देश में नये कृषि कानून और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर खूब चर्चा है. बताया जा रहा है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंस से किसान खूब खुशहाल होंगे, लेकिन जमीनी हकीकत कई बार उलट होती है. जैसे उत्पादन अधिक और मांग कम होने से आलू की बेकदरी हो रही है. वो भी उस राज्य में जहां चिप्स के लिये आलू की डिमांड देश भर में सबसे ज्यादा होती है और उगने से पहले ही आलू का सौदा हो जाता है.
देवास के चंदाना गांव के करीब में कोल्ड स्टोरेज में बोरियों में आलू भरा पड़ा है. वहां के किसान कल्याण पटेल कहते हैं एक बीघे में 7-8 क्विंटल आलू पैदा होता है, आज ढाई तीन रु मिल रहे हैं, जेब से पैसे लग रहे हैं क्योंकि भाव 3 रु किलो से ऊपर गया नहीं. कोल्ड स्टोरेज में एक कट्टे को रखने का खर्चा 150-200 रु. आता है, मेरे 300-400 कट्टे रखे हैं जो बेचूंगा कोल्ड स्टोरेज के पैसे भरने में चला जाएगा.
वहीं राजेन्द्र पटेल का कहना है बाहर आलू की निकासी नहीं है इसलिये भाव नहीं मिल रहा है. चिप्स वाले नहीं खरीद रहे हैं कह रहे हैं लाल हो रही है...क्या मालूम क्या गणित है, क्या करेंगे कोल्ड स्टोरेज से बाहर फेंक देंगे.
शाजापुर जिले के देवी अजोध्या कोल्ड स्टोरेज में भी आलू भरा पड़ा है, बाहर रेट कार्ड चिपका है. शाजापुर में भी बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती है लेकिन किसान परेशान हैं. पहले लागत नहीं मिली तो आलू कोल्ड स्टोरेज में रख दिया, अब तो स्टोरेज का खर्चा तक नहीं मिल रहा है. दिलीप पाटीदार बड़े किसान हैं, कह रहे हैं इस बार लागत बहुत लगी, 25000 बीघे का खर्चा बीज में लगा, 8 रु मिल रहा था आलू का तो किसान ने उस वक्त स्टोरेज में रख दिया. अब स्टोरेज वाले कह रहे हैं आलू निकालो. मंडी में ले जाएंगे तो 3 रु बिक रहा, 3 रु प्रति किलो तो स्टोर वाले को भाड़ा देना है, वहीं पड़ा रहने देंगे, किसानों की बहुत बुरी हालत है.
वहीं महेश पाटीदार कहते हैं कि कोल्ड स्टोरेज में ये हालात है कि व्यापारी नहीं मिल रहे, मिल रहे हैं तो सिर्फ कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा दे रहे हैं. राकेश पाटीदार कहते हैं 2000-2500 रु. का कट्टा था बीज में. खेत में पहले खरीद रहे थे, हमने दिया नहीं. अब स्टोर में रखा है कट्टा... भाड़ा भी नहीं निकल रहा है.
इंदौर के करीब राऊ में भी हजारों टन आलू कोल्ड स्टोरेज में ही पड़ा है, मित्तल कोल्ड स्टोरेज संचालक भी मान रहे हैं कि किसानों को नुकसान हुआ है. स्टोरेज के मैनेजर एस के दुबे कहते हैं, 'आलू की बंपर फसल है. दो साल से लॉकडाउन लगा हुआ है उसके कारण से मार्केट में उठाव नहीं है. स्कूल-कॉलेज सब बंद हैं, मार्केट में चिप्स की डिमांड नहीं है. किसानों को उस कारण से खूब नुकसान हुआ है, खेत में जो 10-12रु किलो आलू बिक रहा था, स्टोर का खर्चा 3-4 रु आ जाता है. आज 5-6 रु आलू है लेकिन लेवाली नहीं है, किसान को स्टोर का भाड़ा देने में भी परेशानी है.
सबसे चौंकाने वाली प्रतिक्रिया सरकार की है. कृषि मंत्री कह रहे हैं किसान कंपनी को आलू क्यों बेच रहे हैं, खुद कंपनी खोल लें. कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा, 'पानी की बोतल की एमआरपी होती है, दूध के बोतल की नहीं. लेकिन हम मोदी जी, शिवराज जी के नेतृत्व में किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रहे हैं, किसान की खेती लाभ का धंधा बने.' जब हमने पूछा मालवा-निमाड़ के किसानों को तात्कालिक राहत कैसे देंगे तो उनका जवाब था... किसान क्यों बेच रहे हैं चिप्स की फैक्ट्री में आलू, खुद फैक्ट्री लगाओ हम अनुदान दे रहे हैं.'
खेत में किसान लुट रहा है, शहर में ये आलू 20 रुपये से नीचे नहीं जाता, ग्राहक की शिकायत है वो लुट रहा है. ठेले पर आलू बेचने वाले दुकानदार की भी शिकायत है कि वो लुट रहा है.
एक हेक्टेयर में आलू लगाने पर खाद, बीज, बुआई, कीटनाशक, आलू निकालने पर लगभग 70 हजार खर्च करता है. एक हेक्टेयर में 300 क्विंटल के करीब आलू होता है. हालात ये हैं कि उसे औसत भाव दो रुपए किलो मिल रहा है यानी 60000 रु. इस सीधे गणित से भी उसे एक हैक्टेयर में 10000 रु. का नुकसान है. कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने का किराया 2-2.50 रु. प्रति किलो पड़ता है.
मालवा-निमाड़ में एलआर किस्म का आलू होता है, शुगर कम होने की वजह से चिप्स बनाने में इसकी डिमांड सबसे ज्यादा है. इस बार 10 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हो गया लेकिन चिप्स कंपनियों ने प्रोडक्शन रोक दिया. हालात ये हैं कि राज्य के 150 कोल्ड स्टोरेज में लगभग 70 फीसद आलू पड़ा हुआ है. उस राज्य में जो देश का पांचवा सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है जहां आलू की 14 से ज्यादा किस्मे हैं. लेकिन पिछली बार कीमत बढ़ी तो उस साल भूटान से आलू आयात हुआ. किसानों ने उत्पाद कोल्ड स्टोरेज में रख दिया, अब कीमतें धड़ाम हो गई तो भी उत्पाद कोल्ड स्टोरेज में पड़ा रहने को मजबूर है. कुल मिलाकर इस बार आलू के किसानों के लिये इंतजार का फल मीठा नहीं रहा.
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