लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के मद्देनजर बिहार (Bihar Lok Sabha Seats) की सियासत में फिर से हलचल तेज हो गई है. इसबार मामला चाचा-भतीजे और हाजीपुर सीट (Hajipur Seat) की विरासत को लेकर है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को INDIA गठबंधन से अलग करके अपने कुनबे में शामिल किया. अब बीजेपी ने बिहार की 40 सीटों को साधने के लिए चिराग पासवान (Chirag Paswan) के साथ बड़ी डील की है. चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास (LJP-R) को हाजीपुर समेत 5 सीटें मिलने की बात सामने आ रही है. जबकि उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस हाजीपुर सीट से ही सांसद हैं. सवाल ये है कि बीजेपी को जिन पशुपति पारस से दलित वोट की उम्मीद नजर आ रही थी, अब ऐसा क्या हुआ कि वह अचानक ही NDA में साइडलाइन कर दिए गए. चाचा को छोड़कर बीजेपी भतीजे यानी चिराग पासवान को आखिर इतना तवज्जो क्यों दे रही है?
दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) 3 साल पहले टूट गई थी. पार्टी के पांच सांसदों- पशुपति कुमार पारस (चिराग के चाचा), चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज (चिराग के चचेरे भाई) ने मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया था. इन सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया था. उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ संसदीय दल के नेता का जिम्मा भी सौंपा गया था. वहीं, LJP में चिराग पासवान समेत कुल छह ही सांसद रह गए थे. चिराग पासवान के गुट को नाम लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास (LJP-R) मिला. बाद में पशुपति पारस गुट NDA के साथ गठबंधन में आ गई. पारस केंद्रीय मंत्री भी बने.
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अब NDA से क्यों नाराज हैं पशुपति पारस
हाजीपुर सीट को लेकर पशुपति पारस और चिराग पासवान में खींचतान है. ये सीट रामविलास पासवान की सीट है. इसलिए चिराग पासवान अपने पिता की सीट पर दावा करते हैं. लेकिन पशुपति पारस का कहना है कि भाई रामविलास पासवान ने ही उन्हें यह सीट दी थी. अभी बिहार में NDA की सीट शेयरिंग सामने नहीं आई है, लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद चिराग पासवान ने डील को लेकर बयान दे दिया. खबर आई कि बीजेपी चिराग पासवान को LJP के कोटे की सभी 5 सीटें देने को तैयार है. इसके साथ ही चिराग पासवान को हाजीपुर सीट भी मिलेगी. यह भी कहा गया कि डील के बाद चिराग पासवान LJP का पुराना चुनाव चिह्न भी इस्तेमाल कर पाएंगे. यानी BJP पूरी तरह से LJP के दूसरे गुट यानी पशुपति पारस के गुट की अनदेखा कर रही है. पारस इसी से नाराज चल रहे हैं.
जेपी नड्डा और अमित शाह से मिलने के लिए नहीं दिया जा रहा वक्त
पशुपति पारस गुट को बिहार में NDA गठबंधन को लेकर क्या चर्चा चल रही है उसके बारे में आधिकारिक तौर पर अब तक कोई जानकारी नहीं दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, पशुपति पारस पिछले करीब एक हफ्ते से BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनको वक्त नहीं मिल पा रहा है. सूत्रों का कहना है कि पशुपति पारस हाजीपुर से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं. भले ही वहां गठबंधन में कोई भी क्यों ना हो.
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2-3 सीटों की उम्मीद करे थे पशुपति पारस
सूत्रों के मुताबिक, पशुपति पारस गुट उम्मीद कर रहा था कि उनको कम से कम 2-3 सीटें NDA के तहत जरूर मिलेंगी. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. सूत्रों की मानें तो, पशुपति पारस गठबंधन से बात करने के लिए कभी विनोद तावड़े तो कभी मंगल पांडे आ रहे थे. मगर उनकी तरफ से भी कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल रहा था. ऐसे में गुजरते वक्त के साथ पशुपति पारस का NDA में रहना मुश्किल लग रहा है.
