कैसे MP का ड्रग सिस्टम एक जानलेवा सिरप को रोकने में रहा नाकाम, 20 बच्चों की हो चुकी है मौत

तमिलनाडु सरकार ने तत्काल कार्रवाई की. उसके ड्रग लैब ने वही सिरप चंद घंटों में जांचा और सिर्फ 48 घंटे के भीतर यह साबित कर दिया कि दवा जहरीली है. तुरंत उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन जब तमिलनाडु सक्रिय था

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  • मध्य प्रदेश में संदिग्ध कफ सिरप पीने से अब तक बीस बच्चों की मौत हो चुकी है और सात बच्चे गंभीर हालत में हैं
  • तमिलनाडु की लैब ने जहरीला सिरप चंद घंटों में पहचाना जबकि मध्य प्रदेश में सैंपल डाक से तीन दिन बाद पहुंचे
  • राज्य सरकार ने रिपोर्ट के बिना सार्वजनिक रूप से सिरप को सुरक्षित घोषित कर दिया था जो बाद में घातक साबित हुआ
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भोपाल:

मध्य प्रदेश में बीस बच्चों की मौत हो चुकी है और सात बच्चे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं. एक ऐसी खांसी की दवा पीने के बाद जो उन्हें कभी मिलनी ही नहीं चाहिए थी. छिंदवाड़ा में शुरू हुई बच्चों की रहस्यमयी मौतों की यह कहानी अब भारत की दवा नियंत्रण व्यवस्था के ढहते तंत्र की भयावह तस्वीर बन चुकी है. एक ऐसी व्यवस्था जो लोगों की जान बचाने के लिए बनी थी, पर अब अपनी ही सुस्ती में दम तोड़ रही है.

कफ सिरप से 29 सितंबर तक हुई थी 10 बच्चों की मौत

29 सितंबर तक दस बच्चे Coldrif नामक सिरप पीने के बाद मर चुके थे. यह सिरप तमिलनाडु स्थित एक फार्मा कंपनी ने बनाया था लेकिन हैरानी की बात यह है कि संदिग्ध सिरप के सैंपल राज्य की दवा परीक्षण प्रयोगशाला तक साधारण रजिस्टर्ड डाक से भेजे गए, न किसी आपात माध्यम से और न किसी ट्रैकिंग सुविधा के साथ. यह वही पोस्ट है जिससे आमतौर पर चिट्ठियां भेजी जाती हैं.

प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने बिना रिपोर्ट किया था सिरप के सुरक्षित होने का दावा

इस बीच, मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने बिना किसी रिपोर्ट के, 1 और 3 अक्टूबर को दो बार, सार्वजनिक रूप से यह कह दिया कि सिरप सुरक्षित है. जब रिपोर्ट तक नहीं आई थी, तब ही दवा को क्लीन चिट दे दी गई और अब यह निर्णय उन बच्चों की लाशों के सामने एक कड़वा सच बनकर खड़ा है जो पहले ही मर चुके थे.

तमिलनाडु सरकार ने की थी तत्काल कार्रवाई

दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार ने तत्काल कार्रवाई की. उसके ड्रग लैब ने वही सिरप चंद घंटों में जांचा और सिर्फ 48 घंटे के भीतर यह साबित कर दिया कि दवा जहरीली है. तुरंत उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन जब तमिलनाडु सक्रिय था, तब मध्य प्रदेश के सैंपल डाक तंत्र में भटक रहे थे. छिंदवाड़ा से भोपाल की दूरी महज तीन सौ किलोमीटर है, लेकिन इन सैंपलों को वहां पहुंचने में तीन दिन लग गए. जहां हर घंटे कीमती था, वहां सरकार ने दिन गंवा दिए.

19 सितंबर को आई थी पहली चेतावनी

पहली चेतावनी 19 सितंबर को आई, जब नागपुर से रिपोर्ट मिली कि बच्चों की मौत में खांसी की किसी दूषित दवा की भूमिका हो सकती है. 22 सितंबर को राज्य स्वास्थ्य विभाग की टीम छिंदवाड़ा पहुंची. इसके बाद 26 से 28 सितंबर के बीच नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC) और नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) की टीमों ने सैंपल लिए.

29 सितंबरको छिंदवाड़ा में लगाई गई थी सिरप की बिक्री पर रोक

29 सितंबर को छिंदवाड़ा कलेक्टर ने स्थानीय स्तर पर सिरप की बिक्री पर रोक लगा दी, लेकिन यह रोक सिर्फ जिले तक सीमित रही. आसपास के इलाकों में वही दवा कई दिनों तक बिकती रही. 1 अक्टूबर को केंद्र ने Nastro-DS और Coldrif नामक दो संदिग्ध सिरप पर राज्यों को अलर्ट भेजा. 3 अक्टूबर को तमिलनाडु की लैब ने Coldrif को जहरीला और घटिया घोषित किया और 4 अक्टूबर, यानी पहली मौतों के चार हफ्ते बाद, मध्य प्रदेश सरकार ने अंततः पूरे राज्य में सिरप पर प्रतिबंध लगाया. तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

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एनडीटीवी से ड्रग कंट्रोलर दिनेश श्रीवास्तव ने कही ये बात

जब NDTV ने मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर दिनेश श्रीवास्तव से पूछा कि बच्चों की मौत जैसे गंभीर मामले के सबूत साधारण पोस्ट से क्यों भेजे गए, तो उन्होंने कहा “परंपरागत रूप से सभी सैंपल रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजे जाते हैं लेकिन आपात स्थितियों में अधिकारियों को इन्हें विशेष माध्यम से भेजना चाहिए. यह मामला जांच में है, जिन लोगों से देरी हुई है उन्हें निलंबित किया गया है.”

