Jammu Kashmir Election Results: हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को निराश किया और वह इस राज्य की सत्ता हासिल करने में नाकामयाब रही. जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) के साथ कांग्रेस (Congress) ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा. यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस ने तो शानदार विजय हासिल की लेकिन इसकी पार्टनर कांग्रेस को यहां भी निराश होना पड़ा. उसके लिए राहत की बात यह है कि गठबंधन में शामिल होने के कारण वह जम्मू कश्मीर की नई सरकार का हिस्सा बनेगी. इस बीच गुरुवार को आई एक खबर कांग्रेस को चिंता में डालने वाली है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को नए साथियों के रूप में चार निर्दलीय विधायक मिल गए हैं, जिन्होंने उसे समर्थन दे दिया है. यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास अब कांग्रेस के बगैर भी बहुमत का आंकड़ा है.
चार निर्दलीय विधायकों के नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने के बाद कांग्रेस जम्मू-कश्मीर सरकार का एक महत्वहीन हिस्सा बन सकती है. कांग्रेस अब नेशनल कॉन्फ्रेंस से सरकार में हिस्सेदारी के लिए मोलभाव करने की स्थिति में नहीं रह गई है.
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नेशनल कॉन्फ्रेंस को निर्दलीय विधायक प्यारेलाल शर्मा, सतीश शर्मा, चौधरी मोहम्मद अकरम और डॉ रामेश्वर सिंह ने अपना समर्थन दे दिया है. यह नेता इंदरवाल, छंब, सुरनकोट और बानी विधानसभा सीटों पर चुनाव जीती हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस को अब 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को छोड़कर 46 विधायकों का समर्थन हासिल हो गया है. बहुमत का आंकड़ा 46 है. इसमें लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा द्वारा नामित किए जाने वाले पांच विधायक शामिल नहीं हैं.
'मजबूर' की जगह 'मजबूत' सरकार के लिए कवायद
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सबसे अधिक 42 सीटें जीती हैं. उनकी सहयोगी कांग्रेस ने 6 सीटें जीती हैं और गठबंधन में तीसरी सहयोगी पार्टी सीपीएम ने एक सीट जीती है. नेशनल कॉन्फ्रेंस की 42 सीटों में चार निर्दलीय विधायकों के सीटें जुड़ने के बाद इसके समर्थन में कुल विधायकों की संख्या 46 हो गई है, जो कि विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए न्यूनतम संख्या बल है. यह ताकत हासिल करने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस और सीपीएम के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है. वह चाहे तो कांग्रेस और सीपीएम को सत्ता में हिस्सेदारी से बेदखल कर सकती है. यह हालात नेशनल कॉन्फ्रेंस को 'मजबूर' नहीं बल्कि 'मजबूत' सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करने वाले बन गए हैं.
वास्तव में जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री बनने जा रहे नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने अपनी सरकार के सुरक्षित भविष्य के लिए विकल्प तैयार रखने की रणनीति अपनाई है. एनसी अपने बलबूते पर बहुमत में नहीं है. उसे सिर्फ चार विधायकों के समर्थन की जरूरत है. ऐसे में यदि कांग्रेस के 6 विधायक सरकार से समर्थन वापस ले लेते हैं तो सरकार गिर सकती है. चार निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार सुरक्षित रह सकती है. दूसरी तरफ यदि निर्दलीय विधायक सरकार से बाहर जाते हैं तो कांग्रेस और सीपीएम सरकार के साथ होने पर उसके गिरने का खतरा नहीं रहेगा.
उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री की कुर्सी तय
गुरुवार को दोपहर में एनसी के विधायकों की बैठक के बाद महत्वपूर्ण घोषणा की गई. उमर अब्दुल्ला को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया और वे जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे.
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केंद्र शासित प्रदेश के जम्मू क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने 29 सीटें जीती हैं. उसे तीन अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन मिलने से भगवा दल के पक्ष में विधायकों की संख्या 32 हो गई है. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 2014 में 28 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार वह सिर्फ तीन सीटें जीत सकी. इन नतीजों से पीडीपी की 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने की उम्मीद खत्म हो गई.
कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन से उसके सहयोगी खफा
जम्मू कश्मीर में सत्ता के लिए कांग्रेस के समर्थन की जरूरत खत्म होने से पिछले एक दशक से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही इस पार्टी के सामने नया संकट गहरा गया है. हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनाने की आशा धूल में मिल गईं. कांग्रेस में अंदरूनी कलह उसकी चुनावों में हार का कारण बनी. टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष उभरा और बागी उम्मीदवारों ने कांग्रेस का चुनावी खेल बिगाड़ दिया. हरियाणा में पार्टी बहुमत तक नहीं पहुंच सकी और 37 सीटों पर सिमट गई. बहुमत के लिए 46 सीटों की जरूरत थी.
हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन को लेकर इंडिया गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों ने उसकी तीखी आलोचना की है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने विशेष रूप से कांग्रेस को खरी-खरी सुनाई है. उन्होंने कांग्रेस के "अहंकार" और "अति आत्मविश्वास" को लेकर उसकी आलोचना की है. इससे इसी साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले चुनावों और अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस को "जीत की पारी को हार में बदलने" वाली पार्टी बताया जा रहा है.
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