लोकसभा चुनाव 2024 का अब आखिरी चरण का प्रचार पूरा हो चुका है. शनिवार को अंतिम चरण का मतदान कराया जाएगा. इससे पहले हर तरफ चुनाव के नतीजों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं.भारत की हर गली और नुक्कड़ पर बैठे चुनावी चाणक्य और उनकी भविष्यवाणी हम रोज सुन रहे हैं. लेकिन, कुछ लोग और संस्थान ऐसे हैं जो डेटा और रिसर्च के बलबूते चुनाव के परिणाम बताने का दावा करते हैं. इंग्लिश में इनको सिफॉलजिस्ट (Psephologist) और हिंदी में चुनाव विश्लेषक कहा जाता है.
ये विश्लेषक Exit Poll के जरिए बताते हैं कि चुनाव में आखिर किसका सिक्का चला और कौन चलता बना. भारत के चुनावी इतिहास में इन चुनावी चाणक्यों की भूमिका कब से शुरू हुई? उनकी भविष्यवाणियां कब-कब और कितनी सच हुईं? यह भी कि उनकी भविष्यवाणियों से लोकतंत्र के पर्व चुनाव के रंग में भंग पड़ने का खतरा क्यों महसूस हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट कब गया. आइए हम आपको बताते हैं भारत में Exit Poll का इतिहास. हम आपको यह भी बताएंगे कि चुनावी विश्लेषक आखिर वोटरों की नब्ज को समझते कैसे हैं.
Exit Poll में उन वोटरों को शामिल किया जाता है जो वोट देकर बाहर निकल रहे होते हैं. मतदान के तुरंत बाद किए जाने वाले इस सर्वे को एग्जिट पोल कहा जाता है.पोल के लिए जरूरी सवाल उन मतदाताओं से पूछे जाते हैं जो मतदान कर चुके हैं. Exit Poll से यह पता चलता है कि लोगों ने किसको वोट दिया है. उन लोगों की पसंदीदा पार्टी और प्रत्याशी कौन और क्यों है. मतगणना के आंकड़े सामने आने से पहले चुनाव के नतीजों को समझने की कोशिश इन एग्जिट पोल के जरिए की जाती है.
Opinion Poll और Exit Poll में अंतर क्या है?
चुनावी विश्लेषण पसंद करने वाले लोगों में Opinion Poll और Exit Poll की बड़ी चर्चा रहती है. ये दोनों विधाएं चुनाव का विश्लेषण करने के दो अलग रास्ते हैं. Opinion Poll चुनाव के पहले किया जाता है. इसमें सभी लोगों की राय ली जाती है. इसमें शामिल लोगों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वो उस क्षेत्र के मतदाता ही हों. वहीं Exit Poll में जमा किया गया डेटा चुनाव के दिन मतदान के बाद का होता है.
भारत में Exit Poll कब हुआ शुरू?
आपको बता दें कि भारत में सबसे पहली बार Exit Poll 1957 में भारतीय जनमत संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ऑपिनियन) ने करवाया था. जनमत संस्थान के प्रमुख एरिक डी कोस्टा को भारत में Exit Poll का जनक माना जाता है.
नब्बे के दशक में सैटेलाइट टीवी के जरिए Exit Poll लोगों के घरों में पहुंचा. दूरदर्शन ने दिल्ली में मौजूद सेंटर फॉर द डेवलपिंग सोसाइटीज (Centre For The Study of Developing Societies-CSDS) को पूरे देशभर में चुनावी सर्वे करने के लिए कहा. यह Exit Poll का भारतीय चुनाव और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ रिश्ते की शुरुआत थी.
Exit Poll में वोटर से क्या-क्या पूछा जाता है?
Exit Poll में आमतौर पर मतदाता की जानकारी से संबंधित सवाल शामिल होते हैं. मतदाता की उम्र और उसकी शिक्षा जैसी जानकारियां उससे पूछी जाती हैं. इन सर्वे में यह भी देखा जाता है कि इसके पहले वो मतदाता किसे वोट देता था और इस चुनाव में उसने किसे वोट दिया है. इसमें यह भी पता करने की कोशिश की जाती है कि किसी मतदाता ने किसी पार्टी को वोट क्यों दिया है. वह मतदाता किस चुनावी मुद्दे से प्रभावित रहा है, यह समझने की कोशिश की जाती है.
- मतदान :
- मतदाताओं ने किस उम्मीदवार या पार्टी को वोट दिया.
- जनसांख्यिकीय जानकारी:
- आयु
- लिंग
- जाति/समुदाय
- शिक्षा का स्तर
- आय का स्तर
- भौगोलिक जानकारी:
- मतदाता का निवास स्थान (शहरी/ग्रामीण)
- राज्य या क्षेत्रीय जानकारी
- मुद्दों पर राय:
- प्रमुख चुनावी मुद्दे (रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि) पर मतदाताओं की राय.
- मतदाताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा.
- पार्टी और उम्मीदवार के प्रति दृष्टिकोण:
- चुनाव लड़ने वाले प्रमुख उम्मीदवारों और पार्टियों के लिए मतदाताओं की राय.
- पार्टी या उम्मीदवार को चुनने की अहम वजह.
चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल के लिए क्या नियम-कानून बनाए हैं?
चुनाव आयोग ने 1998 में Exit Polls के लिए कुछ गाइडलाइन जारी की थी. आयोग ने अखबार और टीवी चैनल को चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने और अंतिम चरण का मतदान खत्म होने से पहले तक Exit Poll सार्वजनिक करने से रोका. इसके साथ ही भी कहा गया कि जब इन पोल को प्रसारित किया जाएगा तब सर्वे के सैंपल साइज के साथ-साथ अन्य जानकारियां दी जाएंगी.
इसको लेकर मीडिया और चुनाव आयोग आमने-सामने आ गए. मामला कोर्ट तक पहुंचा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की गाइडलाइन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
भारत में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 की धारा 126 (अ) के तहत मतदान प्रक्रिया शुरू होने से 48 घंटे पहले तक Opinion Poll दिखाया जा सकता है. जबकि Exit Poll के आंकड़े सभी चरणों की मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद दिखाए जाते है.साल 1999 एक बार फिर लोकसभा चुनाव लेकर आया था. इस बार भी अपनी 1998 की गाइड लाइन को चुनाव आयोग ने जारी किया. मीडिया संस्थानों ने इन नियमों को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच ने इन गाइडलाइन को असंवैधानिक ठहराया. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में आयोग ने कानून मंत्रालय की मदद से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 (अ) में संशोधन किया. इससे अंतिम चरण का मतदान पूरा होने से पहले Exit Poll पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस संशोधन का मकसद यह था कि किसी भी तरह से चुनाव को प्रभावित न किया जा सके.
चुनावी विश्लेषण के लिए सर्वे और एग्जिट पोल के इस्तेमाल को कई देशों ने प्रतिबंधित कर रखा है. भारत के साथ-साथ इटली, फ्रांस और जर्मनी समेत कई दूसरे देशों में भी चुनाव का अंतिम मतदान होने तक Exit Poll को सार्वजनिक करने पर पाबंदी लगी हुई है.
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