बच्चों की पढ़ाई छूटी, गिरवी रखे गहने, सैलरी नहीं मिलने से परेशान महाराष्ट्र में दिव्यांग स्कूल के शिक्षक

एक नॉन टीचिंग स्टाफ ने बताया कि अभी तीन महीने हो गए फरवरी, मार्च, अप्रैल की सरकार ने पैसे नहीं दिए हैं. घर का खर्चा करने के लिए पत्नी के सोने के गहने गिरवी रखने पड़े हैं.

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मुंबई:

महाराष्ट्र के सैंकड़ों दिव्यांग स्कूलों के शिक्षकों और कर्मचारियों को सरकार की ओर से इस साल जनवरी से वेतन नहीं दिया गया है और इसका असर हजारों शिक्षकों और कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है. केवल शिक्षक ही नहीं बल्कि नॉन टीचिंग स्टाफ से जुड़े लोग भी परेशान हैं. इनकी समस्या है कि इनकी तनख्वाह पहले से कम होती है और महीनों तक वेतन नहीं मिलने के कारण चपरासी का काम करने वाले को अपने बीवी के गहने गिरवी रखने पड़े तो वहीं अगले साल रिटायर हो रहे जयंत मोरे की बेटी की पढ़ाई छूट गई है.

"लोग हमारे ऊपर हंसते हैं"

एक शिक्षिका मधुरा सालवी ने NDTV से कहा कि लोगों का पैसा नहीं जाने पर बैंक वाले घर आते हैं और हमें बहुत शर्मीदा होना होता है. शिक्षक होकर हम किसी का कर्ज नहीं चुका पाते हैं, यह हमारे लिए शर्म की बात होती है. वहीं एक अन्य शिक्षक मधुकर पवार ने कहा कि हमें गांव से पैसा मंगवाना पड़ रहा है, दोस्तों से पैसा मांगना पड़ रहा है. जब हम दोस्तों से या माता पिता से पैसा मांगते हैं तो वो हंसते हैं, कहते हैं तुम शिक्षक हो और तुम हमसे पैसा कैसे मांग रहे हो. तुम्हें सैलरी कैसे नहीं मिलती, कितने दिन से सैलरी नहीं मिली है. वो हमपर ही हंसते हैं. 

"पत्नी के सोने के गहने गिरवी रखने पड़े"

एक नॉन टीचिंग स्टाफ ने बताया कि अभी तीन महीने हो गए फरवरी, मार्च, अप्रैल की सरकार ने पैसे नहीं दिए हैं. घर का खर्चा करने के लिए पत्नी के सोने के गहने गिरवी रखना पड़ा और घर चल रहा है. लोन वाले घर आकर ताना दे रहे हैं, ईएमआई नहीं भर पा रहे हैं. 

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एक अन्य कर्मचारी जयंत मोरे ने कहा कि मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़की और एक लड़का. उनके खुद की पढ़ाई के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं. बड़ी बेटी ने कहा की आप मेरे भाई को पढ़ाइए, आपको आगे काम आएगा.  बड़ी बेटी को ना पढ़ाते हुए अब केवल छोटे बेटे को ही पढ़ा रहा हूं, पिता होने के कारण मुझे हमेशा लगता है की मैं मेरी बेटी पर अन्याय कर रहा हूं.

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ग्रांट पास होने में लगता है- अधिकारी

पूरे मामले पर अधिकारियों का कहना है कि राज्य मैं दिव्यांगों के 850 स्कूल हैं. इन स्कूलों में 10500 टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ मौजूद हैं. हर साल इन शिक्षकों के वेतन के लिए राज्य सरकार को 661 करोड़ रुपए खर्च करने होते हैं. शिक्षकों को वेतन ना देते हुए दिव्यांग स्कूलों को ग्रांट दी जाती है और ग्रांट पास होने में समय लगता है. तकनीकी कारणों के वजह से भी देरी हुई है. जल्द ही सभी को वेतन दिया जाएगा. 

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पूरे मामले पर विपक्षी विधायक ने आरोप लगाया है कि शासन इन स्कूलों को सहायक अनुदान देती है, उसके बजाय उन्हें अनुदान दिया जाना चाहिए. राइट टू एजुकेशन का कानून बना है लेकिन उसका सही से उपयोग इन बच्चों के लिए नहीं किया जा रहा है. बच्चों के लिए सही व्यवस्था नहीं है, शिक्षकों का शोषण अधिक होता है. 

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