BJP के लिए अचानक इतने खास क्यों हो गए चिराग पासवान?
2021 में लोक जनशक्ति पार्टी में टूट हुई थी. फिर पशुपति पारस को NDA का साथ मिला और चिराग पासवान एकदम से हाशिये पर चले गए. ऐसे में सवाल ये उठता है कि 3 साल में क्या हुआ, जो चिराग पासवान BJP के लिए इतने जरूरी हो गए? इसके कई कारण हैं:-
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युवाओं में जबरदस्त अपील
चिराग पासवान युवा नेता हैं और जाहिर तौर पर युवाओं के बीच उनकी जबरदस्त अपील है. हाजीपुर में सांसद के तौर पर भले ही पशुपति पारस का वोटर्स से जुड़ाव रहा हो. लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए, तो वोटर्स का एक बड़ा तबका चिराग पासवान के साथ ही है.
जनता के बीच सक्रिय
चिराग पासवान इस क्षेत्र में अपने चाचा पशुपति पारस से ज्यादा एक्टिव रहते हैं. 2019 में रामविलास पासवान के LJP अध्यक्ष रहते पार्टी का सारा काम उनके बेटे चिराग पासवान ही देखा करते थे. पार्टी वर्कर्स के साथ उनका अच्छा संवाद होता था, जो अभी भी बना हुआ है.
रामविलास पासवान की विरासत
हाजीपुर में रामविलास पासवान की विरासत जाहिर तौर पर उनके बेटे के पक्ष में ही जाएगी. यहां के वोटर्स और रामविलास पासवान के साथ जुड़े लोग चिराग पासवान को ही उनका उत्तराधिकारी मानते हैं. अगर चिराग पासवान NDA में रहते हुए हाजीपुर से चुनाव लड़ते हैं, तो जाहिर तौर पर इसका फायदा BJP को भी होगा.
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जनता की सहानुभूति
पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद चिराग पासवान को जनता की सहानुभूति भी मिलती है. खासकर लोक जनशक्ति पार्टी में टूट के बाद चिराग को लेकर कोर वोटर्स में सहानुभूति का माहौल है. लेकिन पशुपति पारस के साथ ऐसा नहीं है.
महागठबंधन से न्योता
चिराग की अहमियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि उन्हें महागठबंधन के दूसरे दलों (आरजेडी, कांग्रेस और अन्य) से भी कई बार ऑफर मिल चुका है. हाल ही में तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान से मुलाकात की थी और उन्हें सीटों को लेकर बड़ा ऑफर दिया था.
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बिहार की सियासत में जरूरी
चिराग पासवान का बिहार की सियासत में अच्छा-खासा दखल है. दलित-ओबीसी वोट का एक बड़ा तबका उनके समर्थन में है. रामविलास पासवान दलितों के नेता माने जाते थे. BJP को डर है कि अगर चिराग पासवान महागठबंधन में चले गए, तो दलित-ओबीसी वोट बंटेगा. इससे BJP को नुकसान हो सकता है. यही सोचकर BJP ने नीतीश कुमार को अपने पाले में शामिल किया. क्योंकि नीतीश कुमार भी पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की बात करते आए हैं.
सब कुछ खोने के बाद भी BJP के साथ रहे
चिराग पासवान की एक खासियत भी है, जो BJP को पसंद आई होगी. उन्होंने पहले अपना पिता खोया. फिर पार्टी में टूट हुई. चाचा ने पार्टी छीन ली और BJP ने उन्हें सरकार में शामिल कर लिया. पिता की विरासत हाजीपुर सीट भी चाचा के कोटे में चली गई. सबकुछ हाथ से फिसलने के बाद भी चिराग ने कभी पार्टी के खिलाफ जाकर कुछ नहीं कहा. शायद BJP अब चिराग को इसी वफादारी का हक अदा कर रही है.