Chhindwara Lok Sabha Seat: अपना सांसद चुनने के लिए छिंदवाड़ा की जनता ने अब तक 18 बार वोट किया है. जिसमें से 17 बार उसने कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया और 1 बार ही बीजेपी का कमल खिलाया है. मतलब छिंदवाड़ा देश की उन चंद सीटों में शामिल है जहां कांग्रेस करीब-करीब अजेय रही है. 1980 में जब पार्टी ने यूपी के मूल निवासी और कोलकाता के कारोबारी कमलनाथ को यहां चुनाव लड़ने भेजा तो भी यही साबित हुआ. अब तो ये कहा जाता है कि छिंदवाड़ा में कमल नहीं खिलता क्योंकि यहां कमलनाथ का राज है.पिछले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने राज्य की 29 में से 28 सीटों पर जीत दर्ज की सिर्फ छिंदवाड़ा में उसकी दाल नहीं गली थी...2023 विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ. यहां की सातों विधानसभा सीट पर बीजेपी का कमल मुरझा गया.ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि आखिर छिंदवाड़ा का तिलिस्म क्या है जो बीजेपी से टूटता नहीं है. इस पर हम विस्तार से बात करेंगे लेकिन पहले जान लेते हैं कि छिंदवाड़ा का इतिहास क्या है?
कहा जाता है कि एक समय में यहां शेरों की आबादी ज्यादा थी इसलिए इसे पहले 'सिन्हवाडा'कहा जाता था. एक दूसरी बात भी प्रचलित है कि यहां छिंद यानी ताड़ के पेड़ों की भरमार है लिहाजा इसका नाम छिंदवाड़ा पड़ा. ज्ञात इतिहास के मुताबिक सतपुड़ा के खुले पठारी इलाके पर मौजूद इस इलाके पर पहले शासन राष्ट्रकूट वंश ने किया. इस राजवंश ने 7 वीं सदी तक शासन किया फिर “गोंडवाना” वंश के अधीन ये इलाका आ गया. ‘गोंड' समुदाय के राजा ‘जाटव' ने ही यहां देवगढ़ किले का निर्माण किया था. बाद में ये इलाका मराठों के अधीन आ गया.
17 सितंबर 1803 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने रघुजी द्वितीय को हराकर पूरा इलाका अपने कब्जे में ले लिया. पहले स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त यहां तात्या टोपे के आने का जिक्र मिलता है. छिंदवाड़ा के लोगों ने आजादी की लड़ाई के दौरान खूब योगदान दिया. जिसकी वजह से यहां महात्मा गांधी से लेकर सरोजनी नायडू तक आए थे.फिलहाल यहां की कुल जनसंख्या करीब 21 लाख है और 75 प्रतिशत आबादी गांवों में और 24 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करती है. छिंदवाड़ा के 92 प्रतिशत लोग हिंदू धर्म में जबकि 4 प्रतिशत लोग इस्लाम में आस्था रखते हैं. यहां की 71 फीसदी जनसंख्या शिक्षित है. इस लोकसभा सीट में सात विधानसभा हैं. जिनके नाम हैं- जुन्नारदेव,अमरवाड़ा,चौरई,सौंसर,छिंदवाड़ा,परासिया,पांढुर्ना.
60-70 के दशक तक छिंदवाड़ा महाराष्ट्र की राजनीति के ज्यादा करीब था.विदर्भ क्षेत्र की राजनीति से जुड़े होने के कारण छिंदवाड़ा में वहां के नेताओं का ही वर्चस्व था. यहां तीन बार लगातार सांसद रहे गार्गीशंकर मिश्रा नागपुर के ही थे. वे 1967, 1971 और 1977 में लगातार तीन संसदीय चुनाव जीते थी...लेकिन 1980 के चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जिसने इतिहास ही रच दिया है.इंदिरा गांधी ने संजय गांधी के दोस्त कमलनाथ को इस सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया. जिसके बाद कानपुर में गंगा किनारे पैदा हुआ ये राजनेता कुलबेहरा की धारा बोदरी के तट पर मौजूद छिंदवाड़ा आया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि जब कमलनाथ को मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाने का निर्णय इंदिरा गांधी ने लिया तो उन्होंने इंदिरा गांधी से ही पूछ लिया कि ये छिंदवाड़ा कहां है? 13 दिसंबर 1980 को इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के प्रत्याशी कमलनाथ के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं. इंदिरा ने तब मतदाताओं से चुनावी सभा में कहा था कि कमलनाथ उनके तीसरे बेटे हैं. कृपया उन्हें वोट दीजिए.
छिंदवाड़ा संसदीय सीट पर 1980 में कमलनाथ के उम्मीदवार बनने और उनके जीतने के बाद यह सीट उनका पर्याय बन गई. 1980 के बाद लगातार चार चुनाव वे जीते और संसद में जिले का प्रतिनिधित्व किया.96 से 98 के बीच के एक डेढ़ साल को छोड़ दें तो उसके बाद फिर से जीते. और तब से अब तक उन्हें यहां से कोई हरा नहीं पाया.
वे 1980, 1984, 1989, 1991 के बाद 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में सांसद चुनाव जीतकर एक रिकॉर्ड बना चुके हैं. कमलनाथ को इस सीट पर सिर्फ एक बार हार मिली थी और उन्हें हराने वाले उम्मीदवार थे- बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदर लाल पटवा. हालांकि कमलनाथ ने अगले चुनाव में ही उन्हें हरा कर अपनी सीट वापस पा ली. साल 2019 के चुनाव में हालात बदले और उन्होंने अपनी इस सीट से अपने बेटे नकुलनाथ को उम्मीदवार बनाया. नकुलनाथ के रहते भी बीजेपी कमलनाथ का ये किला भेद नहीं पाई. अब देखना ये है कि क्या 2024 के चुनाव में छिंदवाड़ा जीतने का बीजेपी का दशकों पुराना ख्वाब पूरा हो पाता है या नहीं?
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