MP Power Crisis: मध्यप्रदेश में आजकल गाहे बगाहे कभी भी बत्ती गुल हो रही है. मानसून के सीजन में बिजली सप्लाई (Power Supply) कम है और अघोषित बिजली कटौती की जा रही है जिससे जनता परेशान है. एमपी पर कोल इंडिया का 998 करोड़ रुपये बकाया है लेकिन सूबे के बिजली मंत्री प्रदुम्न सिंह तोमर कह रहे हैं कि बारिेश की वजह से कोयले की कम सप्लाई हो रही है. हालात ये हैं कि विपक्ष तो छोड़िये सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
मध्यप्रदेश के कई इलाकों में मानसून के मौसम में वक्त बेवक्त बिजली आंखमिचौली खेल रही है. हालत ये है कि बिजली कटौती को लेकर बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने अपनी ही सरकार पर हमला बोल दिया है. कहा है 4 सितंबर को पूरे इलाके में बिजली आंदोलन करेंगे.
नारायण त्रिपाठी कहते हैं, 'मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अगर बीजेपी को बचाना चाहते हैं तो बिजली विभाग पर कड़ाई करें, बिजली विभाग में सुधार करें अन्यथा परिणाम बहुत बुरे होंगे. वर्तमान में बिजली विभाग की जो नीतियां हैं बीजेपी सरकार की लुटिया डुबाने के लिए काफी हैं.'
नारायण त्रिपाठी अकेले नहीं हैं. इसके पहले बीजेपी के राकेश गिरि गोस्वामी और अजय बिश्नोई भी अघोषित बिजली कटौती को लेकर सरकार को चिट्ठी लिख चुके हैं.
सच्चाई क्या है इसे इस पत्र से समझा जा सकता है जो जबलपुर ज़िले के पाटन में बिजली विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने पुलिस को लिखा है औऱ जिसमें पॉवर सब स्टेशन के लिये सुरक्षा मांगी गई है क्योंकि बिजली कटौती की वजह से बिजली चालू कराने के लिये जनता भीड़ में पॉवर स्टेशन पहुंचती है.
रतलाम, धार जैसे जिलों में विपक्ष प्रदर्शन कर रहा है. कांग्रेस का आरोप है कि निजी क्षेत्र की कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने उपभोक्ता की ठगी के नए रास्ते बनाये हैं.
28 अगस्त को अगर सरकारी वेबसाइट खंगाले तो विपक्ष के दावों में दम है. उस दिन बिजली कंपनी ने 1363 मेगावाट की अघोषित लोड शेडिंग की है. एक दिन पहले 1708 मेगावाट की लोड शेडिंग की गई थी. ये हालत तब है जब पीक डिमांड 9097 मेगा वाट है और सरकार ने लगभग 21000 मेगावाट के निजी कंपनियों से क्रय अनुबंध कर रखे हैं. सवाल ये भी है कि जब राज्य में पीक लोड 15000 मेगावाट होता है तो 21000 मेगावाट तक के क्रय अनुबंध क्यों किए गए. जानकारों के मुताबिक इससे लगभग 3000 करोड़ का नुकसान होता है.
कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता कहते हैं, 'ये सरकार इस तरह के बयान दे रही है, एसीएस का बयान भ्रामक है, मध्यप्रदेश अंधेरे की तरफ बढ़ रहा है, सरकार दावा करती है 21000 मेगावाट है तो सप्लाई क्यों नहीं कर पा रही है.'
लेकिन मंत्रीजी कह रहे हैं कोई दिक्कत नहीं है. ऊर्जा मंत्री प्रदुम्यन सिंह तोमर कहते हैं, 'बिजली का कोई संकट नहीं है. बकाया तो विश्वास पर है, इससे कोयला कहां रोका. जिस गांव में 18 घंटे, 12 घंटे बिजली कटी है मैं वहां चलने को तैयार हूं, अपवाद स्वरूप बाढ़ या बिजली काटी हो. उत्पादन और मांग में कोई अंतर नहीं है.'
कांग्रेस का आरोप है कि सारणी में 1330 की क्षमता पर 252, संजत ताप में 1340 की क्षमता पर 474, सिंगाजी में 2520 की क्षमता पर 857 और चचाई में 210 की क्षमता पर 210 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है. वहीं जलविद्युत ईकाइयों से 2435 की क्षमता पर 456 मेगावाट उत्पादन हो रहा है.
खंडवा के संत सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट की 4 में से 2 यूनिट ही चालू है, प्लांट के स्टॉक में मात्र 70 हजार मीट्रिक टन कोयला ही बचा है. जो रोजाना 16 हजार की खपत के हिसाब से अगले चार से पांच दिन में खत्म हो जाएगा. सरकार पर कोयला कंपनियों का करोड़ों बकाया है लेकिन अधिकारी संभल कर बयान दे रहे हैं.
सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट के अधिकारी आर के पांडे ने कहा, 'एसीएल, डब्लूसीएल से कोयला आ रहा है लेकिन बहुत समस्या है, ओपन कास्ट माइन में पानी भर गया है.'
सरकार भी मान रही है दिक्कत है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, 'नर्मदा के बांध खाली हैं, पानी वाली बिजली मिल नहीं रही, कोयला के खदानों में पानी भर गया, पर्याप्त आपूर्ति मिली नहीं लेकिन कभी कभार ऐसा होता है लेकिन वैकल्पिक इंतजाम कर रहे हैं.'
बारिश नहीं हुई, कोयला गीला है, पैसा नहीं है सारे सरकारी तर्क ठीक हैं, बस कोई ये बता दे कि मांग से ज्यादा आपूर्ति का जो करार कर रखा है जिसमें हर साल नियमों के नाम पर करोड़ों का बोझ जनता के जेब पर जाता है आखिर वो बिजली कहां गई.