2014 के बाद की नरेंद्र मोदी की बीजेपी इस मायने में है वाजपेयी की बीजेपी से अलग...

2014 चुनाव के नतीजों ने बताया कि नरेंद्र मोदी का जादू किस तरह हावी है. उनके नाम पर बीजेपी ने 282 सीटें जीतकर अपने दम पर बहुमत हासिल किया. बेशक उन्‍होंने एनडीए को बनाए रखा.

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बीजेपी और नरेंद्र मोदी अब एक-दूसरे के पर्याय हो चुके हैं.

नई दिल्‍ली:

बीजेपी (BJP)ने छह अप्रैल को अपना 42वां स्‍थापना दिवस मनाया. इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)ने पार्टी सांसदों और नेताओं को संबोधित किया. इस अवसर पर उन्‍होंने कहा कि राजनीति में परिवारवाद ही है जिसने उसे खोखला किया है. देश में तुष्टि करण की सियासत ज्‍यादा दिन नहीं चलेगी. उन्‍होंने सरकार की उपतलब्धियां गिनाते हुए कहा कि देश की महिलाएं बीजेपी के साथ है. पीएम ने अपने संबोधन में कहा थाकि जब पूरी दुनिया दो विरोधी ध्रुवों में बंटी हो तब भारत को ऐसे देश के रूप में देखा जा रहा जो दृढ़ता के साथ मानवता की बात कर सकता है. हमारी सरकार राष्‍ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए काम कर रही है.अभी भी देश में दो तरह की राजनीति चल रही है.एक परिवारभक्ति की और दूसरी राष्‍ट्रभक्ति की. केंद्रीय स्‍तर पर अलग-अलग राज्‍यों में हमारे यहां कुछ सियासी दल है जो सिर्फ अपने अपने परिवार के हितों के लिए काम करते हैं. 

दरअसल, यह राष्‍ट्भक्ति ही है जो इस नई बीजेपी का मंत्र है. एक बीजेपी है 2014 के पहले की और एक है इसके बाद की. इस नई बीजेपी से ऐसे कई नेता जुड़ गए जो पहले इसके साथ नहीं थे और ऐसे नेता इससे छिटक गए जो वाजपेयी की बीजेपी को ढूंढ रहे थे. इसके पीछे वजह रही मोदी का उदय. मोदी साल 2013 में गुजरात से दिल्‍ली बुलाए गए थे और बीजेपी  ने उन्‍हें 2014 के चुनाव में पीएम पद के लिए उम्‍मीदवार प्रोजेक्‍ट किया था. किसी को उम्‍मीद नहीं थी कि यह भारतीय राजनीति में नए दौर का ऐलान है.मोदी 2002 के गुजरात दंगों के लिए बदनाम थे. देश के उदार तबकों को वे स्‍वीकार नहीं थे. उनके पास कट्टर हिंदुत्‍व और गुजरात मॉडल का दावा ही था और इसके बूते वे लगातार तीन चुनाव जीत चुके थे. खुद लालकृष्‍ण आडवाणी ने गोवा अधिवेशन ने इस फैसले का विरोध किया था. बहरहाल,  2014 चुनाव के नतीजों ने बताया कि नरेंद्र मोदी का जादू किस तरह हावी है. उनके नाम पर बीजेपी ने 282 सीटें जीतकर अपने दम पर बहुमत हासिल किया . बेशक उन्‍होंने एनडीए को बनाए रखा. 2019 के चुनाव में यह जादू और बढ़ा हो गया और बीजेपी को अपने दम पर 303 सीटें मिलीं. मोदी पहले ऐसे गैरकांग्रेसी नेता बने जो लगातार दूसरी बार पीएम बने. यह वह दौर है जब बीजेपी और नरेंद्र मोदी लगभग पर्याय हो चुके हैं. 

मोदी के प्रशंसक और विरोधी  बंटे हुए हैं. इस दूसरे दौर में  बीजेपी ने कुछ अहम फैसले किए जिसके प्रशंसा भी हुई और आलोचना भी हुई कश्‍मीर में अनुच्‍छेद 370 हटाने का फैसला इसी दौर हुआ, मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक को लेकर इसी समय कानून भी बनाया गया. कई राज्‍यों में एक और कानून आया जिसे लेकर विवाद हुआ.वह है धर्मांतरण को रोकने का कानून. गौकशी और मॉब लिंचिग को लेकर आलोचना भी हुई. कई बार अंगुली उठी, ऐसे संगठनों पर अंगुली उठी जिसके बारे में कहा जाता है कि बीजेपी को इनकी शह है. दरसअल, धर्म और राष्‍ट्रवाद का नया मिक्‍स इस बीजेपी ने बनाया है. अयोध्‍या में राम मंदिर निर्माण के लिए विराट आयोजन इसी मिक्‍स के तहत है. इसके समांनातर बुलेट ट्रेन से लेकर स्‍मार्ट सिटी तक विकास का नया चेहरा भी दिखता है. कभी स्‍वदेशी की बात करने वाली बीजेपी अब विनिवेश और विदेशी निवेश की बात भी कर रही है. पीएम 'आत्‍मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' के तहत बीजेपी को नई ताकत देने की कोशिश कर रहे हैं.  42वें साल में बीजेपी जितनी युवा है, उतनी पहले नहीं थी लेकिन आलोचक मानते हैं कि इसी दौर में उसने देश के अंदर कई दरारें पैदा की हैं. लोकतंत्र बहुसख्‍यक वाद की चपेट में आ गया है और अल्‍पसंख्‍यक डरे हुए हैं. देखना यह है कि आने वाले दिनों में मोदी और बीजेपी यह राय बदलने में कामयाब होते हैं या नहीं.

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