम के बुजुर्ग के साथ कहासुनी हो गई थी. झगड़े में गुरनाम की मौत हो गई थी. मामले में सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया. पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की तरफ से मामला दर्ज करवाया गया.साल 1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया. कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता, लेकिन साल 2002 में राज्य सरकार ने सिद्धू के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की. 1 दिसम्बर 2006 को हाईकोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना.6 दिसम्बर को सुनाए गए फैसले में सिद्धू और संधू को 3-3 साल की सजा सुनाई गई और एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगा. सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया. दोनों आरोपियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी को चंडीगढ़ की कोर्ट में सरेंडर किया गया. 12 जनवरी को सिद्धू और उनके दोस्त को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी. वहीं शिकायतकर्ता भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और सिद्धू को हत्या का दोषी करार देने की मांग की है.

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