सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी है. इसके बाद वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) ने शुक्रवार को कहा कि "यह एक दूरगामी स्थिति है" जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से विचार किया है. उन्होंने कहा कि मदरसा शिक्षा पूरी तरह से धर्म या धार्मिक अध्ययन के बारे में नहीं है बल्कि इसका अन्य महत्वपूर्ण आधुनिक विषयों से भी बहुत संबंध है.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया था.
सलमान खुर्शीद ने कहा, "यह एक दूरगामी स्थिति है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा बोर्ड के उद्देश्य और मदरसा शिक्षा की पृष्ठभूमि में बहुत विस्तार से विचार किया है. तथ्य यह है कि मदरसा शिक्षा पूरी तरह से धर्म या धार्मिक अध्ययन के बारे में नहीं है, बल्कि इसका अन्य महत्वपूर्ण आधुनिक विषयों से काफी कुछ लेना-देना है.''
उन्होंने कहा, ""छात्रों और 10 हजार शिक्षकों को होने वाली अव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इस मामले की सुनवाई जुलाई में की जानी चाहिए. तब तक हाईकोर्ट के फैसले सहित सभी चीजों पर रोक रहेगी."
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है.
एआईएमपीएलबी सदस्य ने कहा, "हम फैसले का स्वागत करते हैं. यूपी में करीब 17 लाख छात्र मदरसा बोर्ड के तहत शिक्षा हासिल करते हैं. हजारों शिक्षक और अन्य कर्मचारी इसमें शामिल हैं. यह उनके भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिह्न था जिसने एक तरह का संकट पैदा कर दिया था. आज सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के बाद लोग खुश हैं."
फैसले का अध्ययन करेंगे : दानिश आजाद
इस बीच, उत्तर प्रदेश के मंत्री दानिश आजाद ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करेंगे और कहा कि मदरसा शिक्षा के लिए हमें जो भी दिशानिर्देश मिले हैं, हम उन पर काम करने की कोशिश जरूर करेंगे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष है कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, सही नहीं हो सकता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्र प्रभावित होंगे और उसका मानना है कि छात्रों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करने का निर्देश उचित नहीं है.
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