जांच व्यवस्था कितनी कमजोर है, इस मामले से आया सामने

इस घटना ने यह भी उजागर कर दिया है कि मध्य प्रदेश की दवा जांच व्यवस्था कितनी कमजोर है. राज्य में सिर्फ तीन दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं भोपाल, इंदौर और जबलपुर में. इनकी संयुक्त क्षमता है साल में मात्र 6,000 सैंपल जांचने की. फिलहाल, 5,500 सैंपल लैबों में लंबित हैं. हर सैंपल की जांच में दो से तीन दिन लगते हैं, और पूरे राज्य में दवा निरीक्षकों की संख्या महज़ 80 है.

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ड्रग कंट्रोलर ने कही ये बात

अधिकारियों ने माना कि मौजूदा गति से इन सभी सैंपलों को जांचने में एक साल से ज़्यादा का वक्त लग सकता है. श्रीवास्तव ने कहा, “हमारी तीन लैब साल में करीब 6,000 सैंपल जांच सकती हैं. क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत है, और इस पर काम होगा,” लेकिन जिन परिवारों के बच्चे अब नहीं रहे, उनके लिए ये वादे किसी राहत से कम नहीं, बल्कि देर से पहुंचा सांत्वना पत्र है. लापरवाही की तस्वीर यहीं खत्म नहीं होती राज्य सरकार की दो मोबाइल ड्रग टेस्टिंग वैनें, जो मौके पर जाकर जांच करने के लिए थीं, सालों से भोपाल की इदगाह हिल्स स्थित एमपीएफडीए परिसर में खड़ी धूल खा रही हैं. एक 2022 से नहीं चली, दूसरी कभी इस्तेमाल ही नहीं हुई.

संयुक्त नियंत्रक टीना यादव ने कही ये बात

संयुक्त नियंत्रक टीना यादव ने कहा, “कुछ त्वरित परीक्षण वैन में किए जा सकते हैं, लेकिन अधिकांश रासायनिक जांच के लिए भारी उपकरणों की आवश्यकता होती है. इस पर विचार चल रहा है.” इन निष्क्रिय वैनों का दृश्य अब एक प्रतीक बन चुका है, उस सरकारी सुस्ती का, जिसने चेतावनियों को अनदेखा किया और बच्चों की ज़िंदगियां गंवाईं. जांच एजेंसियां अब जब सिरप की हर बोतल को ट्रेस करने में लगी है, तब और भी भयावह आंकड़े सामने आ रहे हैं. Coldrif की 660 बोतलें छिंदवाड़ा और आसपास के जिलों में वितरित की गई थीं. इनमें से 457 बोतलें जब्त की गईं, 28 जांच के लिए भेजी गईं, 156 मरीजों को दी जा चुकी हैं, और 19 बोतलें अब भी लापता हैं.

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किसी को नहीं पता किन लोगों के पास है इस दवा की बोतलें

किसी को नहीं पता कि ये बोतलें कहां हैं या किसी के घरों और अस्पतालों तक पहुंच चुकी हैं या नहीं. हर गुम बोतल अब एक खतरे की घंटी है जो बताती है कि संकट अभी भी पूरी तरह टला नहीं है. छिंदवाड़ा की यह त्रासदी सिर्फ़ एक कंपनी की लापरवाही नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की गहरी विफलता की कहानी है. ऐसी सरकार जो देर से जागी, ऐसे लैब जो बोझ से टूट गए, ऐसी मशीनें जो कभी चली ही नहीं, और ऐसा प्रशासन जिसने आपात स्थिति को पहचानने से इंकार कर दिया.

जब जहर फैला था, तब फाइलें चल रही थीं. जब जांच करनी थी, तब पोस्ट भेजी जा रही थी और जब रोक लगानी थी, तब बयान दिए जा रहे थे. आज जब बीस परिवार अपने बच्चों की लाशों पर रो रहे हैं और सात बच्चे वेंटिलेटर पर ज़िंदगी से लड़ रहे हैं, तब मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग अब भी अपनी फाइलों में उलझा है. चेतावनियां सब थीं पर अनसुनी रहीं.

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इसके लिए कौन जिम्मेदार?

यह त्रासदी सिर्फ एक सिरप की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की है जो खुद बीमार है. सवाल अब यह नहीं है कि ज़िम्मेदार कौन है, बल्कि यह है कि क्या राज्य की यह दवा नियंत्रण व्यवस्था कभी खुद अपनी बीमारी का इलाज ढूंढ पाएगी?

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