केंद्र में एक बार फिर एनडीए गठबंधन की सरकार बन रही है और पीएम मोदी के नेतृत्व में सहयोगी दलों के साथ अगली सरकार और मंत्रिमंडल का गठन जारी है. दस साल तक अपने बहुमत के बलबूते सत्ता में कायम रहने वाली बीजेपी अब सहयोगी दलों पर निर्भर है. देश में गठबंधन सरकार का दौर फिर से लौट आया है. इतिहास के पन्नों पर यूपीए, एनडीए और यूनाइटेड फ्रंट जैसी गठबंधन सरकारें और उनको बनाने का काम करने वाले व्यक्तियों के किस्से दर्ज हैं. चलिए जानते हैं कि एनडीए की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रमोद महाजन को बीजेपी का 'संकटमोचक' क्यों कहा गया. फिर समझेंगे कि यूनाइटेड फ्रंट को आकार देने वाले 'लंदन तोड़ सिंह' मतलब हरकिशन सिंह सुरजीत आखिर थे कौन?
अपने दलों को सत्ता तक पहुंचाने वाले 'किंगमेकर'
आज के दौर में अमित शाह को बीजेपी का चाणक्य कहा जाता है, लेकिन बीजेपी के गुजरे दौर में प्रमोद महाजन को बीजेपी का असली संकटमोचक माना जाता था. 1998 में जब बीजेपी की अगुवाई में एनडीए का गठन हो रहा थास तब महाजन ने बड़ी भूमिका निभाई थी. 1999 चुनाव के नतीजे आते ही 182 सांसदों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, फिर सरकार बनाने के लिए पहली बार 20 पार्टियों से ज्यादा सहयोगियों को साथ लाया गया था.
जितेंद्र दीक्षित अपनी किताब 'बॉम्बे आफ्टर अयोध्या' में लिखते हैं, कि जब एनडीए बनने की बात शुरू हुई तब कुछ घंटों में ही प्रमोद महाजन ने नेताओं से बातचीत शुरू की. कुछ घंटों में ही महाजन ने ममता बनर्जी, जयललिता और आंध्र से चंद्रबाबू नायडू से सकारात्मक बात कर ली थी. जब सरकार बनी, तब भी ये महाजन का काम था कि वह इन नेताओं से संपर्क बनाए रखें और गठबंधन में कोई बाधा ना आए, इस पर ध्यान दें.
वाजपेयी और आडवाणी दोनों के करीबी माने जाने वाले महाजन 1995-96 में ही बीजेपी के संकटमोचक बन गए थे. तब गुजरात में बीजेपी के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला और नरेंद्र मोदी के बीच दरार आ चुकी थी. उस वक्त आडवाणी ने प्रमोद महाजन को गुजरात भेजकर इन नेताओं के बीच सुलह करवाई.
हरकिशन सिंह ने बनाई थी यूनाइटेड फ्रंट की टीम
हरकिशन सिंह सुरजीत लेफ्ट और कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता रहे हैं. पंजाब से आने वाले सुरजीत, भगत सिंह के शुरू किए गए नौजवान भारत सभा का हिस्सा बनकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. हरकिशन ने कम उम्र में ही क्रांतिकारी आंदोलन में हिस्सा ले लिया था और होशियारपुर के एक न्यायालय पर तिरंगा लहरा दिया था. जब उनको गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने अपना नाम 'लंदन तोड़ सिंह' बताया. 1947 के बाद उन्होंने राजनीति में अपना लोहा मनवाया.
यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनाने के लिए हरकिशन सिंह ने कई दलों को एक साथ लाने की कोशिश की. वो बीजेपी के कड़े विरोधी थे और बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए वो अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ ही अन्य दलों को भी एक मंच पर लाए. ये भी कहा जाता था कि सुरजीत के जरिए ही कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बीच बातचीत होती थी.
हरकिशन सिंह सुरजीत ने कम्युनिस्ट पार्टी के 'एकला चलो रे' नारे को बदला और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता की सीढ़ी चढ़ी. 1996 में जब लेफ्ट के पास प्रधानमंत्री पद का मौका आया, तब सुरजीत पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बासु को प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. हालांकि पार्टी के अन्य नेताओं को वो मना नहीं सके और प्रधानमंत्री का पद ना लेना आज भी लेफ्ट की एक बड़ी गलती मानी जाती है.
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